संपादकीय

बंद होनी चाहिए खैरात बांटने की घातक परिपाटी

-योगेश कुमार गोयल
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव के मद्देनजर दिल्ली में फिर से अपनी जमीन तैयार करने के लिए मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बसों तथा मेट्रो में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का ऐलान करके ऐसा दांव खेला है, जिससे दिल्ली की राजनीति एकाएक गरमा गई है। केजरीवाल ने इस योजना के जरिये एक ही झटके में दिल्ली की 61.4 लाख महिला मतदाताओं को साधने का प्रयास किया है। दिल्ली में प्रतिदिन बसों में करीब 30 प्रतिशत महिला यात्री अर्थात् लगभग 8 लाख से अधिक महिलाएं जबकि मेट्रो में करीब 33 फीसदी अर्थात् 9 लाख से अधिक महिला यात्री सफर करती हैं। इन महिला यात्रियों को मुफ्त यात्रा का झुनझुना थमाकर केजरीवाल दिल्ली में ‘आप’ की नैया पार लगाने के ख्वाब संजो रहे हैं। दरअसल लोकसभा चुनाव के दौरान केजरीवाल की पार्टी का जो बुरा हश्र हुआ, उससे वह सकते में हैं। पिछले पांच वर्षों में आप का जनाधार तेजी से सिकुड़ा है। जिस दिल्ली में करीब साढ़े चार साल पहले ‘आप’ विधानसभा चुनाव में 54 फीसदी से भी ज्यादा मतों के साथ 70 में से 67 सीटें जीतने में सफल हुई थी, उसी दिल्ली में 7 लोकसभा सीटों में से 5 में उसके प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे। उसका मत प्रतिशत तेजी से गिरा। लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को पंजाब में केवल एक सीट पर ही जीत हासिल हुई। इसी हार से भयभीत केजरीवाल ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने पुराने नुस्खे को ही दोबारा आजमाया है। स्मरण रहे कि पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भी उन्होंने दिल्ली में हर परिवार को प्रतिमाह 20 हजार लीटर पानी मुफ्त देने और बिजली का बिल आधा करने का वादा था। सत्ता में आने के चंद घंटों के भीतर ही उन्होंने इन वादों को पूरा भी कर दिखाया था। यही कारण है कि तमाम विरोधी राजनीतिक दल महिला मतदाताओं की नाराजगी से बचने के लिए केजरीवाल के हालिया फैसले का सीधे तौर पर विरोध न कर उन्हें इसके दूसरे पहलुओं पर घेरने की कोशिशों में जुटे हैं।
कुछ देश ऐसे हैं, जहां सरकारों द्वारा नागरिकों के लिए मुफ्त यात्रा की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है किन्तु वहां महज वोटबैंक की राजनीति के चलते लैंगिक आधार पर यह सुविधा नहीं दी जाती। मसलन, 2008 से ही चीन के चैंगनिंग शहर में नागरिकों के लिए मुफ्त यात्रा की सुविधा है। इसी प्रकार दो लाख की आबादी वाले फ्रांस के डनकिर्क शहर में भी नागरिकों के लिए मुफ्त सार्वजनिक परिवहन की सुविधा है। लक्जमबर्ग में तो सरकार ने 2020 से देश के सभी नागरिकों के लिए सार्वजनिक परिवहन की सुविधा पूरी तरह मुफ्त करने की घोषणा कर दी है। रूस के वोरोनिशओब्लास्ट शहर में भी प्रत्येक आधे घंटे में यात्रा के लिए मुफ्त बस की सुविधा मिलती है। भारत में मामला पूरी तरह अलग है। हमारे यहां प्रायः राजनीतिक दलों या सरकारों द्वारा अपना वोटबैंक बढ़ाने के लिए जनता को मुफ्तखोरी की लत लगाने वाली ऐसी घोषणाएं की जाती हैं। पूर्णतः राजनीतिक लाभ से प्रेरित इस तरह की प्रवृत्ति के प्रायः भयावह दूरगामी परिणाम ही सामने आते हैं। देश की अर्थव्यवस्था या राज्यों की बदहाल आर्थिक स्थिति को ताक पर रखकर कमोवेश सभी राजनीतिक पार्टियां मुफ्तखोर संस्कृति को बढ़ावा देते हुए चुनावों के दौर से ठीक पहले आभूषण, मंगलसूत्र, लैपटॉप, स्मार्टफोन, टीवी, फ्रिज से लेकर चावल, दूध, घी तक बांटने का वादा कर मतदाताओं का बहलाती रही हैं। फिर बात चाहे किसानों की समस्याओं की हो या अन्य जन समस्याओं या जन-सरोकारों से जुड़े मुद्दों की, ऐसी समस्याओं को ईमानदारी से हल करने की बजाय अक्सर मुफ्त योजनाओं का लालच देकर इस प्रकार के लोक-लुभावन कदमों के जरिये मतदाताओं को बहलाने का प्रयास किया जाता रहा है। इसी कड़ी में दो कदम आगे निकलते हुए केजरीवाल ने भी महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा की है।
