संपादकीय

पीटलैंड की बर्बादी रोकना जरूरी : वैज्ञानिक

शोधकर्ताओं ने एक ताजा शोध के आधार पर कहा है कि दुनिया के पीटलैंड्स – और उनमे बसे विशाल कार्बन भंडार – का संरक्षण जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
सरल शब्दों में कहें तो पीट्लैंड दरअसल नर्म कोयले, या पीट. के मैदान होते हैं। पीट बहुत कारणों से हमारे ग्रह के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह न सिर्फ एक कार्बन स्टोर के रूप में कार्य करता है, पीट्लैंड वन्यजीवों के लिए एक बेहतरीन रिहाइश का किरदार भी हैं। जल प्रबंधन में भी इसकी भूमिका है, और यहाँ तक की पुरातात्विक नजर से भी ये बढ़िया है क्योंकि इसमें चीजों को संरक्षित करने की क्षमता होती है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय और टेक्सास A&M (ए एंड एम) विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन, मानव इतिहास में पीटलैंड के नुकसान की जांच करता है और भविष्य में ये ‘प्रवर्धित’ होगा यह अंदाजा लगता है।
पीटलैंड्स को इस सदी में एक समग्र ‘सिंक’ (कार्बन को अवशोषित करने) से एक स्रोत में स्थानांतरित होने की उम्मीद है, मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिक्स) में मानव प्रभावों की वजह से, और अध्ययन ने चेतावनी दी कि 2100 तक 100 बिलियन टन से अधिक कार्बन जारी हो सकता है, हालांकि संदेह अब भी बरकरार हैं। पीटलैंड्स को वर्तमान में जलवायु परिवर्तन अनुमानों के लिए उपयोग किए जाने वाले मुख्य अर्त सिस्टम मॉडल से बाहर रखा गया है – शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बात को तत्काल ठीक किया जाना चाहिए।
एक्सेटर के ग्लोबल सिस्टम इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर एंजेला गैलेगो-साला ने कहा, ‘‘पीटलैंड में दुनिया के सभी जंगलों की तुलना में अधिक कार्बन है और कई जंगलों की तरह उनका भविष्य अनिश्चित है। पीटलैंड जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, जैसे कि जंगल की आग और सूखे का खतरा, पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना और बढ़ते समुद्री स्तर।” वो आगे कहते हैं, ‘पीटलैंड के लिए मुख्य खतरे अधिक प्रत्यक्ष हैं – विशेष रूप से मनुष्यों द्वारा कृषि भूमि बनाने के लिए उसका विनाश। इसका मतलब पीटलैंड्स का भविष्य निश्चित रूप से हमारे हाथ में है।’
पीटलैंड्स पृथ्वी पर लगभग हर देश में पाई जाने वाली एक प्रकार की आर्द्रभूमि (वेटलैंड) है, जो वर्तमान में वैश्विक भूमि की सतह का 3% है।
प्रोफेसर गैलेगो-साला का कहना है कि पीटलैंड्स को कुछ जलवायु मॉडल्स में ‘अनदेखा’ किया गया है क्योंकि उन्हें ‘निष्क्रिय’ के रूप में देखा जाता है – जो अपने आप छोड़े जाने पर ना तो तीव्र गति से कार्बन अवशोषित करते हैं और ना ही कार्बन का उत्सर्जन करते हैं।
मॉडल से यह बहिष्करण भविष्य के परिवर्तनों का अनुमान लगाना मुश्किल बनाता है, इसलिए अध्ययन ने 44 अग्रणी पीटलैंड विशेषज्ञों के सर्वेक्षण के अनुमानों के साथ मौजूदा शोध को संयुक्त किया है।
इसके आधार पर, यह 2020-2100 तक 104 बिलियन टन पर कुल कार्बन नुकसान का अनुमान लगाता है। लेखक इस बात पर जोर देते हैं कि यह अनुमान बहुत अनिश्चित है (103 बिलियन टन के लाभ पर 360 बिलियन टन तक का नुकसान) – लेकिन यह मॉडल में समावेश की आवश्यकता और बेहतर पीटलैंड संरक्षण की आवश्यकता, दोनों को दर्शाता है।
‘हालांकि हम अधिक जानकारी चाहते हैं, हमें स्पष्ट रूप से निर्णय लेने की आवश्यकता है कि हम इन पारिस्थितिक तंत्रों का प्रबंधन कैसे करते हैं,’ डॉ. गैलेगो-साला ने कहा। वो कहते हैं, ‘हम पीटलैंड्स के धुएं में फुंक जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।’
अमेजॅन और कांगो में उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिक्स) पीटलैंड की नई ‘खोजें’ मुख्य रूप से बरकरार हैं, और शोधकर्ताओं का कहना है कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि हमारे पास ठोस नीतियां हों।
‘हमारी जिम्मेदारी है कि हम ऐसा रास्ता निकालें जो लोगों और धरती के लिए का समर्थन करें,’ डॉ। गैलेगो-साला ने कहा।
‘जहां लोगों के पास पीटलैंड को नष्ट करने के लिए मजबूत आर्थिक प्रोत्साहन है- या यहां तक कि जरूरत है – हमें ऐसी योजनाओं और नीतियों की आवश्यकता है जो अधिक टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकल्प प्रदान करतीं हैं।’
यह शोध पेपर नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक : ‘वैश्विक पीटलैंड कार्बन सिंक की भविष्य की भेद्यता का विशेषज्ञ आकलन’ है। इस अंतर्राष्ट्रीय शोध दल में हेलसिंकी और क्यूबेक विश्वविद्यालय शामिल थे। और इसके फंडर्स में PAGES(पास्ट ग्लोबल चेंजेस) प्रोजेक्ट, इंटरनेशनल यूनियन फॉर क्वाटरनरी रिसर्च (INQUA) और नेचुरल एनवायरमेंट रिसर्च काउंसिल (NERC) शामिल थे।

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