संपादकीय

डिजीटल युग के लिए ख़तरनाक है डीपफेक

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार,(उत्तराखंड)

आज विज्ञान और तकनीक का युग है और विज्ञान तथा तकनीक का उद्देश्य यह रहा है कि इससे मानव जीवन बेहतर और अच्छा बनें। सच तो यह है कि मानव समाज की प्रगति,उसका उत्तरोत्तर विकास ही विज्ञान और तकनीक का असली उद्देश्य रहा है लेकिन आज के समय में विज्ञान और तकनीक दोनों का ही मानव द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। विज्ञान और तकनीक मानव के लिए वरदान है तो अभिशाप भी साबित हुई है। डीपफेक इन दिनों काफी चर्चा में है।मनोरंजन के उद्देश्य से मनोरंजक वीडियो और तस्वीरें बनाना ही डीपफेक का एकमात्र उपयोग नहीं है। जो चीज़ शौकिया प्रयोग के रूप में शुरू हुई थी वह अब एक संभावित खतरनाक तकनीक बन गई है।फिल्म जगत से लेकर बड़ी राजनीतिक हस्तियों तक का डीपफेक बनाया गया है। जानकारी देना चाहूंगा कि पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर तक का डीपफेक विडियो बन चुका है। डीपफेक विडियो में एक्स्प्रेशन रीयल लगते हैं लेकिन वे रीयल होते नहीं है।केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा था कि ‘डीपफेक लोकतंत्र के लिए एक नया खतरा बनकर उभरा है।’ केंद्रीय मंत्री ने बताया था कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने डीपफेक के खतरे और इसकी गंभीरता को स्वीकार किया है। वैष्णव ने कहा था कि डीपफेक के क्रिएटर्स और उसको होस्ट करने वाले प्लेटफॉर्म की जिम्मेदारी तय होगी।आज देश-दुनिया में ‘डीपफेक’ के मामले लगातार बढ़ते ही चले जा रहे हैं। यहां प्रश्न यह उठता है कि आखिर डीपफेक है क्या ? तो पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि वास्तव में डीपफेक का तात्पर्य कृत्रिम मीडिया से होता है, जिसमें एक मौजूदा छवि या वीडियो में एक व्यक्ति की के स्थान पर किसी दूसरे को इतनी अधिक समानता से लगा दिया जाए कि उनमें अंतर करना कठिन हो जाए। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि डीपफेक एआई(आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता है जिसका उपयोग ठोस छवियां, ऑडियो और वीडियो धोखाधड़ी बनाने के लिए किया जाता है। आज के इस युग में नकली छवियां बनाई जातीं हैं और वीडियो-आडियो में हेरफेर किया जाता है।
डीपफेक बनाने के लिए आज जेनेरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (जीएएन) जैसे उन्नत एआई एल्गोरिदम का उपयोग किया जा रहा हैं। बताना चाहूंगा कि डीपफेक टेक्नोलॉजी का आविष्कार वर्ष 2014 में किया गया था और इसे गुडफेलो और उसकी टीम ने पेश किया था। डीपफेक में आमतौर पर डीप लर्निंग एल्गोरिदम, विशेष रूप से जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (जीएएन) का उपयोग शामिल होता है, जो डेटा में पैटर्न का विश्लेषण और नकल कर सकता है। यह भी जानकारी मिलती है कि डीपफेक शब्द पहली बार 2017 में यूज किया गया था। तब अमेरिका के सोशल न्यूज एग्रीगेटर रेडिट पर डीपफेक आईडी से कई सेलिब्रिटीज के वीडियो पोस्ट किए गए थे। इसमें एक्ट्रेस एमा वॉटसन, गैल गैडोट, स्कारलेट जोहानसन के कई पोर्न वीडियो थे। सरल शब्दों में कहें तो हम यह बात कह सकते हैं कि किसी रियल वीडियो, फोटो या ऑडियो में दूसरे के चेहरे, आवाज और एक्सप्रेशन को फिट कर देने को डीपफेक नाम दिया गया है। ये इतनी सफाई से होता है कि कोई भी इस पर यकीन मान बैठता है। इसमें फेक भी असली जैसा लगता है।इसमें मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लिया जाता है। इसमें वीडियो और ऑडियो को टेक्नोलॉजी और सॉफ्टवेयर की मदद से बनाया जाता है।