दरअसल, अगले साल की शुरुआत में दिल्ली विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली में महिला कामगारों की बहुत बड़ी संख्या है। 17 लाख से भी ज्यादा महिला यात्री प्रतिदिन बसों या दिल्ली मेट्रो में सफर करती हैं। दिल्ली सरकार की मुफ्त यात्रा की इस पहल से सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 1400 करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। केजरीवाल का कहना है कि इस खर्च को दिल्ली सरकार वहन करेगी। चूंकि उनकी सरकार का खजाना सरप्लस में है। इसलिए सरकार पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। इस योजना के लिए दिल्ली सरकार को केन्द्र सरकार से अनुमति लेने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि किराये में फेरबदल नहीं किया जा रहा बल्कि सब्सिडी दी जा रही है। अगर वाकई प्रदेश सरकार के पास सरप्लस खजाना है तो उस खजाने को खैरात में बांटने की बजाय क्यों नहीं उसका सदुपयोग विकास कार्यों में किया जाता? एक तरफ देश के आर्थिक विकास के लिए सब्सिडी की अर्थव्यवस्था को खत्म करने की कोशिशें जारी हैं। ऐसे में भारी-भरकम सब्सिडी वाली इस प्रकार की योजनाएं कतई ठीक नहीं मानी जा सकती। मतदाताओं को ऐसी योजनाओं की आड़ में भ्रमित कर वोट पाने के चक्कर में सरकारी संसाधन लुटाने की बजाय सरकारें देश या अपने प्रदेश के नागरिकों की सुविधाओं के लिए ऐसी योजनाएं या कार्यक्रम क्यों नहीं शुरू करती, जिससे उन्हें मुफ्तखोर बनाती योजनाओं की जरूरत ही न पड़े।
केजरीवाल ने कहा है कि जो महिलाएं टिकट खरीदने में सक्षम हैं, वे इस सब्सिडी को छोड़ दें ताकि जरूरतमंदों को मदद मिल सके। लेकिन मुफ्त मिलती इस प्रकार की सुविधा को छोड़ने में किसी की रत्तीभर भी दिलचस्पी होगी, नहीं लगता। 1990 के दशक से पहले भी सरकारों द्वारा बिजली सहित कुछ अन्य सेवाओं में माफी दी गई थी किन्तु वे योजनाएं देश के आर्थिक विकास की दृष्टि से पूरी तरह विनाशकारी साबित हुईं। इसीलिए नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद ऐसी नीतियों को त्याग दिया गया था। एक बार फिर किसानों को नकद पैसे देने, विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किसानों के कर्जे माफ करने, गरीबों को मुफ्त आटा-दाल, चावल बांटने सरीखी योजनाओं की शुरूआत अंततः देश के आर्थिक ढांचे को तहस-नहस करने वाली ही साबित होगी।
दिल्ली मेट्रो अकेले दिल्ली सरकार की जागीर नहीं है। इसमें केन्द्र सरकार और दिल्ली सरकार की 50-50 फीसदी की भागीदारी है। दिल्ली मेट्रो के बनाये नियमों में मुफ्त यात्रा जैसा कोई प्रावधान नहीं है। इसका संवैधानिक अधिकार दिल्ली के मुख्यमंत्री को नहीं है। ऐसे में केजरीवाल अपने दम पर दिल्ली मेट्रो में महिलाओं को मुफ्त यात्रा कराए जाने की घोषणा कैसे कर सकते हैं? अगर तकनीकी पहलुओं की चर्चा करें तो अभी तक मेट्रो के टिकटिंग सिस्टम में महिला या पुरूष की कोई श्रेणी नहीं है। दिल्ली मेट्रो में टोकन अथवा स्मार्ट कार्ड के जरिये ही यात्रा करने का प्रावधान है। अगर मेट्रो में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का प्रावधान किया जाता है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि मेट्रो द्वारा टोकन या स्मार्ट कार्ड के जरिये किराया वसूलने के तरीकों में बड़े बदलाव करने होंगे। ये बदलाव बगैर केन्द्र सरकार की स्वीकृति के कैसे संभव होंगे? ऐसे में केजरीवाल के इस कथन का क्या औचित्य है कि इस योजना के लिए दिल्ली सरकार को केन्द्र सरकार से अनुमति लेने की जरूरत ही नहीं है।
मेट्रो में मुफ्त सफर के लिए महिलाओं के प्रवेश से स्टेशनों पर भगदड़ जैसी स्थिति भी बन सकती है। उससे निपटने के लिए न ही मेट्रो और न दिल्ली सरकार के पास कोई ठोस योजना है। दिल्ली मेट्रो का दायरा बहुत विस्तृत हो चुका है। एनसीआर से भी बहुत बड़ी संख्या में यात्री प्रतिदिन दिल्ली आते-जाते हैं। ऐसे में यह कैसे तय होगा कि मेट्रो में मुफ्त सफर करने वाली महिला यात्री दिल्ली में ही सफर कर पाए? सवाल यह भी है कि अगर मुफ्त मेट्रो यात्रा पर दी जानी वाली सब्सिडी का पैसा दिल्ली सरकार अपने खजाने से दिल्ली मेट्रो को भुगतान करती भी है तो वह यह पैसा मेट्रो को कब और किस रूप में भुगतान करेगी क्योंकि पहले ही भारी कर्ज के बोझ तले दबी दिल्ली मेट्रो इस स्थिति में नहीं है कि वह भुगतान में देरी या चूक को बर्दाश्त कर सके। जहां तक बसों में मुफ्त यात्रा की बात है तो केजरीवाल मुफ्त यात्रा को जिस प्रकार महिला सुरक्षा से जोड़कर पेश कर रहे हैं, उसके मद्देनजर महिलाओं को सुरक्षित और आरामदायक यात्रा मुहैया कराने के लिए दिल्ली की सड़कों पर कम से कम 11000 बसें होनी चाहिए लेकिन मौजूदा समय में डीटीसी और कलस्टर बसों की कुल संख्या 5500 ही है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि सुरक्षित यात्रा के लिए दिल्ली सरकार इतनी बड़ी संख्या में बसों का इंतजाम कैसे और कहां से करेगी?
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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