संपादकीय

28 सालों में मानवाधिकार न्यायालय स्थापित नहीं हो सका

विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसम्बर)

-अख्तर खान ‘अकेला’
एडवोकेट, पत्रकार व लेखक

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर ऐ जमाना हमारा, सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा। जी हाँ दोस्तों! हम यानी आबिद अब्बासी और अख्तर खान अकेला एक और एक ग्यारह हुए, अटूट हुए, बेबाक हुए, निर्भीक नीडर हुए, खिदमत ऐ खल्क यानी आम आदमी की सेवा के लिए समर्पित हुए। यह हमारे लिए खुदा का इनाम है फख्र की बात है, गौरव की बात है। खुदा ने हमें इंसानियत का जज्बा दिया। इंसानी हुकुकों मानवाधिकारों को कुचलने वालो के खिलाफ, हिम्मत दी, ताकत दी, इसके लिए हम खुदा के शुक्रगुजार है।
हम बात कर रहे है 10 दिसम्बर को विश्व मानवाधिकार दिवस की। मानवाधिकार जो कुरआन ने दुनिया को दिये, मानवाधिकार जो पैगम्बर ऐ इस्लाम हुजूर स. अ. व. मोहम्मद साहिब, भगवत गीता, श्री राम, गांधी, कृष्ण, यीशु, हमारे देश के संविधान ने हमें दिए। जियो और जीने दो बस इन्ही अधिकारों के संरक्षण के लिए इस्लाम और भारत के संविधान से सीख लेकर हमने दूसरों के जुल्म को अपनी लड़ाई समझ कर लड़ने के लिए एक मन बनाया। अपने साथी आबिद अब्बासी और मैं खुद एडवोकेट अख्तर खान अकेला, संजीव जैन, कुछ पत्रकार, नईमुद्दीन ऐडवोकेट सहित कुछ वकील, कुछ सियासी खिदमतगारों को साथ लिया। ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी यानी मानव कल्याण के लिए कार्यरत संस्था का गठन वर्ष 1990 में किया। आम लोगो के दुःख दर्द को अखबार के जरिये, अदालती मुकदमो के जरिये ,सभाओ में ,खूब उठाया। प्रतिदिन पांच पत्र लिखने का मानस बनाया। केंद्र, राज्यसरकार और जिम्मेदारानान, को पत्र लिखने की आदत ने कई समस्याओ का समाधान किया।
न्यूयार्क, जेनेवा सम्मेलनों में ,मानवाधिकार गठन के निर्देशो और भारत की सन्धि के बाद भीदयहां मानवाधिकार आयोग का गठन 1961 से नहीं हुआ था।हमारी चिट्ठी पूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय राजीव गांधी ने स्वीकार की, मन बनाया और कार्यवाही शुरू हुई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन के पूर्व उनका बधाई सन्देश आया फिर उनके जाने के बाद एक मुकम्मल कानून बनाया गया और वर्ष 1993 में हमारा संघर्ष पूरा हुआ। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहले चेयरमेन जस्टिस रंगनाथ मिश्र बनाये गए। मुझे गर्व है राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग में पहली शिकायत कोटा में एक बाबू ईरानी को पुलिस अधिकारियो द्वारा उत्पीड़ित करने के मामले में हमारी ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी के जरिये दर्ज हुई। हिंदुस्तान में सबसे पहली शिकायत दर्ज होने के बाद मानवाधिकार जांच दल सबसे पहले कोटा में आया। मानवाधिकार आयोग का उत्पीड़न के मामले में इन्साफ को लेकर पहला फैसला हमारी शिकायत पर मिला। बाबु ईरानी को पुलिस उत्पीड़न नाजायज हिरासत का शिकार माना गया। कार्यवाही हुई इंसाफ मिला, मुआवजा मिला, दोषी लोगो के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज हुआ।
कोटा जेल के हालात सुधारने के लिए ह्यूमन रिलीफ सोसायटी की शिकायत पर मानवाधिकार आयोग ने राजस्थान हाईकोर्ट में इसे जन हित याचिका के रूप में भेज दिया। जस्टिस प्रशांत अग्रवाल ने कोटा जजशिप में रहते हम लोगो के बयांन रिकॉर्ड किये, जांच हुई और कोटा जेल में बजट एवं नयी व्यवस्थाएं दी गयी। केदियो को सुरक्षा, चिकित्सक, कम्बल, खाने के सामान दिए गए। कोटा कोर्ट परिसर में अलग से भवन लोक अप बनाया गया। हाईकोर्ट ने आवश्यक निर्देश जारी किये हथकड़ी पहनाने पर डी के बसु में गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकारों के संरक्षण को लेकर आवश्यक निर्देश जारी करवाये।
गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के वक्त से मुफ्त विधिक सहायता मिले इसके लिए विधिक न्यायिक प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस शिवकुमार के जरिये, ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी ने शीला वर्से के निर्देशो के अनुसार थानो, जेल और रिमांड के वक्त भी सुनवाई के लिए वकील उपलब्ध करवाने के निर्देश जारी करवाये। सजा कार्यकाल से अधिक समय होने पर भी जेल में सुनवाई के नाम पर बन्द रहने वाले, शांति भग मामले के दुरूपयोग मामले में, पुलिस की मनमर्जी के खिलाफ आवश्यक निर्देश लेकर कार्यवाही करवाई गयी।
