संपादकीय

आपसी लड़ाई में उलझी राजस्थान भाजपा

-रमेश सर्राफ धमोरा
स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

राजस्थान भाजपा में इन दिनों वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी हुई है। प्रदेश में भाजपा का नेता कौन हो इसके लिए सभी नेता अपने आप को आगे करने में लगे हुए हैं। केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाए गए भूपेंद्र यादव ने जन आाशीर्वाद यात्रा निकाली। अपनी जन आाशीर्वाद यात्रा के दौरान केंद्रीय मंत्री यादव ने राजस्थान में झुंझुनू, जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर जिलों में विभिन्न स्थानों पर जनसभाएं की जिनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। उसके बाद कयास लगाए जाने लगे कि राजस्थान विधानसभा का अगला चुनाव यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
हालांकि इस इस तरह की चर्चा चलते ही भूपेंद्र यादव ने खुद को नेता प्रोजेक्ट करने की बात का खंडन करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा बनाये गये सभी नए मंत्रियों को अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में जन आशीर्वाद यात्रा निकालने को निर्देशित किया गया था। उसी के अंतर्गत वह राजस्थान के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों से अपनी जन आाशीर्वाद यात्रा निकालकर आम जनता से संपर्क स्थापित कर रहे हैं।
यादव ने स्पष्ट कर दिया कि वह कुछ दिनों पूर्व ही केंद्र सरकार में मंत्री बनाए गए हैं। उनका इरादा केंद्र सरकार में ही काम करने का है। प्रदेश की राजनीति में उतरने का उनका कोई इरादा नहीं है। केंद्रीय मंत्री यादव की यात्रा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अलावा प्रदेश के अन्य सभी बड़े नेता शामिल हुए। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया झुंझुनू के अलावा अन्य सभी स्थानों पर यात्रा में साथ रहे।
केंद्र में मंत्री बनने के बाद भूपेंद्र यादव द्वारा निकाली गई जन आाशीर्वाद यात्रा में जुटे जन समर्थन को देखकर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा भी फिर सक्रिय हो गया है। वसुंधरा समर्थकों का प्रयास है कि वसुंधरा को ही नेता प्रोजेक्ट करवाकर उनके नेतृत्व में जनसम्पर्क अभियान चलाया जाए। मगर भाजपा आलाकमान उनकी नहीं सुन रहा है। रही सही कसर वसंुधरा के कट्टर समर्थक पूर्व मंत्री डॉ रोहिताश शर्मा को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निष्कासित किए जाने के बाद राजे समर्थकों के तेवर नरम पड़ गये हैं। उन्हें अंदेशा हो गया है कि यदि उन्होंने पार्टी लाइन को पार किया तो उसका बड़ा खामियाजा वसुंधरा राजे को उठाना पड़ सकता है। राजे स्वयं भी ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती है। जिससे पार्टी आलाकमान को उनके खिलाफ कार्रवाई करने का मौका मिल सके।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष होने के चलते सतीश पूनिया ही पार्टी को लीड कर रहें है। पूनिया संघ के करीबी माने जाते हैं। लो प्रोफाइल रहकर काम करने वाले पूनिया संगठन के विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। प्रदेश के सभी जिलों में आम कार्यकर्ताओं तक उनकी सीधी पहुंच होने के कारण उनको कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन मिल रहा है।