संपादकीयसैर सपाटा

जैसलमेर – पर्यटकों की पहली पसन्द… रेत का समंदर

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
जैसलमेर में रेत के समंदर पर ऊंट सफारी, जीप सफारी, ग्रामीण जनजीवन, रेत के धोरों पर लोक संगीत की स्वर लहरी और लोक नृत्यों की मनमोहक छंटा, पेरासेलिंग जैसे एडवेंचर स्पोर्ट्स, बोटिंग के भरपूर मनोरंजन के सााथ-साथ, सोनार किला, शाही महल, हवेलियों और मन्दिरों के जादुई सम्मोहन से बंधे चले आते हैं विश्वभर के सैलानी।
हर वर्ष माघ सुदी 13 से पूर्णिमा तक( जनवरी-फरवरी) आयोजित मरू उत्सव विश्व विख्यात हैं। लोक नृत्य- संगीत के साथ-साथ पगड़ी बाधने, मरू श्री और ऊंटों की दौड़ की रोमांचक प्रतियोगिताएं मरूउत्सव को जीवंत बना देते हैं। हजारों विदेशी पर्यटक इसके साक्षी होते हैं। माघ और भाद्रपद की शुक्ल पक्ष मे दूज की एकादशी तक भरने वाला विख्यात रामदेव का मेला साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। रेतीले क्षेत्र के मिरासी, मांगणियार एवं लंगा जाति के लोग परंपरागत लोक कलाकार लोकवाद्यों के सुरों, गायन एवं नृत्य से सभी का मन मोह लेते हैं। कामड़ जाति की महिलाओं का तेरह ताली नृत्य अद्भुत होता है। कारणा भील का नाम लंबी मूछों के लिए गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकाॅर्ड मे दर्ज है। यह विख्यात नड वादक लोक कलाकार था। जैसलमेर चित्र शैली में महेन्द्र एवं मूमल के प्रणय का चित्रण प्रसिद्ध है। रावण हत्था पाबूजी के भोपों का मुख्य वाद्य है। पत्थर पर नक्काशी, पटटू, ऊनी, शाल, कढाईदार हस्तशिल्प सेलनियों को खूब लुभाते हैं। विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल महान थार के रेगिस्तान के बीच में स्थित है। शहर के संस्थापक राव जैसल, जिन्होंने 12 वीं सदी के दौरान जैसलमेर पर शासन किया ने 1156 ई. में इस शहर की स्थापना की और उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जैसलमेर रखा गया।

  • हनीमूनर्स का बेहतर विकल्प

हनीमून मनाने के लिये प्राकृतिक वादियों से हट कर कुछ नया करने की चाह में एक बेहतर विकल्प तैयार है जैसलमेर और हनीमून मनाने वाले कपल्स का सर्वाधिक पसंददीदा स्थल बन गया है। अनेक फिल्म्स की यहाँ हुई शूटिंग्स ने इसकी लोकप्रियता में वृद्धि की है। शहर से दूर जंगल में चन्द्रमा की रात्रि में चमकती रेत पर टेंट में रात गुुजारना, ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा, मनपसन्द पेय एवं लजीज व्यंजनों के साथ में लोक नृत्य-संगीत का आनन्द, ऐसी स्मरणीय रात पर्यटक खासकर हनीमून और विवाह की एनिवर्सरी मनाने के लियेे आने वाले कपल्स जीवनभर नहीं भूल पाएंगे। ऐसे कपल्स की स्मृतियों से प्रेरित हो कर आज यहाँ ऐसे कपल्स की संख्या में आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी दर्ज की जाने लगी हैं। ऐसे कपल्स प्राइवेट व्यवस्था की इच्छा रखते हैं तो वह भी पसन्द के मुताबिक की जाती हैं, और वे अपनी तरह से इस रात के आलम में मौजमस्ती का सुख लूटते हैं, और अपनी रात को सुहानी और चिरस्मरणीय बनाते हैं। जाने से पहले यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थलों और मनोरंजक गतिविधियों के बारे में जानलें।

  • सोनार दुर्ग

स्वर्ण नगरी, पीेले पत्थरों का शहर, हवेलियों एवं झरोखों की नगरी, रेगिस्तान का गुलाब , राजस्थान का अण्डमान संज्ञाओं से विभूषित जैसलमेर का सोनार दुर्ग पहले नम्बर का पर्यटक स्थल है। सूर्यास्त की रश्मियां पीले बलुआ पत्थर के किले को सुनहरी रंगत देने से ‘सोनार किला’ या श्स्वर्ण किलेश् के रूप में भी जाना जाता है। किले में प्रवेश केे लिए अखे पोल, हवा पोल, सूरज पोल और गणेश पोल मुख्य द्वार हैं। राजपूत और मुगल स्थापत्य कला की मिश्रित शैली पर्यटकों को आकर्षित करती है।यहां बना रंग महल, गजनिवास एवं मोती महल स्थापत्य कला के शानदार नमूने हैं। महलों में भित्ती चित्र तथा लकड़ी पर की गई बारिक नक्काशी का कार्य देखने योग्य है। चांदी का राज्याभिषेक सिंहासन, बिस्तर, बर्तन, स्थानीय टिकटें और शाही परिवार की मूर्तियां इस महल के मुख्य आकर्षण हैं। परिसर में सात जैन मंदिरों में शांतिनाथ मंदिर, चन्द्रप्रभू मंदिर और शीतलनाथ मंदिर के साथ-साथ पंचायतन शैली का लक्ष्मीनारायण का हिन्दू मन्दिर बारीक कारीगरी के नायब नमूने हैं। पर्यटक महल की छत से पूरे शहर के सुंदर दृश्य का आनंद ले सकते हैं। रेगिस्तान का अविभूत करने वाला सोनार किला लगता है जैसे प्रत्यक्ष रूप से एरेबियन नाइट्स की कथाओं से निकलकर आया है। त्रिकूट पर्वत पर बना सोनार किला जमीन से 250 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। पीले पत्थरों से बने इस किले का महत्व इस बात से है कि इसमें कहीं भी चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। किला 1500 फीट लम्बा एवं 700 फीट चैड़ा है तथा किले में 30-30 फीट ऊँचे 99 बुर्ज बने हैं। दोहरी सुरक्षा व्यवस्था के चलते यह किला हमेशा अभेद्य रहा है।

  • बादल विलास

जैसलमेर के अमरसागर प्रोल के पास मंदिर पैलेस में गगनचुम्बी जहाजनुमा 19 वीं शताब्दी की इमारत बादल विलास कलात्मक सुन्दरता के कारण अनूठी कृति है। पांच मंजिलों वाली यह इमारत बारिक नक्काशी कार्य और कलात्मक सुंदरता के कारण विश्व स्तरीय पहचान बना चुकी है। इसे महारावलों के निवास हेतु बनाया गया था। सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक बादल विलास जैसलमेर की शिल्प कलाओं की उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है। सैलानी इसको जब निहारते है तो इस इमारत से उनकी नजरें ही नहीं हटती, वे इसके नजारे को कैमरे में बंद कर ले जाते हैं। जैसलमेर के पर्यटन स्थलों में बादल विलास प्रमुख माना जाता है। यह इमारत स्वर्णनगरी भ्रमण करने वाले सैलानियों को दूर से ही अपनी ओर आकर्षित करती है।

  • आश्चर्यजनक हवेलियां

हवेलियों में मुख्यतः पटुओं की हवेली, दीवान सालिमसिंह की हवेली व दीवान नाथमल की हवेली प्रमुख हैं। कला की दृष्टि से पटुओं की हवेली व नाथमल हवेली स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण हैं। वहीं दीवान सालिम सिंह की हवेली अपनी विशालता व भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। ये सभी हवेलियाँ स्थानीय पीले रेतीले पत्थर से बनी हैं।

