संपादकीय

मीडिया संसार पुस्तक समीक्षा

समीक्षक–अख्तर खान अकेला
एडवोकेट एवं पत्रकार

पत्रकारिता एवं जनसंचार माध्यम मामले में नारद मुनि से लेकर आज तक हुए विभिन्न पत्रकारिता बदलाव को प्रसिद्ध लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल एवं पत्रकार के डी अब्बासी ने अपने अनुभवों साथ-साथ देश के ख्यातनाम पत्रकार एवं लेखकों के अनुभवों को हालिया प्रकाशित पुस्तक ‘मीडिया संसार’ के माध्यम से एक किताब के रूप में पिरोया है।
किसी भी पुस्तक की भूमिका पुस्तक की आत्मा कही जा सकती है। भूमिका आलेखन में विख्यात पत्रकारिता विश्विद्यालय माखनलाल चतुर्वेदी के चेयरमन रहे प्रो. संजय द्विवेदी ने पत्रकारिता के हर पहलु, बदले स्वरूप, वर्तमान पत्रकारिता, जनसम्पर्क माध्यमों की विस्तृत जानकारियां, इनमें व्यापत बुराइयों, सहित कई पहलुओं को साहसिक रूप से उजागर किया है। भूमिका लेखन इस पुस्तक का दिल कहा जा सकता है, जिससे इस कृति का महत्व कई गुणा बढ़ गया है। प्रो. संजय द्विवेदी जो वर्तमान में दिल्ली स्थित जामिया के आई.एम.ए के चेयरमेन हैं उन्होंने ‘भारतीय बाजार से लुप्त हो जाएंगे अखबार, डिजिटल माध्यमों से मिल रही है प्रिंट मीडिया को गंभीर चुनौतियां’ शीर्षक से अपने आलेख में हर विषय पर ज्ञानवर्धक पहलू उजागर करते हुए, पत्रकारिता, प्रिंट मीडिया डिजिटल व्यवस्था की भेंट चढ़ जाने से इसके लुप्त होने की शुरुआत पर गंभीर चिंता व्यक्त कर विचारणीय बिंदु सामने रखा है।
पत्रकारिता एवं जन संचार विषय पर यह कृति देश के पत्रकारों, इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज्म, जनसंचार माध्यमों, विज्ञापन कॉर्पोरेट सेक्टर से जुड़े लोगों सहित, अखबार मालिकों, प्रशिक्षु पत्रकारों, शोधार्थियों के लिए पत्रकारिता की विधाओं, समस्याओं, चुनौतियों की दृष्टि से ज्ञान का पिटारा बन गई है। जी हाँ ! दोस्तों पुस्तक मीडिया संसार के कुल 231 पृष्ठों में पत्रकारिता, जनसम्पर्क, विज्ञापन, सहित सभी विषयों पर ऐतिहासिक जानकारियों सहित, नियमित होने वाले बदलाव, उतार चढ़ाव, हर भाषा में पत्रकारिता का महत्व सहित विभिन्न मुद्दों को बहुउपयोगी बनाते हुए गागर में सागर की तरह हर जानकारी को इसमें कुशल शिल्पी की भांति शब्दों में पिरोया हैं। जयपुर राजस्थान में धामाणी मार्किट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर, स्थित प्रकाशक साहित्यागार के द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य 450 रूपये है, जो ऐमेजॉन पर भी ऑन लाइन उपलब्ध है । तीन खंडों में लिखित मीडिया संसार के पहले खंड में पौराणिक काल, लोककथा काल, कहानी काल, शैलचित्र, नारद मुनि काल सहित जनसम्पर्क व्यवस्था के सभी पहलुओं को एक शोध के समान बिंदुवार प्रकाशित किया है। उक्त खंड एक में, जनसम्पर्क एवं जनसम्पर्क के माध्यम प्राचीन ग्रंथ एवं हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ, जनसम्पर्क विधा शिलालेख, परम्परागत लोकजनसंचार माध्यम, मध्यकालीन वाकिया निगार, श्रव्य माध्यम रेडियो, दृश्य एवं श्रव्य माध्यम चलचित्र तथा दूरदर्शन, संचार माध्यम इंटरनेट एवं कम्प्यूटर, प्रचार माध्यम विज्ञापन, बहुआयामी संचार माध्यम मोबाइल, सोशल मीडिया एवं जनसंचार माध्यमों में कॅरियर पहलुओं को बहतरीन ज्ञानवर्धक जानकरियों के साथ उल्लेखित किया है। जबकि पुस्तक के खंड दो में समाचार, पत्र एवं पत्रकारिता, विषय पर ऐतिहासिक बदलावों