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत भी केंद्र की राजनीति के साथ ही प्रदेश में पूरे सक्रिय रहतें है। गजेंद्रसिंह शेखावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जिले से हैं। लगातार दूसरी बार सांसद बने हैं तथा इस बार तो उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बड़े अंतर से चुनाव हराया था। इसी के ईनाम स्वरूप उनको केंद्र में जल संसाधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। वसुंधरा राजे विरोधी गजेंद्र सिंह भी संघ के करीबी है। पिछले विधानसभा चुनाव से पूर्व केंद्रीय नेतृत्व उनको प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाना चाहता था। मगर वसुंधरा राजे के चलते उनकी नियुक्ति रुक गई थी। राजपूत समुदाय के गजेंद्र सिंह शेखावत प्रदेश में भाजपा के नए नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी निष्पक्ष छवि के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। इसी के चलते उनको लोकसभा अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद दिया गया है। जहां वो अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। बिरला लगातार पांच चुनाव जीत चुके है। जिनमें तीन बार विधायक व दो बार सांसद चुना जाना शामिल है। किसी गुटबाजी में नहीं रहने के कारण बिरला सभी के चहेते हैं।
पूर्व केंद्रीय मंत्री व जयपुर ग्रामीण से दूसरी बार सांसद बने कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ भी काफी सक्रिय रहते हैं। पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया है। नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में राठौड़ सूचना एवं प्रसारण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय में स्वतंत्र राज्य मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं। हालांकि उन्हें इस बार मोदी सरकार में मौका नहीं मिला मगर आज भी वह केंद्रीय नेतृत्व की पसंद बने हुए हैं। सोशल मीडिया पर लगातार सक्रिय रहने के कारण वो हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। लोगों का मानना है कि आलाकमान ने उनको राजस्थान में रिजर्व में रखा है। जहां भी जरूरत होगी उनके उनको आगे कर दिया जाएगा।
जयपुर राजघराने की दीया कुमारी राजसमंद से सांसद है। इससे पूर्व वह सवाई माधोपुर से विधायक भी रह चुकी है। दो अलग-अलग जिलों में चुनाव जीत कर उन्होंने अपने जनाधार को साबित किया है। दीया कुमारी हर वक्त सक्रिय रहती है। इसी के चलते उनको भाजपा का प्रदेश महासचिव बनाया गया है। वसुंधरा राजे को साइडलाइन किए जाने के बाद महिला नेता के रूप में उन को आगे बढ़ाया जा रहा है। समय आने पर भाजपा आलाकमान दीया कुमारी पर भी दाव लगा सकता है। इसीलिए उनको संगठन के पदाधिकारी बनाकर पार्टी की कार्यप्रणाली से वाकिफ करवाया जा रहा है।
कुल मिलाकर राजस्थान के भाजपा नेताओं में खुद को अगला नेता स्थापित करने की होड़ मची हुई है। इस दौड़ में शामिल सभी नेता चाहते हैं कि पार्टी आलाकमान उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव में नेता प्रोजेक्ट करें। ताकि बहुमत मिलने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के लिए उनका दावा मजबूत रहे। वैसे भी भाजपा आलाकमान राजस्थान में धीरे-धीरे युवा नेताओं को आगे बढ़ा रहा है। जिनमें केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चैधरी, चूरू के सांसद राहुल कस्वा, गंगानगर के सांसद निहालचंद मेघवाल, चित्तौड़गढ़ से सांसद सीपी जोशी जैसे नाम प्रमुख है।
राजस्थान में भाजपा के सभी युवा नेता वसुंधरा राजे के विरोध में तो एकजुट हो जाते हैं। मगर अंदर खाने एक दूसरे की टांग खिंचाई का कोई मौका नहीं चूकते हैं। नेताओं की आपसी लड़ाई के चलते ही प्रदेश में भाजपा विपक्ष की भूमिका सही ढ़ंग से नहीं निभा पा रही हैं। पार्टी की आपसी लड़ाई के चलते ही राजस्थान में कर्नाटक, मध्यप्रदेश जैसा राजनीतिक खेल नहीं हो पाया। कांग्रेस नेता सचिन पायलट की बगावत के बाद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आराम से शासन चला रहे हैं। हालांकि प्रभारी महासचिव अरूण सिंह कह चुके हैं कि आगामी चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर लड़ा जायेगा। किसी को नेता प्रोजेक्ट नहीं किया जायेगा। इसके उपरांत भी पार्टी नेताओं में आपसी खिंचतान जारी है। जो किसी भी दृष्टि से भाजपा के लिये शुभ नहीं हैं।

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