शहर की सड़को पर आवारा जानवर, सर्दी से ठिठुरते लोगो की रैनबसेरा व्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, सड़क पर घायलो को अस्पताल पहुंचाने का मामला, गन्दगी से फेल रही बीमारियों की रोकथाम का मामला, अस्पताल अव्यवस्था का मामला, उपकरण नहीं होने के मामले, हाईटेंशन लाइन वक्फ नगर से हटाने के मामले,दुर्घटना मामले में तुरतं पुलिस अधिकारी द्वारा मुआवजे के लिए अंतरिम रिपोर्ट ,मोटर यान दुर्घटना मामले में भेजने के निर्देश, प्रकाश सिंह वाले मामले के निर्देशो के तहत राजस्थान पुलिस कानून बनाने का मामला,उसमे अंकित पुलिस समितियां ,जवाब देही समितियां, कल्याण कोष सहित कई समितियों के मामले ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी ने उठाये। राष्ट्रीय महिला आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, जनहित याचिकाएं, राज्य मानवाधिकार आयोग, सभी में शिकायते दर्ज कर लोगो इंसाफ दिलाया। दलित महिला, बच्चो, अल्पसंख्यको के उत्पीड़न के मामले हो ह्यूमन रिलीफ सोसाइटी ने बेबाकी से जनहित याचिकाओं और शिकायतों के जरिये उठाये।
पच्चीस साल पूर्व गठित राष्ट्रिय मानवाधिकर आयोग के गठन के बाद भी मानवाधिकार आयोग खुद इस कानून को देश में लागू करवाने में नाकामयाब रहा है। एक सो से भी अधिक ज्ञापन और चिट्ठियां हमारे द्वारा राष्ट्रिय मानवाधिकार कानून को सशक्त करने के लिए अधिनियम के विधिक प्रावधानों के तहत, मानवाधिकार अदालतों का प्रत्येक जिले में गठन को लागू कर यहां विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति की मांग हम उठाते रहे लेकिन अफसोस अभी तक पच्चीस साल के इस लम्बे सफर के बाद भी किसी भी सरकार या आयोग के चेयरमेन ने इस मामले में कोई कारगर कदम नहीं उठाया है।
राजस्थान में मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ। प्रथम चेयरमैन श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा को सुविधाएं नहीं दी गयी। तात्कालिक मुख्यमंत्री भेरो सिंह शेखावत से इस मामले में कई बार ज्ञापन देकर व्यवस्थाएं लागू करवाई गयी। हाल ही में गठित पुलिस जवाबदेही समति में जस्टिस भंवरू खान को बना तो दिया लेकिन सुविधाएं, स्टाफ नहीं दिए गए, इसके लिए संघर्ष जारी है।
ह्यूमन रिलीफ सोसायटी मानवाधिकर संरक्षण क्षेत्र में होने वाली हर सेवा के लिए हमेशा तत्पर है। एमेनेस्टी इंटरनेशनल से लेकर कई संस्थाओ की सेमिनारों में अव्वल रहे है। शिकायतों में कई बढे मगरमच्छ फंसे ,उन्होंने आंसू बहाये, धमकियां दी नुकसान भी किया, लालच भी दिए। लेकिन आप लोगो का प्यार, आबिद अख्तर की अटूट दोस्ती, आत्मविश्वास और अल्लाह का करम रहा के हम अपने कर्तव्यों के प्रति अटल रहे।
आप भी विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर एक पत्र जरूर डाले कि पच्चीस साल बने कानून के प्रावधान में जब मानवाधिकार हनन के मामलो की त्वरित सुनवाई का प्रावधान रखते हुए अदालतों के गठन का विधिक प्रावधान और सुनवाई संचालन के लिए विशेष लोकअभियोजक का प्रावधान है तो इसे पच्चीस सालो में अब तक क्रियान्वित क्यों नहीं किया गया है। सरकार आखिर मानवाधिकार हनन करने वालो को दण्डित करने में देरी क्यों करवाना चाहती है? ऐसे लोगो के खिलाफ त्वरित फैसले सरकार क्यों नहीं चाहती है? अफसोस कि अगर खुद मानवाधिकार आयोग पच्चीस सालो में अपने कानून को लागू करवाने में अक्षम साबित हुआ हो तो फिर आगे उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है!
मानवाधिकार पाठ्यक्रम स्कूलों कॉलेजो में पढ़ाने और गोष्ठियां कराकर संरक्षण का मामला हो सभी मामलो में कार्यवाही की गयी है। हम पुलिस उत्पीडन, पुलिस के खिलाफ उत्पीड़न, पुलिस के काम के घण्टों, उन्हें छुट्टियां नहीं मिलने के मामले में भी उनके इन्साफ को लेकर संघर्षरत हैं। हमे गर्व है के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग हो या फिर राज्य मानवाधिकार आयोग पहली शिकायत हमारी ही दर्ज हुई और निस्तारण भी पहले हमारी शिकायत का ही हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *