संपादकीय

जाड़ कहति बा

करे के पड़ी जवन ऊ कही
हो जाड़ कहति बा उहे रही

कड़ कड़ दांत बजावति बा हो
थर थर हाड़ कंपावति बा हो
सूरुज जानी कहां पठवलसि
कउड़ा जारि तपावति बा हो

कोल्हुआने जा चाटऽ मही
हो जाड़ कहति बा उहे रही

ढुका घर में ए मोर भइया
गांती गांथि ओढ़ा रजइया
घंसबा नाहीं जे कड़ू तेल
चाम चिचुकी होखी खोइया

अंवटा गोरस पिया जिन दही
हो जाड़ कहति बा उहे रही

रहिला छाती बूकति बा हो
बिना लउर के हूंकति बा हो
जेजानी अझुराइल एसे
ले गइले ना चूकति बा हो

दादी दादी के रक्खा सही
हो जाड़ कहति बा उहे रही

कुक्कुर कोयं कोयं कइले बा
लइका उतपात मचइले बा
बाटै बरध रोआं गिरवले
चिरइयो खोतना धइले बा

जे कसरत करबा तब्बे लही
हो जाड़ कहति बा उहे रही

डॉ एम डी सिंह
पीरनगर, गाजीपुर ऊ प्र भारत

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