संपादकीय

धर्म छुट्टी पर, विज्ञान ड्यूटी पर

-एच. एल. दुसाध
मानव जाति के ज्ञात इतिहास में कोविड- 19 के संक्रामण से जितनी बड़ी चुनौती इन्सानों को मिली है, उससे कम भगवानों को भी नहीं मिली है। सच तो यह है कोरोना के दहशत से लोग कुछेक माह के अंतराल में ऊबर जाएंगे, किन्तु जिस तरह लोगों का ईश्वरविश्वासी धर्मों से मोहभंग हुआ है, उसकी भरपाई विभिन्न धर्मों के ठेकेदार निकट भविष्य में कर पाएंगे, लोगों का रुझान देखते हुये भारी संशय नजर आता है। विगत कुछ दिनों से धर्म का मखौल उड़ाने वाले एक से एक पोस्ट वायरल हो रहे हैं। आज 26 मार्च को भी लगभग आधे दर्जन ऐसे पोस्ट वायरल हुये हैं, जिनके असर को देखते हुये यह लेखक प्रस्तुत आलेख लिखने से खुद को नहीं रोक पाया। आज फेसबुक पर जो पोस्ट सबसे पहले मेरी दृष्टि आकर्षित किया, वह यह था-‘कोरोना ने जिसकी सबसे बढ़िया धज्जी उड़ाई है, उसका नाम धर्म है’। इस पोस्ट ढेरों लोगों ने लाइक और शेयर किया था। इसी तरह ‘गॉड इज नॉट ग्रेट’ शीर्षक से लिखा गया बड़ा सा पोस्ट भी लोगों ने खूब लाइक किया था, जिसका निम्न अंश बतलाता है कि लोग धर्मों के खिलाफ कितना मुखर हुये हैं।
‘कोरोना वायरस प्रकृति ने पैदा किया है, जिसका इंसान के पैदा किए हुए ईश्वर गॉड और अल्लाह कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सिर्फ विज्ञान है जो उसे आज कंट्रोल करेगा। सभी धर्मों के ठेकेदारों का यह सनातन दावा है कि ईश्वर इस ब्रह्मांड का निर्माता है और वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और हर जगह पर मौजूद है और उसकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता है। दुनिया का सबसे बड़ा धर्म क्रिश्चन है और पूरी दुनिया के क्रिश्चन लोगों का सबसे बड़ा गुरु इटली के रोम शहर में रहता है, जिसे वेटिकन सिटी कहा जाता है। आजकल कोरोना के डर से इटली के सभी चर्च और वेटिकन सिटी लॉक डाउन है और उनका सबसे बड़ा धर्म गुरु यानी पोप कहीं छुप कर बैठा है। दुनिया का सेकंड नंबर का धर्म इस्लाम है और दुनिया भर में फैले मुसलमानों की सबसे पवित्र भूमि और पवित्र धर्मस्थल मक्का- मदीना है, वह भी आज पूरी तरह से बंद है। और दुनिया के तीसरे नंबर का धर्म यानी हिंदू धर्म और उसके सभी प्रसिद्ध धर्मस्थल जैसे कि चारों धाम, बालाजी मंदिर, शिर्डी के साईं बाबा का मंदिर, जम्मू के वैष्णो देवी का मंदिर और बहुत सारे छोटे-मोटे मंदिर आज लॉक डाउन है। दुनिया के किसी भी धर्म में और किसी भी भगवान में इतनी ताकत नहीं है कि वह कोरोना नाम के एक मामूली कीटाणु को रोक सकें। कोरोना वायरस ने फिर एक बार साबित किया है की ईश्वर, गॉड या अल्लाह यह सब पाखंड है। धर्म के ठेकेदारों ने बुद्धिहीन लोगों के अज्ञान और डर का फायदा उठाकर उनका शोषण करने के लिए दुनिया भर में बड़े-बड़े धर्मस्थल बना रखे हैं। और हजारों सालों से भोली भाली जनता के अज्ञान और डर का नाजायज फायदा उठा रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं’।