के साथ, प्रारम्भिक काल से आज तक के बदलावों को संक्षिप्त, सारगर्भित लेकिन विशेषज्ञ शोध सामग्री के साथ व्यवस्थित किया गया है। पत्रकार एवं पत्रकारिता के इस खंड में पत्रकारिता के महत्वपूर्ण क्षेत्र, समाचार पत्रों का उद्भव, भारतीय राष्ट्रीयता और हिंदी पत्रकारिता, भारतीय भाषायी पत्रकारिता, सहित हर पहलु को गागर में सागर की तरह उजागर किया गया है। रामायण काल में लक्ष्मण के मूर्छित होने पर जब हनुमान जी से संजीवनी बूंटी लाने को कहा हनुमान जी संजीवनी नाम भूल गए तब वह पूरा पहाड़ ही उठा लाये थे। बस ! यह पुस्तक मीडिया संसार ऐसा पर्वत है, जिसमें, पत्रकारिता ,जनसंचार सहित, संवाद के सभी बदलते स्वरूपों पर ज्ञानवर्धक चर्चा है, बहुउपयोगी जानकारियां हैं।
पुस्तक के खंड तीन में पत्रकारिता के सभी पहलुओं पर देश के ख्यातनाम अनुभवी पत्रकारों, प्रोफेसरों, रिसर्च स्कॉलर्स के चिंतन-मनन, अनुभवों और ऐतिहासिक जानकारियों के साथ प्रकाशित किया है। इस खंड में नामचीन पत्रकार, लेखक, शोधार्थी डॉ. महेंद्र पत्रकारिता जनसंचार माध्यमों में लोकजीवन में कानों कान खबर लेख में आदिकाल से वर्तमान तक की समस्त जानकारियां दी हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, विख्यात लेखक डॉ. वेदव्यास ने इस खंड में अपने आलेखित लेख में दैनिक नवज्योति के संस्थापक, वरिष्ठ पत्रकार स्वतंत्रता सेनानी, कप्तान दुर्गाप्रसाद चैधरी की पत्रकारिता के संस्मरण को इतिहास बन गयी कप्तान की कथा, शीर्षक में उल्लेखित किया है। प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है, विषय को विख्यात लेखक ललित गर्ग ने अपने अनुभवों के साथ सभी ऐतिहासिक, विधिक जानकारियों का उल्लेख किया है। विख्यात पत्रकार, लेखक जनसम्पर्क माध्यमों के विशिष्ठ अनुभवी कलमकार, बालमुकुंद ओझा ने अपने आलेख दीन हीन की आवाज को बुलंद करती है, साहित्यिक पत्रकारिता विषय पर गंभीर चिंतन किया है। इसी तरह से वरिष्ठ पत्रकार अख्तर खान अकेला ने उक्त पुस्तक प्रकाशन का संक्षिप्त परिचय भी आलेखित कर पत्रकारिता के बदलते हालातों में आये बदलाव, गिररावट का उल्लेख निर्भीकता से किया है। राजस्थान में हाल ही में पुरस्कृत लेखक डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव पुस्तकालयाध्यक्ष ने सोशियल नेटवर्क की लोप्रियता और चुनौतियों पर अपने लेख में सभी पहलुओं को ज्ञानवर्धक जानकारियों के साथ उजागर किया है।
देश की आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता एक माध्यम रही है पर जोर देते हुए लेखक पन्नालाल मेघवाल ने प्रजामंडल पत्रिका योगदान ,शीर्षक से प्रकाशित लेख में सभी बिंदुओं को उजागर करने का प्रयास करते हुए आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता की भूमिका को उजागर किया है। विशेषज्ञ लेखक ऋषि कुमार सहगल ने साइबर क्राइम का आतंक विश्व के लिए बहुत बढ़ा खतरा, बताते हुए साइबर आतंक के खतरों को उजागर किया है। डॉ. तुकनक भानावत लेखक एवं पत्रकार ने पूंजी निवेशकों का बढ़ता नियंत्रन आलेख में पत्रकारिता पर पूंजीपतियों के नियंत्रण को लेकर विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हुए चिंता जताते हुए समाधान की राह दिखाई है। पत्रकार के.