संपादकीय

हिंदी हमारी सनातन संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक है

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर,कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। दरअसल भारत में हिंदी को आधिकारिक दर्जा मिलने की खुशी में यह दिवस मनाया जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि हिन्दी को भारत की संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा के रूप में अंगीकार किया था, यही कारण है कि भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी, भारत की राजभाषा यानी कि आफिशियल लेंग्वेज है और हमारे देश की विविधता का प्रतीक है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो आज भारत की करीब 57 फीसदी से ज्यादा आबादी हिन्दी बोलती और समझती है। आजादी के आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश को एकजुट करने में हिन्दी की भूमिका काफी महत्वपूर्ण व अहम् रही है और यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है।यह भाषा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का भी अनूठा व नायाब प्रतीक है।हिंदी दिवस के मौके पर हमें अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित रहना चाहिए। हिंदी हमारे संविधान का अधिकार है और यह हमें राष्ट्रीय एकता की ओर बढ़ाती है। हिंदी को सीखना और उसे सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी और हमारा परम कर्तव्य भी है, ताकि हमारी समृद्ध भाषा धरोहर को बचाया और इसे देश में अधिकाधिक बढ़ावा दिया जा सके, प्रचलित और प्रसारित किया जा सके। जानकारी देना चाहूंगा कि इस बार हिंदी एवं तृतीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन संयुक्त रूप से पुणे, महाराष्ट्र में 14 एवं 15 सितंबर 2023 को आयोजित किया जा रहा है। जानकारी देना चाहूंगा कि माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी की अध्यक्षता में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा हिंदी दिवस 2022 एवं द्वितीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का भव्य आयोजन सूरत, गुजरात में किया गया था। इसी प्रकार से प्रथम अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन वाराणसी में किया गया था। संविधान के अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और इसकी लिपि देवनागरी है।संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतराष्ट्रीय रूप है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि जनतांत्रिक आधार पर हिंदी विश्व भाषा है क्योंकि उसके बोलने-समझने वालों की संख्या संसार में तीसरी है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि विश्वभर की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था ‘एथ्नोलॉग’ के द्वारा हिंदी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा बताया गया है।यह बात हम सभी को गौरवान्वित करती है कि विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिंदी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा है। आज हिंदी शनै:शनै: सर्वव्यापी होती चली जा रही है, हिंदी में प्रचुर साहित्य की उपलब्धता है, यह सरल,सहज और वैज्ञानिक शब्दावली लिए बहुत ही दमदार भाषा है। यहां तक कि बनावट की दृष्टि से सरलता और वैज्ञानिकता और सब प्रकार के भावों को प्रकट करने की सामर्थ्य आदि सभी गुण हिंदी में समाहित हैं।हम में से बहुत से लोगों का यह मानना है कि हिंदी हमारे देश की राष्ट्रभाषा है, लेकिन यह सच नहीं है। हिंदी हमारी मातृभाषा है, देश की प्रथम राजभाषा है और यह राष्ट्रभाषा के रूप में कहीं भी अब तक पंजीकृत नहीं है। वास्तव में सच तो यह है कि भारत की यह आर्टिकल लिखने तक कोई भी आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा नहीं है। बावजूद इसके हिंदी इस देश की आत्मा है, प्राण है।एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की अनूठी पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, हमारी सनातन संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है।