  • पटुओं की हवेली

पटवों की कुल पाँच हवेलियाँ एक-दूसरे से सटी हैं,अट्ठारवीं शताब्दी में सेठ पटवों द्वारा बनवाई गई थी। कलाविद् एवं कलाप्रिय होने के कारण उन्होंने अपनी मनोभावना को भवनों और मंदिरों के निर्माण में अभिव्यक्त किया। पटुवों की हवेलियाँ भवन निर्माण के क्षेत्र में अनूठा प्रयास है। हजारों सुन्दर झरोखों से युक्त ये हवेलियाँ निसंदेह कला का सर्वेतम उदाहरण है। हवेलियाँ भूमि से करीब 10 फीट ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है व जमीन से ऊपर छः मंजिल हैं और भूमि के अंदर एक मंजिल होने से कुल 7 मंजिली हैं। पाँचों हवेलियों के आगे के बाहर की ओर बारीक नक्काशी व विविध प्रकार की कलाकृतियाँ युक्त खिड़कियों, छज्जों व रेलिंग से अलंकृत किया गया है जिससे हवेलियाँ अत्यंत भव्य व कलात्मक दृष्टि से अत्यंत सुंदर व आकर्षक लगती हैं। प्रवेश द्वारों, कमरों और मेडियों के दरवाजे पर सुंदर खुदाई का काम किया गया है। इन हवेलियों में सोने की कलम की वित्रकारी, हाथी दांत की सजावट आदि देखने को मिलते हैं। शयन कक्ष रंग बिरंगे विविध वित्रों, बेल-बूटों, पशु-पक्षियों की आकृतियों से युक्त हैं।

  • दीवान नाथमल की हवेली

पाँच मंजिली दीवान मेहता नाथमल की हवेली का कोई जबाव नहीं है। सन 1884-85 ई. में बनी हवेली में सुक्ष्म खुदाई मेहराबों से युक्त खिड़कियों, घुमावदार खिड़कियों तथा हवेली के अग्रभाग में की गई पत्थर की नक्काशी पत्थर के काम की दृष्टि से अनुपम है। इन अनुपम कृतियों का निर्माण प्रसिद्ध शिल्पी हाथी व लालू उपनाम के दो मुस्लिम कारीगरों ने किया था। हवेली का कार्य ऐसा संतुलित व सुक्ष्मता लिए हुए है कि लगता ही नहीं दो शिल्पकारों ने इसे बनाया होगा, लगता है जैसे एक शिल्पी की रचना है। हवेली एक उँचे चबूतरे पर बनी है जिसके छोर पर एक पत्थर से निर्मित दो अलंकृत हाथियों की प्रतिमाएँ हैं। हवेली में पत्थर की खुदाई के छज्जे, छावणे, स्तंभों, मौकियों, चापों, झरोखों, कंवलों, तिबरियों पर फूल, पत्तियां, पशु-पक्षियों की बडी ही मनमोहक आकृतियां बनी हैं। कुछ नई आकृतियां जैसे स्टीम इंजन, सैनिक, साईकल, उत्कृष्ट नक्काशी युक्त घोडे, हाथी आदि उत्कीर्ण हैं।

  • सालिम सिंह की हवेली

सालिम सिंह की छह मंजिली हवेली नीचे से संकरी और ऊपर से फैलती स्थात्य कला का प्रतीक है। जहाजनुमा इस विशाल हवेली का आकर्षण खिड़कियां, झरोखे तथा द्वार हैं।बझरोखों तथा खिड़कियों पर अलग-अलग कलाकृति उत्कीर्ण हैं। इनपर बनी हुई जालियाँ पारदर्शी हैं। इन जालियों में फूल-पत्तियाँ, बेलबूटे तथा नाचते हुए मोर की आकृति उत्कीर्ण हैं। झरोखों तथा खिड़कियों पर अलग-अलग कलाकृति उत्कीर्ण हैं। इनपर बनी हुई जालियाँ पारदर्शी हैं। इन जालियों में फूल-पत्तियाँ, बेलबूटे तथा नाचते हुए मोर की आकृति उत्कीर्ण हैं। नक्काशी यहाँ के शिल्पियों की कलाप्रियता का प्रमाण है। सोने की कलम से किए गए छतों व दीवारों पर चित्रकला के अवशेष आज भी उत्कृष्ट कला को प्रदर्शित करते हैं। इस हवेली का निर्माण दीवान सालिम सिंह द्वारा विक्रम संवत 1518 में करवाया गया, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण था। हवेली की सर्वोच्च मंजिल जो भूमि से लगभग 80 फीट की उँचाई पर है, मोती महल कहलाता है। कहा जाता है कि मोतीमहल के ऊपर लकडी की दो मंजिल और भी थी, जिनमें कांच व चित्रकला का काम किया गया था। जिस कारण वे कांचमहल व रंगमहल कहलाते थे। उन्हें सालिम सिंह की मृत्यु के बाद राजकोप के कारण उतरवा दिया गया।

