संपादकीय

ठंड से ठिठुरा उत्तर भारत

-डॉ. रमेश ठाकुर
देशभर में ठंड ने जो तांडव मचाया हुआ है, उससे सभी आहत हैं। मौसम विभाग ने कई दशकों बाद ऐसी ठंड पड़ने का अनुमान लगाया है। दिल्ली में सौ वर्षों का रिकॉर्ड टूटने की बात कही जा रही है। लगभग दो हफ्ते से समूचा देश भंयकर ठंड से ठिठुर रहा है। इंसान के अलावा बेजुबान जानवरों पर भी आफत आई हुई है। कई जानवर ठंड के कारण मर चुके हैं। देशभर से सैकड़ों लोगों के भी मरने की खबरें हैं। सोमवार 30 दिसम्बर को ठंड के साथ घने कोहरे ने जमकर सितम ढाया। दिल्ली-एनसीआर में तो दृश्यता करीब-करीब शून्य हो गई। ठंड के कहर से अकेले उत्तरप्रदेश में 70 से ज्यादा और बिहार में अबतक 50 लोगों के मरने की खबर है। कोहरे के कारण रेल, सड़क और वायु सेवा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। ट्रेनें घंटों देरी से चल रही हैं तो उड़ानें रद्द की जा रही हैं। इससे आवागमन करने वालों को परेशानी हो रही है। दरअसल, ठंड की ऐसी स्थिति कई सालों बाद बनी है, जब मैदानी इलाकों में इस कदर ठंड पड़ रही हो। मौसम विभाग द्वारा 28 दिसम्बर यानी शनिवार को देश के कई हिस्सों को इस सीजन का अब तक का सबसे सर्द दिन दर्ज किया गया। उस दिन राजधानी के कई इलाकों में न्यूनतम पारा 1.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। अहमदाबाद, पटना, लखनऊ, भोपाल, जयपुर, चंडीगढ़ में भी कमोबेश ऐसा ही हाल बना हुआ है। ठंड से बेहाल लोग घरों में दुबके हुए हैं। कामधंधों पर जाना बंद कर दिया है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी परेशान हैं। अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ गई है। ठंड के चलते लगभग पूरे उत्तर भारत में प्रशासन ने स्कूलों को बंद कर दिया है। अमूमन मुंबई, नागपुर जैसे इलाके ज्यादा सर्द नहीं होते, लेकिन इस सीजन में वहां भी लोग ठिठुर रहे हैं।
हाड़ कंपाती सर्दी को फिलहाल मौसम विभाग ने बदलते एनवायरमेंट से जोड़ा है। पर्यावरणविद् भी उनकी बातों को सही बताते हैं। दरअसल, पृथ्वी की जलवायु के निरन्तर गर्म होते जाने के संभावित दुष्परिणामों की तस्वीर अब दिखने लगी है। कुछ उदाहरण हमारे समक्ष हैं। जो यदा-कदा देखने-सुनने में आते हैं। जैसे, धरती में दरारों का पड़ना, नमीं वाले क्षेत्रों में अचानक सूखा पड़ना, जंगलों का सूखना, वन्य प्राणियों का गायब होना और ग्रीनलैंड व अंटार्कटिका की बर्फ का पिघलना, सागर की सतह का अचानक ऊपर उठ जाना आदि ऐसे बदलाव हैं जो आने वाले दिनों में मानव जीवन के लिए खतरों का संकेत हैं। मौसम विभाग के मुताबिक ठंड को लेकर पूरे देश में जो स्थिति फिलहाल बनी हुई है, आने वाले कुछ दिनों में उससे राहत मिलने के आसार नहीं हैं।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर केंद्र व राज्य सरकारों की कागजी घोषणाएं खूब होती हैं। लेकिन नतीजा बेअसर रहता है। इस क्षेत्र में नए सिरे से पूरे संसार को सोचना होगा। ईमानदारी से मनन-मंथन करना होगा। मौसम के सर्द होने के पीछे एक कारण पहाड़ों पर होती लगातार बर्फबारी भी है। बर्फबारी और शीतलहर के चलने के कारण ही मैदानी इलाके ठंड की चपेट में आए हैं। पहाड़ी राज्य उतराखंड में पिछले कई दिनों से बर्फबारी हो रही है। रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं। कश्मीर की डल झील जम चुकी है। वहां पर्यटक जाने से कतराने लगे हैं। जबकि, कश्मीर में सर्दी के सीजन में सबसे ज्यादा पर्यटक पहुंचते रहे हैं। लेकिन इस बार हालात पहले से जुदा हैं। वहां की मनमोहक झीलें बर्फ बनीं हुई हैं। पानी के जमने से नौकाओं का चलना भी बंद हो गया है। द्रास और करगिल में न्यूनतम तापमान माइनस 20 से भी नीचे पहुंचा हुआ है। पिछले कई दिनों से श्रीनगर का न्यूनतम तापमान माइन्स में चल रहा है। दिल्ली स्थित मौसम विभाग के चीफ कुलदीप श्रीवास्तव की मानें तो ठिठुरन नये साल के शुरुआती दिनों में भी परेशान करती रहेगी। मौसम विभाग ने ठंड के साथ बारिस का अनुमान भी लगाया है। इसका मतलब कि ठंड अभी और बढ़ेगी।
फिलहाल, कड़ाके की ठंड से ठिठुर रहे लोगों के लिए देश के कई शहरों में प्रशासन द्वारा अलाव जलाने की व्यवस्था की हुई है। तापमान लुढ़कने और सर्द हवाओं के चलने से सबसे ज्यादा परेशानी गरीब, बेघर और निर्धनों को उठानी पड़ रही है। कहने को, शहरों में सेल्टर होम बनाए जाते हैं लेकिन वहां उचित व्यवस्था नहीं होने से परेशानियां और बढ़ जाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने करोड़ों रुपये कंबल बांटने के लिए आवंटित किया है। वहां गरीबों को ठंड से बचाने को प्रत्येक जिला प्रशासन को कंबल और अलाव के लिए धनराशि उपलब्ध करा दी गई है। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्थानों पर अलाव की व्यवस्था की गई है। प्रशासनिक मदद के अलावा लोग अपने स्तर पर भी खुद का बचाव करने में लगे हैं।

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