डी. अब्बासी ने उनके आलेख चैनलों का सत्यांश सम्प्रेषण घातक, शीर्षक से अपने लेख में, सभी बदलाव, बिंदुओं पर महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी हैं। हाड़ोती में कोटा बारां क्षेत्र में कई सालों के अनुभवों के साथ पत्रकारिता में मुखर लेखक दिलीप शाह मधुप ने अपने अनुभवों को चुनौतियों के बीच ग्रामीण पत्रकार निभा रहे है, पत्रकारिता का धर्म, शीर्षक से प्रकाशित लेख में, ग्रामीण आँचलिक पत्रकारों के दुःख दर्द, योगदान, दायित्वों पर विस्तृत चर्चा की है। शोधार्थी निशा गुप्ता ने अपने आलेख, मानवीय भावों की धरोहर, हिंदी पत्रकारिता, विषय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की है।
लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने अपने अनुभवों के आधार पर, जन सम्पर्क को रोजगार से जोड़ने के टिप्स देते हुए इन टिप्स को अपना कर बने सफल जन सम्पर्क अधिकारी, विषय पर ज्ञानवर्धक, बहुमूल्य जानकारी, सुझावों के साथ आलेखित की है। पत्रकारिता और सोशल मिडिया, पर्यावरण संरक्षक है, विषय को, पर्यावरण विद वरिष्ठ पत्रकार, ब्रजेश विजयवर्गीय ने अपने अनुभवों के साथ, प्रकृति का प्रहरी बन रहा सोशल मिडिया विषय पर ज्ञानवर्धक लेख लिखा है। कोटा से दैनिक भारत महिमा के प्रकाशक, सम्पादक, डॉ. डी ऍन गाँधी ने जागरूकता और विकास में लघु समाचार पत्रों का योगदान और उनकी वर्तमान दशा का उल्लेख किया है, जबकि पत्रकारिता कैसे करें ,पत्रकार में हो यह विशेषताएं विषय पर लेखक सत्येंद्र भट्ट ने विविध जानकारियां सांझा की हैं। पुस्तक के अंत में, उक्त मिडिया संसार में विभिन पहलुओं की विविध जानकारियों के संदर्भों का हवाला है ।
पुस्तक को पढ़ने से लगता है कि आज देश में ही नहीं विश्व में जो भी कुछ पत्रकारिता में बदलाव हुए है, जो इतिहास रहा है, जो कमियां हैं, जो जरूरर्ते हैं, विज्ञापन के लिए जो व्यवस्थाएं बदलती रही हैं, विभिन्न उतार चढाव के सभी पहलू, हर तरह का ज्ञान, आवश्यक जानकारियां, सुझाव, रोजगार से पत्रकारिता, जनसंचार माध्यम का जुड़ाव, हर बिंदु पर इस पुस्तक में सारगर्भित चर्चा की गई हैं। इसीलिए इस पुस्तक को मिडिया संसार शीर्षक देकर प्रकाशन को सार्थक कर दिया है।
कहते हैं चित्र, कार्टून भी अभिव्यक्ति होती है, उसे भी इस पुस्तक में विस्तृत रूप से उजागर किया हैं। मुख पृष्ठ पर इसका सटीक उदाहरण भी पेश किया है, जो सिंघल का क्रिएशन है। मिडिया संसार के मुख पृष्ठ की साज सज्जा का आप सूक्ष्म अवलोकन करने से एक तरफ डिजिटल पत्रकारिता, सोशल मिडिया के बदलाव के सांकेतिक बदलाव जिसमें वाट्सअप, इंस्टाग्राम,फेसबुक, ब्लॉगिंग वगेरा-वगेरा खूबसूरत अंदाज में दर्शाए गए हैं, जबकि बीच में शीर्षक, मिडिया संसार यानी मीडिय से संबंन्धित पूरी दुनिया का अहसास कराया गया है और इसके नीचे इलेक्ट्रॉनिक न्यूज चेनल्स के माध्यम को फोटोग्राफ से माइक और चैनल के लोगों लेकर हाथ बताये गये है जो आज के युग में रोज हो रहा है। इतिहास के पौराणिक काल में पत्रकारिता कलम से चलती थी फिर पेन की निब से पत्रकारिता शुरू हुई, इसलिए पेन की पुरानी कलम की निब चित्रित करते हुए पत्रकारिता का एक माध्यम उजागर किया है। बायीं तरफ प्रिंट मिडिया के प्रकाशित अखबारों को चित्रित करते हुए प्रिंट मीडिया युग का विश्लेषण है, साथ ही पत्रकारिता के पक्रृति से जुड़ाव को जोड़ने के लिए प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन करते हुए एक चित्र जिसमे खूबसूरत पेड़ -पौधे एक खूबसूरत सोंदर्यकृत वातावरण को उजागर कर रहे हैं ।

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