आज सोशल मीडिया का युग है, हर कोई सोशल मीडिया का उपयोग, प्रयोग करता है। हर कोई आज सोशल मीडिया का प्रयोग तो धड़ल्ले से करते हैं लेकिन धोखाधड़ी से डरते हैं। सच तो यह है कि डीपफेक टेक्नोलॉजी इंसानों की प्राइवेसी के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो रही हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि डीपफेक टेक्नोलॉजी में कोडर और डिकोडर टेक्नोलॉजी की मदद ली जाती है। डिकोडर सबसे पहले किसी इंसान के चेहरे को हावभाव और बनावट की गहन जांच करता है। इसके बाद किसी फर्जी फेस पर इसे लगाया जाता है, जिससे हुबहू फर्जी वीडियो और फोटो को बनाया जा सकता है। हालांकि इसे बनाने में काफी टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है, ऐसे में आम आदमी डीपफेक वीडियो नहीं बना सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि आजकल डीपफेक बनाने से जुड़े अनेक एप्स मौजूद हैं, जिनकी मदद से आसानी से डीफफेक वीडियो को बनाये जा सकते हैं। इसलिए आज के समय में इससे बचने की आवश्यकता है। वास्तव में हमारी सतर्कता से हम इससे बच सकते हैं। जैसे डीपफेक वीडियो को हम फेशियल एक्सप्रेशन से पहचान सकते हैं।फोटो और वीडियो के आईब्रो, लिप्स आदि को देखकर और उसके मूवमेंट से भी इसकी पहचान बखूबी की जा सकती है। हालांकि सरकार भी डीपफेक को लेकर काफी सतर्क है और मीडिया के हवाले से यह पता चला है कि सरकार डीपफेक के खिलाफ जल्द ही नये नियम लाने जा रही है। आने वाले समय में सोशल मीडिया फर्म्स पर एक्शन लिया जा सकेगा। जानकारी देना चाहूंगा कि नये आईटी नियमों में गलत सूचना और डीपफेक को लेकर बड़े प्रावधान हैं। सभी के लिए इसका पालन करना अनिवार्य है, नहीं तो कार्रवाई की जाएगी।
‘डीपफेक’ एक नई समस्या है। यह लोगों को गुमराह करती है,भ्रम फैलाती है और दुष्प्रचार करती है। सिर्फ सेलिब्रिटी, राजनीतिक हस्तियां और रईस व्यक्ति और फिल्म स्टार ही नहीं कोई भी कभी भी डीपफेक का शिकार हो सकते हैं। आज घर-घर तक मोबाइल फोन और इंटरनेट की पहुंच हो गई है। जानकारी देना चाहूंगा कि 2010 के दशक में भारत में सस्ते स्मार्टफोन और सेल्युलर डेटा सर्वव्यापी हो गए, तो इंटरनेट की पहुंच में विस्फोट हो गया। यह कोई विकास नहीं बल्कि एक क्रांति थी। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत के इंटरनेट उपयोगकर्ता 2010 में 100 मिलियन से बढ़कर 2015 तक 400 मिलियन हो गए और 2020 में 600 मिलियन से ऊपर। जानकारी देना चाहूंगा कि भारत में वर्ष 2021 तक मोबाइल फोन के 1.2 अरब उपयोगकर्ता थे। इसमें से 75 करोड़ स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। डेलॉयट के 2022 ग्लोबल टीएमटी (प्रौद्योगिकी, मीडिया और मनोरंजन, दूरसंचार) अनुमान के अनुसार, ‘घरेलू बाजार में 2026 तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या बढ़कर एक अरब पर पहुंचने का अनुमान है।’ डेलायट के विश्लेषण के अनुसार, भारत स्मार्टफोन की मांग सालाना आधार पर छह प्रतिशत बढ़कर 2026 में 40 करोड़ हो जाएगी, जो 2021 में 30 करोड़ थी। ऐसे में एंड्रॉयड फोन के इस युग में डीपफेक से बचना बहुत ही जरूरी है। एंड्रॉयड फोन के कारण आज आर्थिक अपराध भी काफी बढ़ गए हैं। लोगों के बैंक खाते खाली हो रहे हैं। आज एआई-जनित साइबर हमले का एक उदाहरण डीपफेक है।व्यवसाय जगत में, साइबर अपराधी किसी व्यक्ति विशेष का रूप धारण करने, व्यवसाय संचालन में बाधा डालने, किसी कंपनी के बारे में नकारात्मक जानकारी फैलाने और पैसे चुराने के लिए डीपफेक का उपयोग कर सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि व्यवसाय डीपफेक जैसे एआई-सक्षम साइबर खतरों से बचाव के लिए जवाबी उपाय लागू करना शुरू करें। आज डीपफेक डिटेक्टर तकनीक से डीपफेक को पकड़ा जा सकता है। वास्तव में डीपफेक की चुनौती से निपटने के लिए इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को ज्यादा सजग रहना होगा। वहीं, पुलिस और जांच एजेंसियों को साइबर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए अत्याधुनिक तकनीक के साथ अधिक सक्षम बनना होगा। सोशल मीडिया पर डीपफेक वीडियो की पहचान हम स्वयं भी कर सकते हैं। इसके लिए वीडियो पर दिखने वाले शख्स के चेहरे के एक्सप्रेशन, आंखों की बनावट और बॉडी स्टाइल पर ध्यान देना होता है।आमतौर पर ऐसे वीडियो में बॉडी और चेहरे का कलर मैच नहीं करता है, जिससे हम इसे आसानी से पहचान सकते हैं। साथ ही, लिप सिंकिंग से भी डीपफेक वीडियो को आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके अलावा, डीपफेक वीडियो और फोटो को पहचानने में दिक्कत आ रही है, तो हम इस संबंध में एआई टूल का सहारा ले सकते हैं। आज कई एआई टूल ऐसे हैं, जो आसानी से एआई जेनरेटेड वीडियो की पहचान कर सकते हैं।

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