संपादकीय

धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन : !(26 सितंबर विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस विशेष)

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

26 सितंबर को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। वास्तव में इस दिवस को मनाने के पीछे जो कारण और उद्देश्य है वह यह है कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़े और अधिकाधिक लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। अब हम यहां बात करते हैं कि आखिर पर्यावरण स्वास्थ्य से यहां क्या मतलब है? तो जानकारी देना चाहूंगा कि पर्यावरण स्वास्थ्य का तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र की भौतिक, रासायनिक, जैविक और सांस्कृतिक स्थिति से है। खराब वायु गुणवत्ता, पारिस्थितिक विविधता का नुकसान, रासायनिक असंतुलन आदि जैसे पहलू किसी क्षेत्र के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पर्यावरणीय स्वास्थ्य के तीन सबसे महत्वपूर्ण प्रकारों में भौतिक पर्यावरण, जैविक पर्यावरण और सांस्कृतिक पर्यावरण शामिल हैं। इन प्रकारों का विश्लेषण करके पर्यावरणीय स्वास्थ्य को मापा जा सकता है। बहरहाल, यह बात हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि आज हमारा संपूर्ण विश्व किस प्रकार से विभिन्न पर्यावरणीय समस्याओं के साथ ही विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का भी सामना कर रहा है और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण समय के साथ लगातार बढ़ रही मानवीय गतिविधियाँ हैं। मानव विकास की चकाचौंध में पर्यावरण को लगभग लगभग भूला सा बैठा है और हम पर्यावरण संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। आज हमारा पर्यावरण प्रदूषित है और पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई, खनन, धरती के विभिन्न संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हम करते चले जा रहे हैं लेकिन कभी भी परिणामों पर गौर नहीं करते। आज हर तरफ कंक्रीट की दीवारें खड़ी की जा रही हैं। पानी का असीमित दोहन हो रहा है। जगह जगह ट्यूबवैल लग चुके हैं और पानी का लेवल धरती में बहुत नीचे जा चुका है। बहुत से स्थानों पर तो पानी की भयंकर कमी हो गई है। आज पहाड़ों को लगातार काटा जा रहा है। बांध, सुरंगें, सड़कें बनाई जा रही हैं। औधोगिक विकास के बीच आज चरागाह और वन भूमियों में बहुत कमी देखने को मिल रही है। वन्य जीवों, प्राणियों के जीवन पर बन आई है। प्राकृतिक संपदा को हम सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं। भूमि प्रदूषण,जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण और वायु प्रदुषण लगातार बढ़ रहा है। आज ओजोन परत में छेद हो चला है। ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु में लगातार परिवर्तन आ रहा है। धरती का तापमान बढ़ने के खतरे हम सभी जानते हैं लेकिन बावजूद इसके भी हम हमारे पर्यावरण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। हाल फिलहाल, विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस के बारे में जानकारी देना चाहूंगा कि यह दिन पहली बार वर्ष 2011 में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ द्वारा मनाया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में लोगों का कल्याण करना है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2022 वर्ष का विषय ‘सतत् विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिये पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाना’ था।यह आवश्यक है दुनिया समझे कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के बीच अभिन्न संबंध है। इसलिये सभी समुदायों के स्वस्थ जीवन हेतु हरित पुनर्प्राप्ति में निवेश करना आवश्यक है। यदि हम यहां भारत के पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बात करें तो पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 में भारत 18.9 के मामूली स्कोर के साथ 180 देशों की सूची में सबसे अंतिम स्थान पर है। यह बहुत ही सोचनीय है कि भारत सूची में म्याँमार (179वें), वियतनाम (78वें), बांग्लादेश (177वें) और पाकिस्तान (176वें) से भी पीछे है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार के स्तर पर कुछ किया नहीं जा रहा है। आज पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है लेकिन पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी अकेले सरकार की ही नहीं है, हम सभी को सामूहिक रूप से इसके लिए आगे आना होगा। आज हमारे देश में नगर वन उद्यान योजना,राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम,हरित कौशल विकास कार्यक्रम,मृदा बचाओ आंदोलन जैसे अनेकानेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कितनी बड़ी बात है कि भारत ने वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने का लक्ष्य रखा है और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि भारत संसार के उन थोडे से देशों में से एक है जिनके संविधानों में पर्यावरण का विशेष उल्लेख है। भारत ने पर्यावरणीय कानूनों का व्यापक निर्माण किया है तथा हमारी नीतियाँ पर्यावरण संरक्षण में भारत की पहल दर्शाती हैं। इसी क्रम में अनुच्छेद 48 ए राज्य सरकार को निर्देश देता है कि वह ‘पर्यावरण की सुरक्षा और उसमें सुधार सुनिश्चित करे, तथा देश के वनों तथा वन्यजीवन की रक्षा करे’। अनुच्छेद 51 ए (जी) नागरिकों को कर्तव्य प्रदान करता है कि वे ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे तथा उसका संवर्धन करे और सभी जीवधारियों के प्रति दयालु रहे।’ पर्यावरण संरक्षण करना हम सभी का कर्तव्य है। आज के समय में बढते औद्योगिकरण, शहरीकरण तथा जनसंख्या वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता में निरंतर कमी आ गई है। पर्यावरण की गुणवत्ता की इस कमी में प्रभावी नियंत्रण व प्रदूषण के परिप्रेक्ष्य में सरकार ने समय-समय पर अनेक कानून व नियम बनाए हैं लेकिन इन नियमों, कानूनों का पालन करना हम सभी का परम कर्तव्य और दायित्व है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ पर्यावरण में जीने का मौलिक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गये ‘जीवन जीने के अधिकार’ में निहित है। यह बहुत ही संवेदनशील है कि पर्यावरण संबंधी सभी विधेयक होने पर भी भारत में पर्यावरण की स्थिति काफी गंभीर बनी हुई है। नाले, नदियां तथा झीलें औद्योगिक कचरे से भरी हुई हैं। दिल्ली में यमुना नदी बहुत प्रदूषित है। वन क्षेत्र में कटाव लगातार बढता जा रहा है। पेड़-पौधों की कटाई, खनन के लिए अनेक माफिया आज सक्रिय हैं। आज देश में पर्यावरण नीति (2004) को गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है। पर्यावरण को सुरक्षित करने के प्रयासों में आम जनता की भागीदारी भी सुनिश्चित करने की जरूरत है। अंत में यही कहूंगा कि सब प्राणियों पर उपकार करने वाले वृक्षों का जन्म श्रेष्ठ है। ये वृक्ष धन्य हैं कि जिनके पास से याचक कभी निराश नहीँ लौटते। तभी शायद संस्कृत में बड़े ही खूबसूरत शब्दों में कहा गया है कि -‘अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम्।धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन: ॥’

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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