वास्तव में हिंदी हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है।यह विडंबना ही है कि आज हिंदी देश की राजभाषा होने के बावजूद हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है। हिंदी जानते हुए भी लोग हिन्दी में बोलने, पढ़ने या काम करने में हिचकने लगे हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि हिंदी अनुवाद की नहीं बल्कि संवाद की भाषा है। किसी भी भाषा की तरह हिंदी भी मौलिक सोच की भाषा है।विश्‍वभर में करोड़ों की संख्‍या में भारतीय समुदाय के लोग एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हिन्‍दी को एक नई पहचान मिली है। यूनेस्‍को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्‍यता मिली है।आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। ग्रियर्सन हिंदी के बारे में अपने विचार रखते हुए यह कहते हैं कि ‘हिंदी संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है।’ महात्मा गांधी जी ने एक बार यह बात कही थी कि ‘हिंदुस्तान के लिए देवनागरी लिपि का ही व्यवहार होना चाहिए, रोमन लिपि का व्यवहार यहाँ हो ही नहीं सकता।’ उनका यह मानना था कि राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है। (जस्टिस) कृष्णस्वामी अय्यर ने हिंदी के बारे में एक बार यह कहा था कि ‘समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है।’वाल्टर चेनिंग कहते हैं कि ‘विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र के राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता है।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि हिंदी आज सिर्फ साहित्य की भाषा नहीं है, बल्कि बाजार की भी भाषा है। उपभोक्तावादी संस्कृति ने विज्ञापनों को जन्म दिया, जिससे न केवल हिंदी का अनुप्रयोग बढ़ा, बल्कि युवाओं को रोजगार के नए अवसर भी मिले हैं। आज हिंदी सोशल नेटवर्किंग साइटस की भाषा है, मेडिकल, इंजीनियरिंग क्षेत्रों में भी हिंदी के प्रयोग को लगातार बढ़ावा मिल रहा है।
अगर हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या की बात की जाए तो विश्वभर में 75 करोड़ से भी ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं। इंटरनेट पर भी हिंदी का चलन दिनों-दिन तेजी से बढ़ रहा है। आज हिंदी समाचार पत्रों की भाषा है, पत्र पत्रिकाओं की भाषा है और पाठकों को यह जानकारी प्राप्त करके हैरानी होगी कि कुछ वर्ष पूर्व डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या करीब साढ़े पांच करोड़ थी, जो अब बढ़कर 15 करोड़ से भी ज्यादा हो जाने का अनुमान है। फिल्म जगत में तो हिंदी कायम है ही। हिंदी के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए विदेशी लोगों को भी आज हिंदी सीखनी पड़ी रही है। उधोगों, वाणिज्यिक जगत, कारपोरेट जगत, शिक्षा आज हिंदी का उपयोग कहां नहीं हो रहा है ? कोई भी क्षेत्र आज हिंदी से अछूता नहीं रह गया है। सच तो यह है कि भूमंडलीकरण अथवा वैश्वीकरण के दौर में हिंदी वैश्विक परिदृश्य में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना रही है।उपभोक्तावादी संस्कृति ने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में काफी योगदान दिया है। बाजार के दृष्टिकोण से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ विज्ञापनों और बाजार की भाषा को समझने के लिए लगातार हिंदी की ओर बढ़ रही हैं।अनुवाद की बढ़ती गुणवत्ता से हिंदी की स्थिति और बेहतर होती जा रही है। आज हिंदी में अनेक साफ्टवेयर बनाए जा रहे हैं, बहुत से अनुवाद टूल कंठस्थ जैसे टूल विकसित कर लिए गए हैं। थाईलैंड, हांगकांग, फिजी, सूरीनाम, मॉरिशस इत्यादि ऐसे देश हैं, जहाँ हिंदी भाषी प्रचुर मात्रा में उपस्थित हैं। विश्व के डेढ़ सौ से भी अधिक देशों में हिंदी के शिक्षण के लिए केंद्र खोले गए हैं जिस कारण हिंदी की व्यापकता दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही है। मॉरिशस हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, हिंदी सोसायटी (सिंगापुर), हिंदी परिषद (नीदरलैंड्स), हिंदी संगठन (मॉरिशस) आज के इस युग में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं में प्रमुख हैं‌। एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में