लेकिन आज जो पोस्ट सर्वाधिक वायरल हुआ, वह सुप्रसिद्ध पत्रकार उर्मिलेश का निहायत ही छोटा सा यह पोस्ट था, ‘देश के एक बड़े डॉक्टर का सुबह-सुबह दो पंक्तियों का संदेश मिला-धर्म छुट्टी पर, विज्ञान ड्यूटी पर है!’ दो पंक्तियों के इस पोस्ट को अनगिनत लोगों ने लाइक और शेयर किया। इससे प्रेरित होकर प्राख्यात शिक्षाविद प्रो काली चरण स्नेही ने यह कविता ही लिख डाला-‘ मंदिर-मस्जिद चर्च सब पड़े हुये सुनसान, छुट्टी लेकर भाग गए सब के सब भगवान। ड्यूटी पर हैं डॉक्टर, स्वीपर-पुलिस जवान- महाविपत में भाग गए, छुट्टी ले भगवान।‘ बहरहाल शाम होते-होते ‘धर्म छुट्टी पर, विज्ञान ड्यूटी पर-पोस्ट के साथ जिसने होड लगाया, वह एक तस्वीर थी, जिसमे देखा जा रहा है कि कोरोना ग्रस्त पृथ्वी(ग्लोब) को बाबा रामदेव के साथ कुछ संत मिलकर गो-मूत्र से धो रहे हैं। इस पोस्ट पर जितनी भद्दी भाषा में हिन्दू धर्म का उपहास उड़ाते हुये, विज्ञान का जयगान किया गया था, वह चैकाने वाला रहा। कोरोना के प्रसार के पूर्व धर्म और विज्ञान पर इस किस्म का प्रहार कभी-कभार देखने को मिलता था, जोकि अब आम सा हो गया है। कोरोना ने जिस पैमाने पर लोगों का धर्म से मोहमुक्त किया है, उससे लगता है विज्ञान नए सिरे से प्रतष्ठित होने जा रहा है। अतः एक ऐसे समय में जबकि विज्ञान के प्रति लोगों में सम्मान का लम्बवत विकास होने की संभावना पैदा होती दिख रही है, बेहतर होगा हम उन अग्रदूतों को याद कर लें, जिन्होंने वैज्ञानिक क्रान्ति घटित कर विज्ञान को धर्मों की धज्जियां उड़ाने की स्थिति में पहुंचा दिया है।
जब बात वैज्ञानिक क्रांति की हो रही तो जेहन मे जिनका नाम प्रमुखता से उभरता है, वे हैं- कोपरनिकस, जियार्दानों ब्रूनों, गैलेलिओ, लियोनार्डो विंसी, जीरोलामो फ्रांकास्टोरो, विलियम हार्वे, जेम्स वाट, जार्ज स्टीफेंशन इत्यादि। मार्टिन लूथर द्वारा यूरोप में की गयी धार्मिक क्रांति के जठर से पैदा हुये इन अग्रदूतों में जो कॉमन बात थी, वह यह कि प्रायः सभी ही ईसाई रहे, जिन्होंने धर्मो द्वारा फैलाये गए अंधकार को चीर कर विज्ञान का आलोक फैलाया। 1473 में पोलैंड के पोमेरानिया नामक प्रदेश के, थर्न नामक स्थान में जन्मे कोपरनिकस, इस सत्य से वाकिफ थे कि यदि धर्मशास्त्रों में प्रतिपादित इस मान्यता- सूर्य और तारे पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं- को ध्वस्त करते हैं तो धर्माधिकारी उनकी जान सासत में डाल देंगे। 1543 में उनके मित्रों ने जब उनकी खोज पुस्तक की पहली प्रति उनके हाथ मे रखी, उस समय वह अपनी जिंदगी की आखिरी साँसे गिन रहे थे। लेकिन,1548 में जन्मे इटली के महान विज्ञानी जियार्दानों ब्रूनों को कोपरनिकस की तरह स्वाभाविक मौत नहीं नसीब हुई। 