संपादकीय

और बेहतर होते भारत -श्रीलंका संबंध !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)

विश्व के दो प्रमुख देशों अमेरिका और फ्रांस के बाद अब भारत और श्रीलंका के संबंधों में मजबूती देखने को मिल रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि आर्थिक संकटों का सामना करने के बाद पिछले दिनों ही श्रीलंका के राष्‍ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 20-21 जुलाई 2023 को दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आए थे। श्रीलंका के आर्थिक संकट का सामना करने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा थी। वास्तव में,श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, जिन्होंने बतौर श्रीलंका के राष्ट्रपति अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है,की भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंध पहले से कहीं और अधिक मजबूत हुए हैं। दरअसल, दोनों देशों ने हाल ही में समग्र आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देने के साथ साथ ही अनेक मसलों पर अहम् बातचीत की है। विक्रमसिंघे की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण रही है क्यों कि विक्रमसिंघे ने चीन न जाकर भारत को अधिक महत्व देते हुए यहां की यात्रा की है। यहां पाठकों को यह जानकारी भी देना चाहूंगा कि आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका को पूर्व में भारत ने बड़े स्‍तर पर मदद की थी। जानकारी देना चाहूंगा कि भारत की तरफ से श्रीलंका को करीब चार अरब डॉलर की वित्तीय सहायता दी गई थी, जो अपने आप में बहुत बड़ी सहायता है, वहीं चीन ने श्रीलंका पर अपने प्रोजेक्ट्स थोंपकर श्रीलंका को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का एक प्रकार से झांसा ही दिया। उल्लेखनीय है कि भारत ने अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 2.9 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल करने में भी श्रीलंका को सहायता की गारंटी भी दी थी। विक्रमसिंघे यह बात भी अच्छी तरह से जानते हैं कि जब श्रीलंका खराब आर्थिक दौर से गुजर रहा था तब भारत ने ईंधन, गैस और खाद्य संकट दूर करने में तथा अन्य जरूरी चीजों की श्रीलंका को समय पर आपूर्ति से श्रीलंका के आर्थिक हालात काफी हद तक सुधरे।श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे यह बात भी अच्छी तरह से समझते हैं कि आज के समय विश्व पटल पर भारत एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और श्रीलंका और भारत दोनों अच्छे पड़ोसी भी हैं। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि पिछले कुछ समय से श्रीलंका लगातार चीन के पाले में ही जा रहा था। यहां तक कि राजपक्षे ब्रदर्स के शासनकाल में तो श्रीलंका चीन का बहुत बड़ा हिमायती था, लेकिन आर्थिक संकट के समय चीन ने श्रीलंका को ठेंगा दिखा दिया। यहां चीन के बारे में बता दूं कि चीन पहले से ही श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक रहा है, वर्ष 2010-2019 के दौरान चीन का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 23.6% हिस्सा था, जबकि भारत का हिस्सा 10.4% था। लेकिन अब चीन के प्रति श्रीलंका के विश्वास में लगातार कमी आई है और श्रीलंका को यह महसूस होने लगा है कि भारत ही उसका एक सच्चा मित्र व हितैषी पड़ोसी है।भारत की बड़ी आर्थिक मदद से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पटरी पर आईं है। यह बात सभी जानते हैं कि भारत के श्रीलंका के साथ सदियों से काफी घनिष्ठ धार्मिक, व्यापारिक और राजनीतिक संबंध भी रहे हैं। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध रहे हैं, श्रीलंका के वासी अपनी विरासत भारत से जोड़ते हैं। बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण धर्म है। दोनों देशों के आर्थिक संबंधों की यदि हम बात करें तो अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका अपने 60% से अधिक के निर्यात हेतु भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाता है। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है। समय समय पर दोनों देश आपस में सेनाभ्यास भी करते रहे हैं। श्रीलंका बिमस्टेक और सार्क जैसे समूहों का सदस्य भी है, जिनमें भारत अग्रणी भूमिका निभाता रहा है।