  • अमर सागर झील

अमर सागर झील राजस्थान के पश्चिमी जैसलमेर के बाहरी इलाके में एक सुरम्य झील है जो अपने सुंदर और शांत वातावरण से लोकप्रिय रमणिक स्थान है। यह झील सह नखलिस्तान है, जो 5 मजिलेअमर सिंह पैलेस से सटी है जो एक सुंदर शाही इमारत है। महल का निर्माण 17 वीं सदी के दौरान राजा महारावल अखाई सिंह द्वारा बनवाया गया था। दीवारों पर सुंदर भित्ति चित्र महल के सौंदर्य को बढ़ाते हैं। झील के परिसर में एक प्राचीन शिव मंदिर के साथ कई कुएं और तालाब भी स्थित हैं। झील के एक छोर पर सुंदर नक्काशीदार जैन मंदिर स्थित है। झील में पैडल-बोटिंग का लुफ्त उठा सकते हैं।

  • गड़सीसर झील

गड़सीसर झील जैसलमैर शहर के बाहरी इलाके में रेगिस्तान के बीच में स्थित एक मानव निर्मित झील है, जिसका निर्माण राजा रावल जैसल ने लगभग 12 वीं -13 वीं ईस्वी में जलाशय के रूप में करवाया था। झील को अपना नाम इसके जीर्णोद्धारकर्ता महारावल गडसी सिंह से मिला है जिन्होंने 1400 ईस्वी में पूरे क्षेत्र को पुनर्जीवित किया। पीले बलुआ पत्थर पर उकेरा गया एक राजसी आकर्षक प्रवेश द्वार आपका स्वागत करता है। विभिन्न दरों पर नावें पर्यटकों को झील के चारों ओर की सैर करवाती हैं। झील का सूर्यास्त और सूर्योदय का दृश्य काफीआकर्षक दिखाई देता है। सर्दियों के दौरान झील पर प्रवासी पक्षियों की अठखेलिया मन मोहक होती हैं। यहां भीड़ से दूर अपने खास लोगों के साथ शांति भरा कुछ समय बिता सकते हैं। फोटो खींचने का शौक रखते हैं तो आप अपने कैमरे में झील के कुछ मनोरम दृश्यों को कैद कर सकते हैं। यह खूबसूरत झील कुछ घंटों का समय बिताने और फोटोग्राफी के लिए एक बहुत अच्छी और शांत जगह है।

  • बड़ाबाग

दिलचस्प बात यह है कि सलमान खान-ऐश्वर्या राय स्टार हम दिल दे चुके सनम में शादी का सीन बडा बाग में शूट किया गया था। जैसलमेर के उत्तर में लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बड़ा बाग में एक विशाल बांध, एक टैंक और इसके आसपास सेनेटाफ का समूह है। यहाँ मुख्य आकर्षण राजभवन हैं जो कि महाराजा जय सिंह के राजघराने के लिए बनाए गए थे। सेन्टोफ्स का अंतिम निर्माण महाराजा जवाहर सिंह के लिए किया गया था और जो अधूरा है। शानदार सेनेटाफ जिसे स्थानीय रूप से छत्रियों के रूप में जाना जाता है, वह सुंदर वास्तुकला और जटिल नक्काशी के लिए देश भर के पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण बने हुए है।

  • संग्रहालय

करामाती महलों के अलावा, जैसलमेर शहर में कुछ संग्रहालय स्थित हैं। डेजर्ट सांस्कृतिक केंद्र और संग्रहालय जातीय उपकरणों, दुर्लभ जीवाश्मों, प्राचीन शास्त्रों, मध्ययुगीन सिक्कों और पारंपरिक कलाकृतियों के दुर्लभ संग्रह को दर्शाती है। इसके अलावा, सरकारी संग्रहालय ऐतिहासिक घरेलू वस्तुयें, पत्थर के बर्तन और आभूषण देखने का अवसर प्रदान करता है।

  • पुरातत्व स्थल कुलधरा गांव (20किमी.)