16 फरवरी,1600 को धर्माधिकारियों के फैसले के तहत, उन्हें जिंदा जला दिया गया। किशोरावस्था में ही ज्ञान पिपासु ब्रूनों को उनके अभिभावकों द्वारा आध्यात्मिक ज्ञान-लाभ के लिए एक मठ मे भेज दिया गया था। किन्तु बाइबल की तुलना मे विज्ञान विषयक ज्ञान मे अत्यधिक रुचि रखने वाले ब्रूनो धर्माधिकारियों से छुप-छुप कर कोपरनिकस की रचनाओं का अध्ययन करने लगे रू फलतः वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बिना न रह सके कि ब्रह्मांड के विषय मे धर्म की धारणायेँ भ्रांत हैं। उनके निष्कर्षों से अवगत होने के बाद चर्च ने उन्हे चैन से नहीं रहने दिया। उन्हें प्राण रक्षा के लिए दर-दर भटकना पड़ा। उन्होंने घोषणा किया था ब्रह्मांड की अनंतता का और साबित किया था कि ब्रह्मांड मे जुगुनुओं सरीखे दिखने वाले तारे आकार में वैसे नहीं हैं जैसा धर्मगुरु बताते हैं: उनका आकार सूर्य के समान है और उनकी हमसे दूरी आमापनीय है। उनकी यह घोषणा धर्म और धर्माधीशों की कलई खोलने वाली घोषणा थी। परिणामस्वरूप उन्हे सात वर्ष धार्मिक न्यायालय मे रहना पड़ा और अंत में वरण करना पड़ा: मृत्यु- दंड !
वैज्ञानिक क्रान्ति का सर्वाधिक श्रेय जिस मनीषी को जाता है, वे गैलेलियों भी धर्माधीशों का कोपभाजन बने बिना न रह सके। 1564 में इटली मे जन्में गैलेलियों ने 1642 मे इस धरा को अलविदा कहने के पहले, मानवता को धर्मांधता और रूढ़िवादिता से निजात दिलाने का विशाल इतिहास रच डाला था। अपने जमाने का हैरतंगेज यंत्र दूरबीन बनाकर उन्होंने दुनिया को दिखा दिया था कि धर्म आज तक लोगों को बेवकूफ बनाता रहा है। दुनिया ने उनकी दूरबीन पर आँख गड़ा कर प्रत्यक्ष किया तो पाया ‘ चंद्रमा पूरी तरह गोलाकार नहीं है और उसमे बने धब्बे किसी भारतीय ऋषि का प्रक्षेपित मृगछाला नहीं: वहाँ मौजूद पर्वत- पहाड़ इत्यादि हैं।‘ गैलेलियों ने अपनी दूरबीन से, धार्मिक अवधारणाओं के विपरीत बृहस्पति के उपग्रहों को बृहस्पति की परिक्रमा करते खुद देखा और दुनिया को दिखाया। किन्तु उनका यह क्रियाकलाप धर्म विरोधी माना गया, क्योंकि इससे स्वर्ग मे स्थान दिलाने वाले धर्म की मान्यताएं खंडित होती थीं। गैलेलियो ने 1610 में‘ सिंडरियस ननटियस’ नामक पुस्तक रचकर दुनिया मे सनसनी फैला दी थी। यह पुस्तक हजारों साल पुरानी तमाम धर्मों की इस अवधारणा को सीधी चुनौती पेश की थी कि,‘ पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को चूंकि ईश्वर ने बनाया है, इसलिए ब्रह्मांड द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा का प्रावधान ईश्वर का ही रचा हुआ है।‘ इस महान मनीषी की खोजपूर्ण मनीषा से एक और महाविस्फोट 1932 में ‘डायलॉग कन्सर्निंग द टू चीफ सिस्टम ऑफ द वर्ल्ड: द टॉलमिक एंड कोपरनिकस’ नामक रचना से हुआ। ई.