वर्तमान में भारत-श्रीलंका संबंधों के बीच राजनयिक संबंधों के भी 75 साल पूरे हो रहे हैं। श्रीलंका अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत रखने के लिए काफी हद तक भारत पर आश्रित रहा है। जानकारी देना चाहूंगा कि श्रीलंका के राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच पशुपालन एवं डेयरी तथा नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में मिलकर काम करने के लिए संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए हैं। भारत और श्रीलंका के बीच महत्वपूर्ण जिन एम ओ यू का आदान-प्रदान हुआ है उनमें नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग पर एम ओ यू श्रीलंका के त्रिंकोमाली जिले में आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिए एम ओ यू,श्रीलंका में यूपीआई आवेदन स्वीकृति के लिए एनपीसीआई इंटरनेशनल पेमेंट्स लिमिटेड (एन आई पी एल) और लंका पे के बीच नेटवर्क टू नेटवर्क समझौता तथा सैमपुर सौर ऊर्जा परियोजना के लिए ऊर्जा परमिट शामिल हैं।भारत और श्रीलंका ने ‘प्रमोटिंग कनेक्टिविटी,केटलाइसिंग प्रोस्पेरिटी’ शीर्षक से एक विज़न दस्तावेज़ अपनाया है, जो भारत और श्रीलंका के बीच आर्थिक साझेदारी को बढ़ावा देने के लिए समुद्री, वायु, ऊर्जा और लोगों से लोगों की कनेक्टिविटी को मजबूत करेगा।इसका उद्देश्य पर्यटन, बिजली, व्यवसाय, उच्च शिक्षा और कौशल विकास में आपसी सहयोग को गति देना है। विजन डाक्यूमेंट क्रमशः पांच स्तंभों यथा समुद्री और हवाई कनेक्टीविटी, ऊर्जा और बिजली कनेक्टिविटी, लोगों से लोगों की कनेक्टिविटी तथा श्रीलंका में यूपीआई की स्वीकृति पर समझौता आदि पर आधारित है। कहना ग़लत नहीं होगा कि दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी, ऊर्जा एवं आसान वित्तीय लेनदेन काम करने पर सहमति बनी है। इस यात्रा की एक और बड़ी विशेषता है कि अब श्रीलंका में भारतीय रुपए में कारोबार किया जा सकेगा।श्रीलंका चाहता है कि भारत उसकी बुनियादी ढांचा परियोजना में निवेश करे। जापान, पेरिस क्लब के साथ भारत भी आधिकारिक ऋणदाता समिति का सदस्य है। ऐसी स्थिति में श्रीलंका को ऋण दिलाने के क्षेत्र में भारत मददगार साबित हो सकता है। श्रीलंका रणनीतिक दृष्टिकोण से भी भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। चीन कोलंबो के दक्षिणी भाग में एक बड़ी पोर्ट सिटी का निर्माण कर रहा है जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। अब श्रीलंका भी चाहता है कि भारत उस क्षेत्र में पूंजी निवेश करे। यहां एक बात यह भी स्पष्ट है कि यदि भारत श्रीलंका में पूंजी निवेश करता है तो भारत का निवेश बढ़ने से चीन की गतिविधियों पर नजर रखने में सुविधा होगी। चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है ताकि भारत पर दबाव डाल सके। श्रीलंका का हबनटोटा बंदरगाह अभी चीन के कब्जे में है। इस बंदरगाह पर चीन अक्सर अपने जासूसी जहाज को भेजता रहता है। चीन की खतरनाक योजना को देखते हुए भारत को भी श्रीलंका में अपनी उपस्थिति बढ़ानी होगी। कहना ग़लत नहीं होगा कि विक्रमसिंघे की वर्तमान यात्रा से दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध हुए हैं। श्रीलंका भी अब समझ चुका है कि भारत के साथ रहने में ही उसकी भलाई है। वैसे भी चीन की नीति विस्तारवादी नीति रही है और चीन जिस देश में भी निवेश करता है उस देश को अपने कर्जजाल में फंसाकर अपने हितों को साधता है। भारत श्रीलंका को पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई के लिए श्रीलंका तक तेल पाइप लाइन बिछाने को तैयार है ताकि पाइप लाइन के द्वारा श्रीलंका में पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति की जा सके।श्रीलंका पर्यटन के क्षेत्र में भारत से मिलकर काम करने के लिए काफी उत्सुक है।भारत की चिंता यह है कि श्रीलंका हबनटोटा बंदरगाह को चीन के सामरिक हितों के लिए उपयोग में न लाने दे, क्यों कि जैसा कि ऊपर बता चुका हूं कि वह चीन के कब्जे में है।भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के समक्ष तमिल नागरिकों के हितों का मामला भी उठाया है। इस पर श्रीलंका के राष्ट्रपति ने भारत को आश्वासन दिया है कि वह तमिलों के हितों का पूरा ख्याल रखेंगे।यह भारत के लिए अच्छी खबर है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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