कुलधरा गाँव गोल्डन सिटी जैसलमेर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो पर्यटकों द्वारा देखी जाने वाली सबसे खास जगहों में से एक हैं। कुछ लोग कुलधरा गाँव को डरावना और भूतिया बताते हैं जिसका कोई प्रमाण नहीं हैं। गाँव अपनी स्थापत्य सुंदरता और इतिहास की वजह से घूमने की एक बहुत रोचक जगह है। कुलधरा गाँव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा अनुरक्षित एक ऐतिहासिक स्थल है। कुलधरा गाँव एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें लगभग 85 छोटे-छोटे आवास शामिल हैं। इस गाँव में कुछ ईंटों की संरचनाओं को छोड़ गांव की सभी झोपडियां टूटी हुई हैं। गाँव के पास एक देवी का पुराना मंदिर भी है जिसके अंदर कई शिलालेख हैं। कुलधरा गाँव उन लोगों के लिए स्वर्ग के सामान है जो अपनी यात्रा के दौरान खास अनुभवों की तलाश में रहते हैं और इतिहास के बारे में जानने की रूचि रखते हैं। जो लोग फोटोग्राफी या विडियोग्राफी में रूचि रखते है और कुछ खास चीजों पर लघु फिल्म या डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की तलाश में रहते हैं तो यह उन लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है।

  • राष्ट्रीय मरू उद्यान अभयारण्य

राज्य सरकार ने 4 अगस्त 1980 को 3162 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (1900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जैसलमेर में और 1262 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बाड़मेर में) को राष्ट्रीय मरू उद्यान घोषित किया। यहाँ गर्मियों में तापमान 47-48 सेल्सियस तक पहुँच जाता है और सर्दियों में तापमान 20 सेल्सियस या उससे भी न्यून हो जाता है। गोडावण अब इस मरूउद्यान में ही पाया जाता है। अन्य स्थानिक प्रजातियों में ग्रे-पाट्रिज, मोर, सेण्ड-ग्राउज, काॅमन-क्वेल, इण्डियन कोरसर, फाख्ता, कबूतर, बुलबुल, लांक्र्स और बेबलर आदि काफी संख्या में दिखाई देते हैं। प्रवासी पक्षियों में हुबारा बस्टर्ड, इम्पीरियल सेण्ड-ग्राउज, इम्पिरीयल ईगल, स्पेनिश स्पेरो, रोजीपेस्टर, स्पोटेड स्टर्लिग, डिमोइजल क्रेन्स तथा काॅमन क्रेन्स आदि पाये जाते हैं। उभयचर जन्तु समूह की 5 एवं सरीसृप की 43 प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं। विभिन्न प्रकार की रंगीन तितलियां इस क्षेत्र टिड्डियों के दल और ग्रासहोपर्स के लिए अत्यन्त अनुकूल है। यहाँ करीब 700 प्रजातियों की वनस्पति पाई जाती है।

  • वुड फाॅसिल पार्क ( 17 किमी.)

यह जैसलमर से मात्र 17 किलोमीटर दूर जैसलर-बाड़मेर रोड पर आंकल गांव में स्थित180 वर्ष पुराना यह पार्क 21 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। वर्ष1972 ई.में इसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक घोषित किया गया, जिसने 1985 तक इस पार्क को बनाए रखा, जिसके बाद इसे राजस्थान सरकार के वन विभाग को सौंप दिया गया था। लाखों वर्ष पूर्व यहाँ पाए जाने वाले सागरीय जीवों के जीवाश्मों के लिए यह प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में फैले हुए 25 वुड फाॅसिल विद्यमान हैं, जिसमें से 10 फाॅसिल का काफी भाग पृथ्वी की सतह से ऊपर अनावृत है। सबसे बड़े फाॅसिल की लम्बाई 7 मीटर एवं परिधि डेढ़ मीटर है। विशाल पेड़ के जीवास्म और प्राचीन समुद्री शंख इस पार्क के मुख्य आकर्षण हैं। पर्यटक हैरियर, बुजर्ड, धब्बेदार चील और छोटे पंजे वाली चील, गिद्ध, एक प्रकार का छोटा बाज, बड़े बाज और रेत में गुनगुनाने वाले जीव को जैसलमेर के डेजर्ट नेशनल पार्क में देख सकते हैं।

  • सम-खुहड़ी के धोरे( 42नकिमी.)