पू. दूसरी सदी में जन्मे खगोलशास्त्री टॉलमी ऐसे शख्स रहे जिन्होंने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया था कि ‘पृथ्वी विश्व का एक स्थिर केंद्र है’, जिसे विद्वानों ने पढ़ाया और चर्च ने खुलकर स्वीकृति दिया था। गैलेलियों ने अपनी नयी रचना द्वारा टॉलमी के सिद्धान्त की धज्जियां बिखेर कर रख दी थी। यही नहीं इस खोजपूर्ण रचना ने धर्म से जुड़े सिद्धांतों की बुनियादें हिलाकर रख दी थी। परिणामस्वरूप गैलेलियो को बनना पड़ा धर्माधीशों का कोपभाजन। 70 वर्षीय वृद्ध गैलेलियों पर चर्च ने चलाया मुकदमा और वापस लेने पड़े इस महान वैज्ञानिक को अपने शब्द। बावजूद इसके धर्माधिकारियों के उत्पीड़नों के मध्य जारी रही, धर्म द्वारा फैलाये गए अंधकार को भेदने की पश्चिम की मनीषा की विज्ञान यात्रा।
अपने पूर्ववर्ती मनीषियों के निष्कर्षों के अध्ययन के आधार पर ‘सार्वजनिक गुरुत्वाकर्षण’ के अपने सिद्धान्त का आविष्कार कर, 1642 में जन्मे आइजक न्यूटन ने यह साबित कर तहलका मचा दिया कि यह पृथ्वी कोई ईश्वरीय सृष्टि नहीं, अपितु यह एक ऐसी चीज है जो प्रकृति के सुव्यवस्थित नियम के अनुसार गतिमान है। उनके द्वारा दुनिया ने यह जाना कि गतिमान ग्रह सर्वत्र कायम गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ही इधर-उधर न भागकर अपनी कक्षा में स्थिर रहते हैं। प्रकृति में विद्यमान गुरुत्वाकर्षण के नियम से अवगत होने बाद ही आज इंसान दूसरे ग्रह में विचरण करने की अपने सोच को अंजाम दे पा रहा है। धर्मों के फैलाये अंधकार को चीरने के लिए पश्चिम की मनीषियों द्वारा जिस वैज्ञानिक क्रान्ति को जन्म दिया गया, उसी के गर्भ से जन्म हुआ औद्योगिक क्रांति का। हिन्दू धर्म के गर्भ से उपजे शक्ति के प्रतीक हनुमान और महाबली भीम के भीमकाय शक्ति से भी शक्तिशाली इंजन को जन्म दिया महान वैज्ञानिक जेम्सवाट ने तो जार्ज स्टीफेंशन ने धरती की छाती पर दौड़ा दियार – रेल इंजन। फलतः कल-कारखानें जन्म लेकर करने लगे पहले की अपेक्षा कई-कई गुना उत्पादन। वैज्ञानिक पद्धति ने जन्म सहयोग देना शुरू किया कृषि क्षेत्र को, जिससे अन्न उत्पादन में हो गया, भारी इजाफा। आज व्यवसाय-वाणिज्य का जो विकसित रूप नजर आ रहा है, उसका सारा श्रेय जेम्सवाट- स्टीफेंशन और उनके पूर्ववर्तियों का है। बहरहाल आज जिन डॉक्टरों के कारण धर्म की धज्जिया उड़ रही है, उनके पितामहों की चर्चा के बिना वैज्ञानिक क्रांति की चर्चा अधूरी रहेगी।
कोपरनिकस, ब्रूनों, गैलेलियो इत्यादि ने अगर अपनी खोजों से ब्रह्मांड की हजारों साल पुरानी मान्यताओं को छिन्न-भिन्न कर दिया तो 1474 मे जन्मे कोपरनिकस के सहपाठी जिरोलामो फ्रांकास्टोरो ने शरीर क्रिया विज्ञान में धूम मचा दी.