संपादकीय

मोदी का मैजिक बरकरार

-सुरेश हिंदुस्तानी
इस बार के लोकसभा चुनाव परिणामों में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी के नाम का डंका बजा है। सत्ता पक्ष ने तो मोदी के नाम पर ही वोट मांगे थे, विरोधी दलों ने भी मोदी विरोध पर ही वोट मांगे थे। हालांकि विपक्षी दलों ने मोदी का नाम जैसे भी लिया हो, लेकिन वह उक्ति किसी काम नहीं आ सकी। भारतीय राजनीति में नरेन्द्र मोदी एक बहुत बड़ी राजनीतिक शक्ति बनकर उभरे हैं। इस बार के चुनाव परिणामों ने दिखा दिया कि देश में बहुत बड़ा अंडर करंट था, जिसे देश के विपक्षी दल देख नहीं पा रहे थे। इस मोदी लहर में कांग्रेस के बड़े दिग्गज भी धराशाई होते दिखाई दिए।
अभी छह महीने पहले ही कांग्रेस ने जिन तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के हाथ से सत्ता छीनी थी, वहां की कुल 65 सीटों में कांग्रेस को महज तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा। राजस्थान में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया। मध्यप्रदेश में जिस एक सीट छिंदवाड़ा में कांग्रेस ने विजय प्राप्त की है, उसके बारे में राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा यही कहा जा रहा है कि यह कांग्रेस की जीत नहीं है, बल्कि मुख्यमंत्री कमलनाथ की जीत है। छिंदवाड़ा में कमलनाथ का बेटा नकुलनाथ विजयी रहा है। अगर कांग्रेस की जीत होती तो कम से कम मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भोपाल से और ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना से जीत जाते। मोदी लहर में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के पराजित होने के पीछे का कारण यह भी माना जा रहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बेदाग छवि को दागदार बनाने की पुरजोर कोशिश की। जाहिर है, जब एक स्वच्छ छवि के व्यक्ति को कठघरे में खड़ा करने का कुत्सित प्रयास किया जाता है तो स्वाभाविक रुप से जनता का समर्थन उसे मिल ही जाता है। संभवतरू नरेन्द्र मोदी के साथ भी ऐसा ही हुआ है। वास्तविकता यही है कि विपक्षी दलों द्वारा मोदी की जीत के रास्ते तैयार किए गए। हम यह भी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने अहंकार में संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देते हुए कहती हैं कि मैं नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानती। यह एक प्रकार से उस जनादेश का अपमान ही था जो 2014 में देश की जनता ने दिया था। ऐसी गर्वोक्ति वाली भाषा को कोई भी पसंद नहीं कर सकता।
इस चुनाव परिणाम ने एक और बहुत बड़ा संदेश यह भी दिया है कि जनता ने वंशवाद को पूरी तरह से नकार दिया है। विरासती पृष्ठभूमि से राजनेता बने राहुल गांधी के नेतृत्व को देश ने नकार दिया है। इसी कारण जनता ने उन्हें गांधी परिवार की परंपरागत सीट अमेठी में आईना दिखा दिया है। वह तो भला हो राहुल गांधी के सलाहकारों का जिन्होंने उनको वायनाड जाने की सलाह दे दी। इससे कांग्रेस को दोहरा लाभ भी मिला है। केरल में कांग्रेस की स्थिति सुधरी है। सवाल यह आता है कि अगर राहुल गांधी वायनाड नहीं जाते तो केरल में कांग्रेस मजबूत नहीं होती। ऐसे में कांग्रेस की क्या गत होती, कल्पना की जा सकती है। कांग्रेस को जितनी सीटें मिली हैं, उनमें से केरल की सीटों को हटा दिया जाए तो कांग्रेस की स्थिति 2014 से भी बुरी हो जाती। देश के 23 राज्यों में कांग्रेस को महज शून्य या एक सीटों से संतोष करना पड़ा। यह कांग्रेस की वास्तविकता है कि राहुल गांधी का नेतृत्व पूरी तरह से फेल हो गया है। जिन तीन राज्यों में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्त की है, वह राहुल गांधी के नेतृत्व का कमाल नहीं, प्रादेशिक नेताओं के परिश्रम का परिणाम था। इसलिए इस उपलब्धि को राहुल के साथ जोड़ा जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
देश के विरोधी दलों द्वारा ईवीएम पर उठाए जाने वाले सवालों के बीच लोकसभा चुनाव के परिणामों ने एक प्रकार से उन सभी सर्वेक्षणों पर मुहर लगा दी है, जिसे विपक्ष पूरी तरह से एक पक्षीय बता रहा था। इसका आशय यह भी है कि जिस प्रकार का चित्र सर्वेक्षण दिखा रहे थे, वह वास्तविक थे। लेकिन विपक्षी दलों ने इन सर्वेक्षणों को सिरे से नकारने का प्रयास किया था। यहां तक कि विपक्ष ने संवैधानिक संस्थाओं पर भी निशाने पर लिया।
लोकसभा चुनावों के परिणामों ने बता दिया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिन्होंने लगातार दूसरी बार अपनी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है। इससे पहले इस श्रेणी में केवल प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का नाम आता है। भारतीय राजनीति में देखा जाए तो आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के सामने कोई नेता आसपास भी दिखाई नहीं देता। इसमें नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी विशेषता यही मानी जाएगी कि उन्होंने विरोधी दलों द्वारा दी जाने वाली गालियों को भी अपनी विजय का हथियार बना लिया। 2014 के चुनाव में भी ऐसा ही दृश्य देखने में आया था, जब कांग्रेस ने नरेन्द्र मोदी को चाय वाला कहकर मजाक उड़ाया था। वही चाय वाला मुद्दा मोदी को विजय दिला गया। इस चुनाव में भी कांग्रेस की ओर से फेंके गए सभी पांसे उल्टे पड़ गए। चौकीदार चोर के मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में माफी मांगने के बाद से ही कांग्रेस कमजोर होती चली गई। उसके बाद रही सही कसर ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने पूरी कर दी। उन्होंने सिख दंगों पर कहा था कि ‘हुआ तो हुआ’। इस बार जो जनादेश मिला है उसने यह भी प्रमाणित किया है कि जनता इस बार गठबंधन सरकार बनाने की मंशा में नहीं थी। अकेले भाजपा को दूसरी बार जनता ने स्पष्ट बहुमत देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा आज भी जनता की पहली पसंद बनी हुई है। भाजपा की जीत का श्रेय निश्चित रुप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है, लेकिन सवाल यह आता है कि कांग्रेस की हार का ठीकरा किसके सिर फोड़ा जाएगा?

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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