संपादकीय

दुनिया के 11 देशों के धार्मिक संगठनों ने किया जीवाश्म ईंधन कारोबार से हर नाता तोड़ने का ऐलान

दुनिया के 11 देशों के 36 धार्मिक संगठनों ने आज खुद को जीवाश्म ईंधन के कारोबार से अपना हर नाता तोड़ने का ऐलान किया। इन ११ देशों में भारत समेत ब्राजील, अर्जेंटीना, फिलीपींस, उगांडा, इटली, स्पेन, स्विटजरलैंड, आयरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका के संगठन शामिल हैं।
यह ऐलान जी7 शिखर बैठक को लेकर विभिन्न देशों के नेताओं की तैयारियों के बीच 36 और धार्मिक संगठनों द्वारा किया गया है। भारत के तमिलनाडु में कैथोलिक यूथ मूवमेंट जीवाश्म ईंधन से मुक्ति पाने के अभियान में शामिल हो गया है।
यह घोषणा करने वालों में एंग्लिकन, कैथोलिक, मेथोडिस्ट, प्रेसबाईटेरियन, बैपटिस्ट तथा अन्य सम्प्रदाय शामिल हैं। इस समूह में वेल्स का चर्च भी शामिल है जो 70 करोड़ पाउंड (975 डॉलर) की परिसम्पत्तियों का प्रबन्धन करता है। इस चर्च ने अप्रैल में अपनी गवर्निंग बॉडी की बैठक में जीवाश्म ईंधन से नाता तोड़ने के प्रस्ताव को पारिति किया। इस फेहरिस्त में डायस ऑफ ब्रिस्टल और डायस ऑफ ऑक्सफोर्ड भी शामिल हैं। ये वे पहले चर्च हैं जिन्होंने जीवाश्म ईंधन से मुक्ति पाने की घोषणा की थी। इसके अलावा ब्रिटेन और आयरलैंड के सात कैथोलिक डायसेस तथा दुनिया भर के अन्य अनेक धार्मिक संगठनों ने भी ऐसे ही ऐलान किये हैं।
धार्मिक संगठनों ने यह महत्वपूर्ण घोषणा एक ऐसे वक्त पर की है जब ब्रिटेन आगामी जून में जी7 शिखर बैठक और नवम्बर में ग्लासगो में आयोजित होने जा रही यूएन क्लाइमेट समिट (सीओपी26) की मेजबानी की तैयारी कर रहा है। इससे जाहिर होता है कि धार्मिक संगठनों का नेतृत्व बढ़ते जलवायु संकट से निपटने के लिये स्वच्छ विकल्पों में निवेश करने और जीवाश्म ईंधन से नाता तोड़ने की फौरी जरूरत को रेखांकित कर रहा है।
चूंकि दुनिया भर की सरकारें कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिये उल्लेखनीय मात्रा में निवेश कर रही हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि उस निवेश से न्यायसंगत और गैर-प्रदूषणकारी क्षतिपूर्ति हो। फिर भी, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि वर्ष 2020 में दुनिया की 50 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कोविड-19 से हुए नुकसान की भरपाई के लिये किये गये खर्च के मात्र 18 प्रतिशत हिस्से को ही प्रदूषणमुक्त माध्यमों पर हुए व्यय के तौर पर देखा जा सकता है।
धार्मिक संस्थाओं ने यह ऐलान मंगलवार 18 मई को आयोजित होने जा रही रॉयल डच शेल की वार्षिक आम सभा (एजीएम) से ऐन पहले किया है। शेल ने अगले कुछ वर्षों में अपने गैस उत्पादन में बढ़ोत्तरी की योजना बनायी है, जिसके बाद से उस पर खासा दबाव बन चुका है। मेथोडिस्ट चर्च ने कहा है कि उसने अप्रैल 2021 के अंत तक जीवाश्म ईंधन के कारोबार में अपनी बची हुई हिस्सेदारी को भी खत्म कर लिया है। इनमें रॉयल डच शेल के 2.1 करोड़ पाउंड (2.9 करोड़ डॉलर) के शेयर भी शामिल हैं। चर्च ने इसके लिये शेल की जलवायु सम्बन्धी योजनाओं के ‘अपर्याप्त’ होने का हवाला दिया है।
फरवरी में ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट ने नाइजर डेल्टा में वर्षों तक तेल बहाकर जमीन और भूजल को प्रदूषित करने वाले शेल के खिलाफ 42500 नाइजीरियाई किसानों और मछुआरों के एक समूह को ब्रिटेन की विभिन्न अदालतों में मुकदमे दायर करने की इजाजत दे दी। ब्रिटिश सरकार मोजिम्बिक में फ्रांस की तेल कम्पनी ‘टोटल’ द्वारा संचालित होने वाली वृहद तरल प्राकृतिक गैस (एनएनजी) परियोजना के लिये 1 अरब डॉलर देने के अपने विवादास्पद फैसले को लेकर अदालत में चुनौती का सामना कर रही है।
उत्तरी मोजाम्बिक में नैम्पुला के एंग्लिकन बिशप अर्नेस्टो मैनुअल ने कहा ‘‘जीवाश्म ईंधन में निवेश किये जाने से सबसे ज्यादा जोखिम वाले वर्गों और अस्थिरता के दौर से गुजर रहे समुदायों पर भी जलवायु परिवर्तन के असर को तीव्रता मिलती है। हमने देखा है कि कैसे उत्तरी मोजाम्बिक में सात लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित होना पड़ा और अनेक लोगों को विद्रोहियों के आतंक के कारण अपनी जान बचाकर भागना पड़ा।’’
यह घोषणा रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा की गयी उस तरक्की के जश्न के दौरान की गयी जो उसने जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी के बारे में पोप फ्रांसिस द्वारा सभी कैथोलिक चर्च के बिशप को भेजे गये पत्र में दी गयी हिदायतों पर अमल के तहत किये गये पारिस्थितिकी रूपांतरण की अपनी यात्रा के दौरान हासिल की है।
धार्मिक समुदाय लम्बे अर्से से ग्लोबल डाइवेस्टमेंट मूवमेंट में अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं और उन्होंने सबसे ज्यादा संख्या में संकल्पबद्धताएं भी व्यक्त की हैं। पूरी दुनिया में जीवाश्म ईंधन के कारोबार से नाता तोड़ने के, व्यक्त किये गये 1300 से ज्यादा संकल्पों में से 450 से अधिक संकल्प तो धार्मिक संगठनों ने ही जाहिर किये हैं।

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