संपादकीय

कोरोना से मुक्ति का निःशुल्क इलाज

-अविनाश राय खन्ना
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा

चीन की धरती से उत्पन्न होने वाला कोरोना वायरस धरती के लगभग सभी देशों को एक महामारी का शिकार बनाने में सक्षम हो चुका है, ऐसी कल्पना शायद कभी किसी ने नहीं की होगी। तथ्य बताते हैं कि किसी विश्व युद्ध में भी इतनी बड़ी संख्या में देश प्रभावित नहीं हुए। आज इण्टरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 194 देशों में यह वायरस पहुँच चुका है। चीन, इटली और अमेरिका इस वायरस से प्रभावित होने वाले प्रथम, द्वितीय व तृतीय देश हैं। इसके अतिरिक्त 25 देश ऐसे हैं जहाँ कोरोना प्रभावित मरीजों की संख्या एक हजार से अधिक पहुँच चुकी है। भारत में कोरोना मरीजों की संख्या लेख लिखने तक 600 से कम ही है। सरकार का प्रयास है कि यह गति रूक जानी चाहिए। जनसंख्या की दृष्टि से भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है और चीन का पड़ोसी भी है। चीन में 81 हजार से अधिक लोग प्रभावित हो चुके हैं और 3 हजार से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं। इटली और अमेरिका जैसे दूरस्थ देशों में भी कोरोना का प्रभाव अधिक तीव्र गति के साथ फैला। इटली में विश्व की सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधाओं के बावजूद लगभग 70 हजार प्रभावित लोगों में से लगभग 7 हजार लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अमेरिका में लगभग 55 हजार प्रभावित लोगों में से 700 से अधिक मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं।
कोरोना के बढ़ते प्रभाव के दृष्टिगत मार्च के प्रथम सप्ताह में ही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक ट्वीट किया था कि कोरोना से डरने की आवश्यकता नहीं अपितु निवारण के उपायों को लागू करने की आवश्यकता है। उनका यह संदेश उनकी कार्यशैली की मूल मानसिकता को दर्शाता है। 194 देशों के आंकड़ों का अध्ययन करने का निर्देश देते समय उन्होंने विशेषज्ञ दलों को दो प्रमुख निर्देश दिये। प्रथम, उन तथ्यों का अध्ययन किया जाये कि जिन देशों में इस महामारी ने तीव्र गति के साथ अपना फन फैलाया। वहाँ कोरोना की इस गति के क्या कारण हैं। इसी प्रकार उन देशों का भी अध्ययन किया जाये जो कोरोना को फैलने से रोकने में सफल हुए।
जिन देशों में इस महामारी की गति तीव्र रही वे देश अत्यन्त विकसित देश हैं। चीन, इटली, अमेरिका, स्पेन, जर्मन, ईरान, फ्रान्स, स्विट्जरलैण्ड और इंग्लैण्ड आदि सभी पूर्ण विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं। जहाँ चिकित्सा सेवाओं का भी किसी प्रकार का अभाव नहीं है। इतनी सम्पन्नता के बावजूद इन देशों में कोरोना फैलने का मुख्य कारण था कि वहाँ के नागरिकों ने घरों में बन्द रहने के सरकारी निर्देशों को गम्भीरता से नहीं लिया। सरकारों ने भी संवेदनशीलता के साथ भावुक अपीले करके जनता को समझाने का प्रयास नहीं किया। शोध का दूसरा दृष्टिकोण उन देशों पर केन्द्रित था जहाँ यह महामारी अधिक नहीं फैली। ऐसे देश प्रायः छोटे देश हैं। ये देश अधिक विकसित भी नहीं हैं, परन्तु इन देशों के नागरिकों ने क्षेत्रीय लाॅकडाउन को पूरी तरह सफल कर दिखाया। बस इन्हीं दोनों द्वन्दों से सबक लेते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने पहली बार 18 मार्च, 2020 को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए 22 मार्च का दिन जनता कर्फ्यू के रूप में आयोजित करने का संकल्प दिलाया। इतना ही नहीं उन्होंने एक मनोवैज्ञानिक राजनेता होने के नाते भारत के नागरिकों को संकल्प और संयम जैसे आध्यात्मिक उपदेश भी दिये। वास्तव में भारतीय संविधान के अनुच्छेद-51ए में सम्मिलित मूल कत्र्तव्यों में भी नागरिकों का यह कर्तव्य बताया गया है कि वे राष्ट्र की रक्षा और सेवा के लिए आह्वान होने पर सरकार का साथ दें। भारत के नागरिक पहले भी अनेकों अवसरों पर साहस और संयम का परिचय देकर देश को विकट परिस्थितियों से उबरने में सहयोग करते रहे हैं। संकल्प और संयम के साथ-साथ उन्होंने भारत के नागरिकों को भारतीय चिकित्सकों और सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के समर्थन में सायं 5 बजे 5 मिनट ध्वनि नाद के लिए भी आह्वान किया। भारतीय जनता ने पूरे उत्साह के साथ प्रधानमंत्री जी के इस आह्वान पर बढ़-चढ़कर भाग लिया। भारतीय जनता के इस उत्साह को देखकर बड़े-बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी हैरान रह गये। भारत की जनता में इस महामारी से लड़ने के लिए उमड़े उत्साह को देखकर 22 मार्च को ही देश के लगभग 75 जिलों तथा सभी बड़े महानगरों में लाॅकडाउन की घोषणा कर दी गई। 