रेगिस्तान में पहुँचकर रेत के धोरें नहीं देखें यह कैसे हो सकता है। जैसलमेर से 42 कि.मी. दूर सम एवं 45 कि.मी. दूर खुहड़ी के रेतीले धोरों का आकर्षण सैलानियों के लिए सर्वाधिक है। बालू के लहरदार धोरों पर जब संध्याकाल में सूर्य की किरणें अपनी आभा फैलाती हैं तो इनका रंग सुनहरा हो जाता है जो देखने वालों के दिल को छू लेता है। बालू के टीलों पर ऊँट की सवारी करना तथा स्थानीय कलाकारों के लोक संगीत का आनन्द लेने का अपना अलग ही मजा हैं। रात्रि में इन धोरों के समीप स्थित खुले मंच पर लोक कलाकारों के गीत-संगीत, नृत्य आदि का आनन्द भी सैलानी उठाते हैं। इन धोरों एवं इनका आनन्द लेने का मजा वही जान सकता है जिसने नजदीक से इन्हें देखा है और महसूस किया है।

  • लौद्रवा (13 किमी.)

जैसलमेर से 13 किमी. दूरी पर लौद्रवा का जैन मंदिर 23वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ को समर्पित है। गर्भगृह में सहसत्रफणी पाश्र्वनाथ की साढ़े तीन फीट ऊंची श्याम वर्णीय कसौटी पत्थर की भव्य प्रतिमा स्थापित है, जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य श्री जिनपति सूरी द्वारा संवत् 1263 में कराई गई थी। मंदिर का तोरण द्वार, प्रत्येक स्तम्भ, प्रवेश द्वार एवं शिखर पर शिल्पकारों की कल्पना अद्वितीय रूप में दिखाई देती है। शिल्प कला के दर्शन मात्र से ही आनन्द की अनुभूति होने लगती है। जैसलमेर जिले में 110 किमी.पर पोकरण, 120 किमी. पर तनोटराय माता मंदिर, 125 किमी.पर रामदेवरा धाम भी दर्शनीय स्थल हैं।

  • एडवेन्चर स्पोर्ट का रोमांच

जैसलमेर पर्यटकों विशेष रूप से युवाओं और हनीमून कपल्स के लिये रेगिस्तान का समंदर नया डेस्टिनेशन बनता जा रहा है रेत के धोरों पर ऊंट सफारी जीप सफारी और नाईट कैम्पिंग के सथ-साथ आप यहां ऊँट दौड़, क्वाड बाइकिंग, जिप लाइनिंग, पैराग्लाइडिंग और हॉट एयर बैलून से अपनी यात्रा को अधिक मनोरंजक तथा यादगार बना सकते हैं। जैसलमेर की यात्रा पर जाने से पहले यादगार यात्रा के लिए जानिएं कुछ महत्वपूर्ण टिप्स।

  • हॉट एयर बैलून

कई एजेंसी अपने पैकेज में हॉट एयर बैलून राइड ऑफर करते हैं। आप भी बैलून से आसमान में सैर करते हुए रेत के समंदर को देखने की इच्छा रखते हैं तो इस गतिविधि को अपने टूर में शामिल करें। यह आपको रोमांचित करने के साथ-साथ अलग तरह का सुकून भी प्रदान करेगा। बैलून राइड सूर्यास्त या सूर्योदय के समय करे तो रेतीले नजरों को देखने का मजा ही कुछ और होता है। बैलून से इस समय रेत का सुहाना दृश्य इंद्रधनुषी रंगों में नजर आएगा। शहर की सुनहरी रंगत लुभा लेगी। मार्च से लेकर अक्टूबर के मध्य इसका आनन्द लेने का अनुकूल समय है।