छपे एक आर्टिकल के अनुसार ‘ आज दुनिया में लगभग साठ हजार भाषाएं किसी न किसी रूप में बोली और समझी जाती हैं, लेकिन आने वाले समय में नब्बे प्रतिशत से अधिक का अस्तित्व खतरे में है। भाषाओं के इस विलुप्तीकरण के दौर में हिंदी अपने को न केवल बचाने में सफल हो रही है, बल्कि उसका उपयोग-अनुप्रयोग निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह भाषा लगभग डेढ़ हजार वर्ष पुरानी है और इसमें डेढ़ लाख शब्दावली समाहित है। संप्रति हिंदी को अंतरराष्ट्रीय दर्जा प्राप्त है, क्योंकि यह अनेक विदेशी भाषाओं को न केवल स्वीकार करती, बल्कि विश्व की समस्त भाषाओं को आत्मसात करने की क्षमता रखती है। हिंदी के विकास के लिए विश्व की पैंतीस सौ विदेशी कृतियों का हिंदी में अनुवाद किया जा चुका है।’ यह हमें गौरवान्वित महसूस कराता है कि आज हिंदी बारह से अधिक देशों में बहुसंख्यक समाज की मुख्य भाषा है। सिंगापुर, यमन, युगांडा, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, जर्मनी, अमेरिका आदि देशों में हिंदी भाषी भारतीयों की संख्या दो करोड़ से अधिक है। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य के अनुसार ‘फिजी, गुआना, सूरीनाम, ट्रिनिडाड तथा अरब अमीरात इन छह देशों में हिंदी को अल्पसंख्यक भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा प्राप्त है।’ हिंदी भाषा को और अधिक बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2006 से 10 जनवरी को दुनियाभर में विश्व हिंदी दिवस मनाया जाने लगा है। जानकारी देना चाहूंगा कि दस जनवरी का दिन इसलिए चुना गया है कि 1975 में इसी दिन नागपुर में पहली बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था और इसी दिन की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में साल 2006 में भारत सरकार ने पहली बार इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था। इसके बाद से हर साल दस जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। बहरहाल यहां यदि हम एक अन्य आंकड़े की बात करें तो आज दुनियाभर में 100 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोल या समझ लेते हैं। इससे हिन्दी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान बनाने में कामयाब हुई है, लेकिन इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद भी आज हिंदी की स्वीकार्यता उतनी नहीं है जितनी इसकी गौरवशाली इतिहास, व्याकरणिक शुद्धियां और शानदार उपलब्धियां है। इसके लिए अभी लंबी लड़ाई लड़ना जरूरी लग रही है। खासकर भूमंडलीकरण के दौर में अंग्रेजी से प्रतिस्पर्धा हिंदी को काफी पीछे ले जा रही है। हमें यह बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि भाषा वही जीवित रहती है जिसका प्रयोग जनता करती हो।
भारत में लोगों के बीच संवाद का सबसे बेहतर माध्यम आज भी हिंदी ही है, क्यों कि यह हमारी मातृभाषा है इसलिए इसे ज्यादा से ज्यादा एक-दूसरे में प्रचारित प्रसारित करने की जरूरत है। अपने बोलचाल में हिंदी के उपयोग करने की जरूरत है ताकि उसकी जीवंतता और उपयोगिता बनी रहे। वैसे भाषा कोई भी हो कभी भी बुरी नहीं होती। सभी भाषाएं अपने आप में बहुत ही अच्छी हैं। इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन में अनेकानेक भाषाएं सीखनी चाहिए लेकिन अपनी मातृभाषा का तिरस्कार करके किसी अन्य दूसरी भाषा को अपनाना ठीक इसलिए नहीं है क्योंकि जो अभिव्यक्ति जितनी सहजता और सरलता से हम अपनी मातृभाषा में दे सकते हैं, उतनी हम किसी अन्य भाषा में कभी भी नहीं दे सकते हैं, अतः निज भाषा की उन्नति बहुत जरूरी है। अंत में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के शब्दों में यही कहूंगा कि -‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन। पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय।निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय। निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय।लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।’

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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