24 मार्च को सायंकाल प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए पूरे देश में लाॅकडाउन प्रक्रिया को और अधिक कड़े रूप में लागू करने का आह्वान किया। इन सभी अपीलों को करते समय प्रधानमंत्री जी हाथ जोड़कर जनता से निवेदन करते समय बड़े भावुक दिखाई दिये। उनके चेहरे पर चिन्ता का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उनके मन में किसी भी प्रकार से देश के एक-एक परिवार और एक-एक नागरिक को इस महामारी की चपेट में आने से रोकने की तीव्र इच्छाशक्ति दिखाई दे रही थी। उन्होंने स्वयं कहा कि मेरी इस अपील को प्रधानमंत्री का आदेश नहीं अपितु अपने परिवार के एक सदस्य के रूप में करबद्ध निवेदन समझें। राजनीतिक रूप से भी उन्होंने कई कड़े निर्णय लिये। 23 मार्च से संसद की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई। 26 मार्च को निर्धारित राज्यसभा के चुनाव भी स्थगित कर दिये गये। देश के सभी धर्मस्थलों ने भी इस राष्ट्रीय विपत्ति में सहयोग करते हुए मंदिरों आदि को बन्द कर दिया है।
मेरा सभी देशवासियांे से निवेदन है कि कोरोना नामक महामारी को वैज्ञानिक रूप से समझने का प्रयास करें। यह सारे विश्व के सामने नई समस्या है। जिसकी अभी तक एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में कोई दवाई भी नहीं बनी जो इसके प्रसार को रोक सके। इसके प्रसार को रोकने का एक ही उपाय है कि अपने परिवार में ही कुछ सप्ताह तक सीमित रहें। यदि परिवार में एक व्यक्ति भी कोरोना से ग्रसित हो जाता है तो जब तक उसके लक्षण दिखाई देंगे तब तक वह व्यक्ति परिवार और समाज के सैकड़ों अन्य लोगों को भी प्रभावित कर चुका होगा। दूसरी तरफ जब परिवार का एक व्यक्ति रोगी होता है तो उसकी रक्षा के लिए लाखो रुपये खर्च करने के लिए हम तैयार रहते हैं। इसलिए अपनी और पूरे समाज की रक्षा के लिए हमें कुछ सप्ताह का यह कष्ट सहन करने में संकोच नहीं करना चाहिए। परिवार के अन्दर रहकर एकांकी जीवन बिताने का यह सहयोग ही कोरोना महामारी से बचे रहने की एकमात्र औषधि है। इस औषधि का कोई शुल्क नहीं है। इस औषधि के लिए आपको कहीं घर से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। इसके लिए कोई टेस्ट आदि भी नहीं करवाने पड़ेंगे। मुफ्त की इस दवाई से हम बिना कष्ट के एक भयंकर महामारी से बच सकते हैं। यहाँ तो हमारा व्यक्तिगत बचाव हमारी सबसे बड़ी समाजसेवा माना जायेगा। इसलिए लाॅकडाउन रूपी मुफ्त की दवाई से संकोच नहीं करना चाहिए। परिवारों में बिताया गया कुछ सप्ताह का यह एकांकी जीवन आपको कई वर्षों तक याद आता रहेगा। भागदौड़ की जिन्दगी से परे हटकर कोरोना ने आपको पारिवारिक एकता और परस्पर खुशियाँ बांटने का एक अवसर दिया है। ऐसा मानकर हमें लाॅकडाउन को सहजता के साथ लेना चाहिए।
भारतीय जनमानस में अनेकों घरेलू उपाय प्रचलित देखे जा सकते हैं। लाॅकडाउन का समय हम फेसबुक और वाॅटसएप आदि जैसे सामाजिक मेल-मिलाप वाले साधनों का उपयोग करके खुद भी जागृत रह सकते हैं और अन्य देशवासियों को भी जागरूक कर सकते हैं। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि हम सभी भारत माता के सपूत संकल्प और संयम दिखाने में सबसे अग्रणी हैं। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि निकट भविष्य में जब कोरोना से संघर्ष के आंकड़े सामने आयेंगे तो भारत आप सबके बल पर विश्व का प्रथम शक्तिशाली, संघर्षशील राष्ट्र सिद्ध होगा।

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