  • क्वाड बाइकिंग

रेत में एडवेंचर गतिविधि के रूप में आज क्वाड बाइकिंग भी लोकप्रिय हो गई है। लड़कों के साथ अब लड़कियों ने भी इसमें रुचि ली हैं। सीजन में खास कर अक्टूबर से फरवरी तक क्वाड बाइकिंग का उपयुक्त समय होता है। ट्रेंड एक्सपर्ट के साथ रोमांचकारी एटीवी सवारी का सुरक्षा के साथ आनंद ले सकते हैं। यह एडवेंचर बजट फ्रेंडली है जबकि हॉट एयर बैलून कॉस्टली होता हैं।

  • रोमांचक जिप लाइनिंग

सबसे रोमांचक और एक्साइटमेंट से भरे एडवेंचर स्पोर्ट्स में शामिल है जिप लाइनिंग। ज्यादातर युवा इसे करने से डरते हैं, लेकिन कई लोगों की साहस के साथ इस स्पोर्ट का आनंद लेते हैं। इस दौरान आप रेगिस्तान का खूबसूरत नजारा ऊपर से देख सकते हैं। युवाओं के लिए यह यादगार होती है, जिनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई नियम भी निर्धारित किए गए हैं। यंग टूरिस्टों के लिए माइल्डर ग्रेडिएंट भी उपलब्ध हैं। डेयोर कैंप में एक जिप लाइन है जो 250 मीटर से अधिक फैली हुई है।

  • कैमल रेसिंग का लुत्फ

कैमल एवं हॉर्स रेसिंग राजस्थान और जैसलमेर में सबसे पॉपुलर स्पोर्ट है। ऊंटों की दौड़ को रेगिस्तान में लोग खूब पसंद करते हैं। स्थानीय लोगों के अलावा दूर-दूर से लोग इस रेस को देखने आते हैं। कैमल रेसिंग आम दिनों के अलावा वार्षिक डेजर्ट फेस्टिवल का विशेष आकर्षण होता है, जो कि फरवरी में आयोजित किया जाता है। फेस्टिवल में कैमल रेसिंग बेहद भव्य तरीके से आयोजित की जाती है, जिसका लुत्फ उठाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

  • पेरासैलिंग

रेत के समुंद्र पर पेरासैलिंग से आसमान में उड़ना एक रोमांचक और साहसिक गतिविधि हैं। कुछ ही पल में आपका ऊँचाई से डर निकल जायेगा। आपके लिए डेजर्ट में यह कभी न भूलने वाला अनुभव होगा। आप अपने बजट में ही इसका मजा ले सकते हैं।

  • पैरामोटरिंग

इस साहसिक गतिविधि का रोमांच अवश्य ही लेना चाहिए। इसमें आपके साथ एक पायलट होने से पूर्ण सुरक्षित है। आप अन्तहीन रेतीले धोरों के सौन्दर्य के फोटो भी ले सकते हैं।

  • सेंड ड्यून्स बाशिंग एंड ऑफ रोडिंग

थार रेगिस्तान के रेत के टीले को कोसने ( भिड़ना) और बंद करने वाली साहसिक गतिविधि ( सेंड ड्यून्स बाशिंग एंड ऑफ रोडिंग)बहुत ही स्पंदित करती हैं। बहुत आसान नही है यह रेत का यह खेल। जितना मजा देता है उतना ही जोखिम भरा भी है,पर असीम आनन्द के लिए एकदम सही खेल है। इस एडवेंचर स्पोर्ट में एक बड़े स्पोर्ट्स व्हीकल जैसे टोयोटा लैंड क्रूजर या फॉरच्यूनर का इस्तेमाल किया जाता है। इसे कुशल प्रशिक्षक के नेतृत्व में ही किया जाना चाहिए। क्योंकि रेत के धोरे को तोड़ना और तेज पलटाव में दक्ष प्रशिक्षक ही इस खेल का आपको पूरा लुफ्त दिला सकता है।

  • नाईट कैंपिंग

यहां के दिन जितने गर्म होते हैं रातें उतनी ही शीतल और मनोरम होती हैं। सूर्यास्त के पश्चात वातावरण आश्चर्यजनक रूप से सुहाना हो जाता है। ऐसे में आप जेसलमेर के रेतीले धोरों पर खुले में या टेंट में ठहर कर अविस्मरणीय अनुभव कर सकते हैं। टेंट रात्रि की समस्त सुविधाओं से युक्त बहुत ही खूबसूरती से सजाएं होते हैं। नाईट कैंपिंग की सुविधा सामूहिक तौर पर या प्राइवेट उपलब्ध रहती हैं। प्रायः हनीमून कपल्स प्राइवेट कैम्पिंग पसन्द करते हैं। लाइटिंग, खुली ताजा हवा, लोक संस्कृति के नृत्य-संगीत ,शीत काल में अलाव,मनपसन्द ड्रिंक और लज्जतदार भोजन सभी कुछ मिल कर आप और पार्टनर की रात को रंगीन और अविस्मर्णीय बना देता हैं। बड़े होटल एवं ट्रेवल एजेंसियां आपकी पसंद के मुताबिक नाईट कैंपिंग की बेहतर व्यवस्था करते हैं।

  • कैमल सफारी

एडवेंचर स्पोर्ट्स के साथ-साथ परम्परागत केमल सफारी से आप अनन्त वितरित रेतीले साम्राज्य का आनंद उठा सकते हैं। यह कई स्थानों पर कराई जाती हैं। भारतीय सेना से अनुमति प्राप्त कर तनोट में भारतीय सीमा में भी इसका लुफ्त ले सकते हैं। यह पूर्ण रूप से बजट मनोरंजन है।

  • जैसलमेर कैसे पहुँचें

इस गंतव्य की यात्रा करने का आदर्श समय अक्टूबर और मार्च के महीनों के बीच की अवधि है।जैसलमेर वायु, रेल और सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है। जोधपुर हवाई अड्डा शहर के लिए निकटतम 285किमी. घरेलू एयरबेस है। यह हवाई अड्डा नियमित उड़ानें के द्वारा नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से अच्छी तरह से जुड़ा है। यह कोलकाता, चेन्नई, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख भारतीय गंतव्यों के लिए दैनिक उड़ानों के द्वारा जुड़ा हुआ है। प्री – पेड टैक्सियाँ जोधपुर हवाई अड्डे से जैसलमेर के लिए उपलब्ध हैं। यात्री गाड़ियों द्वारा भी गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। जैसलमेर रेलवे स्टेशन कई गाड़ियों द्वारा जोधपुर और अन्य प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा है। जैसलमेर के लिए डीलक्स और सेमी-डीलक्स बसें भी जयपुर, अजमेर, बीकानेर, और दिल्ली से उपलब्ध हैं। स्थानीय स्तर पर बिना मीटर की टेक्सी,ऑटो-रिक्शा एवं जीप उपलब्ध हैं।

  • आवास-भोजन

ठहरने के लिये स्टार्स श्रेणी के डिलक्स होटल, स्टैंडर्ड होटल,बजट होटल एवं धर्मशालाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। किले के दृश्य को निहारते हुए कई होटलों में छत पर टेस्टोरेंट्स बनाये गये हैं। होटल्स में सभी प्रकार का उत्तम शाकाहारी-मांसाहारी एवं कॉन्टिनेंटल भोजन उपलब्ध है यहां के पारंपरिक भोजन में दाल बाटी चूरमा, मुर्ग-ए- सब्ज, पंचधारी लड्डू, मसाला रायता, केर-सांगरी की सब्जी, पोहा, जलेबी, घोटुआ, कड़ी पकौडा शामिल हैं। अगर यहां आपको स्नैक्स खाने का मन है तो हनुमान चॉक सबसे बेहतर जगह है, वहीं अगर आप डेजर्ट आइटम्स का स्वाद लेना चाहते हैं तो अमर सागर पोल से बेहतर जगह और कोई नहीं है। यहां आपको डेजर्ट से जुड़े सभी फूड आइटम्स मिल जाएंगे।

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