दूसरी ओर 1578 में जन्मे अंग्रेज वैज्ञानिक विलियम हार्वे ने अपनी खोज से शरीर क्रिया की दैवीय अवधारणाओं को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। युगों-युगो का यह धार्मिक विचार- आत्मा शरीर को परिचालित करती है तथा महामारियाँ ईश्वरीय के प्रकोप से आती हैं- उस समय ध्व्स्त हो गईं जब विलियम हार्वे ने यह साबित कर दिया कि शरीर एक द्रव्य परिचालित मशीन जैसा है, जिसके चलाने में रहस्यमय आत्मा का कोई सहयोग नहीं! वहीं जिरोलामो फ्रांकास्टोरो ने बता दिया कि संक्रामक रोग एक दूसरे को किस प्रकार संक्रमित कर महामारी बन जाते हैं, जैसे आज कोरोना बन गया है। हार्वे और फ्रांकास्टोरों ने शरीर विज्ञान का जो बुनियादी ज्ञान दिया, उसी के विकास से आज डॉक्टर भगवान की भूमिका मे अवतरित होने मे समर्थ हुये हैंरू आज हम बड़े गर्व से कह रहे है,’धर्म पर छुट्टी पर और विज्ञान ड्यूटी पर है।‘ बहरहाल जब हम इस लेख के जरिये विज्ञान के अग्रदूतों को याद कर रहे हैं तो, विश्व की सबसे की विस्मयकर प्रतिभा लियोनार्दो विंसी को भूलना अन्याय होगा।
विश्व विख्यात ‘मोनालिसा’ के चित्रकार लेखक लियोनार्दो ही वह प्रथम मनीषी थे, जिन्होंने धार्मिक ग्रन्थों को आधार नहीं माना तथा सीधे-सीधे प्रेक्षण और प्रयोगो के द्वारा ही वस्तुओं के कारी और कारण को समझने की दिशा में प्रयत्न किया। पूरी सृष्टि ही जिसकी कुशाग्र बुद्धि की क्रीड़ास्थली रही, उस लियोनार्दो ने कोपरनिकस के पहले ही इस सत्य को स्थापित कर डाला था कि सूर्य, पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता और यह भी कि पृथ्वी भी चंद्रमा की तरह ही एक तारा है। आज से पाँच शताधिक वर्ष पूर्व विंसी इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके थे कि ध्वनि तरंगों मे प्रवाहित होती है और ध्वनि से प्रकाश की गति तीव्रतर होती है। उन्होंने अपनी विशिष्ट प्रतिभा और पैनी दृष्टि के जोर से ग्लाइडर, हवाई छतरी, हेलीकोप्टर इत्यादि की विशद कल्पना पंद्रहवीं सदी में ही प्रस्तुत कर दी थी।
अब जहां तक वैज्ञानिक क्रांति मे हिन्दू मनीषा के योगदान का प्रश्न है, हमें यह बुनियादी बात याद रखनी होगी कि विज्ञान का मतलब ही प्रकृति के रहस्य को जानना यानी उसके रहस्य को वैज्ञानिक ढंग से समझना और समझकर उसे मानव हितों के लिए सदुपयोग करना है। इस बुनियादी सत्य को ध्यान मे रखकर ही पुनर्जागरण उत्तरकाल के योरोपीय मनीषियों ने प्रकृति को अपने विकसित, ज्ञान की कसौटी पर जांचा-परखा और प्रकृति की प्रतिकूलता को जय कर धरती के लोगों को कल्पित स्वर्ग की सारी सुख-सुविधाएं मुहैया करा दिया। किन्तु प्रकृति की गोद मे बैठकर चिंतन करने वाले हिन्दू मनीषी प्रकृति की प्रतिकूलता के खिलाफ जहीनी जंग लड़ने के बजाय प्रकृति के अनुकूलन के लिए 33 कोटि देवी-देवताओं के आविष्कार के साथ उनको संतुष्ट करने के लिए अजस्र मंत्र रचकर,उसके समक्ष पूरी तरह आत्मसमर्पण कर दिये। इसलिए उनकी वर्तमान पीढ़ी के ज्ञानी-गुणी लोग कोरोना से निजात दिलाने के लिए ताली-थाली-शंख बजानेय गाय का गोबर और मूत्र सेवन का उपाय सुझाने के लिए अभिशप्त हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *