संपादकीयसैर सपाटा

देखते ही रह जाएंगे पश्चिमी घाट का सौंदर्य

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं पत्रकार

जैव विविधता का हॉट स्पॉट, प्रकृति के अद्भुत खूसूरत नजारे, ऊँचे-ऊँचे पर्वतों के शिखर और अनूठे दर्रो के रोमानी दृश्य, कई प्रकार की चट्टानें, सौन्दर्य से भरपूर हिल स्टेशन, ऐतिहासिक किले और इमारतें, अनेक राष्ट्रीय पार्क, संरक्षित क्षेत्र और पहाड़ी जन-जीवन को नजदीक से देखने का इरादा हो तो आपको ले चलते हैं देश के पश्चिमी घाट की सैर पर। भारत में उत्तर से दक्षिण तक हिमालय से भी अति प्राचीन 16 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले एवं 1600 किलोमीटर लंबी पश्चिमी घाट की पर्वत श्रंखला को इसकी समृद्ध जैव विविधता जो दुनिया में 8 वा स्थान रखती है को यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने 1 जुलाई 2012 को विश्व धरोहर में शामिल करने की घोषणा कर इसे एवं इसके महत्व से संसार को परिचय कराया।

पश्चिमी घाट की पर्वतीय श्रंखला गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों की सीमा पर ताप्ती नदी से प्रारम्भ हो कर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल से गुजर कर कन्याकुमारी तक जाती हैं एवं नीलगिरी के पठार के रूप में मिल जाती है। इस पठार पर अंतिम पर्यटक स्थल ओतत्कमन्दू स्थित है जो समुन्द्र तल से 7 हजार फुट की ऊँचाई पर है। पश्चिमी घाट की सबसे ऊंची चोटी अनाइमुड़ी है एवं पश्चिम घाट की औसत ऊँचाई करीब 1200 मीटर है। पश्चिम घाट को दो सीमाओं उत्तरी सह्याद्री एवं दक्षिणी सह्याद्री में विभक्त किया जाता है। केरल में इसे सहय पर्वतम कहा जाता है।
इस पर्वतीय श्रंखला के वन भारत की मानसून की स्थिति को प्रभावित करती है। जैव विविधता का महत्व इसी से आंका जा सकता है कि यहाँ जीवविज्ञान जगत में ज्ञात करीब 16 लाख प्रजातियों के वन्यजीव पाये जाते हैं और घाटी के समुद्र तट पर लगभग 4 लाख प्रजातियां पाई जाती हैं। घाटी क्षेत्र में 2 जैविक संरक्षित क्षेत्र एवं 13 राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं। नीलगिरी बायोस्फियर रिजर्व का 5500 वर्ग किमी. क्षेत्र इसी का हिस्सा हैै। सम्पूर्ण क्षेत्र में 5 हजार से ज्यादा फूलों की प्रजातियां, 139 स्तनपायी, 508 चिड़ियों एवं 179 उभयचर जीवों की प्रजातियां पाई जाती हैँ।इनमें से पश्चिमी घाट में 1600 फूलों की प्रजातियां, 84 उभयचर,16 चिड़ियों, 7 स्तनपायी प्रजातियां पाई जाती हैं। कर्नाटक पर्वत श्रंखला क्षेत्र में दुनिया का सब से अच्छे चंदन एवं शीशम का पेड़ पाये जाते हैं। यहां हाथियों की 25 प्रतिशत एवं टाइगर की 10 प्रतिशत आबादी भी पाई जाती है। कर्नाटक के 60 प्रतिशत इलाका पश्चिम घाट क्षेत्र में आता है।

पश्चिमी घाट की विश्व धरोहर में 39 स्थानों को शामिल किया गया हैं। जिनमें सर्वाधिक 20 केरल के, 10 कर्नाटक के, 5 तमिलनाडु के और 4 महाराष्ट्र के हैं। पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर, पंचगनी, माथेरान, अंबेली घाट, कुद्रेमुख, कोडाक तथा लोंगेवाला- खंडाला जैसे पर्वतीय स्थल पर्यटन केंद्र स्थित हैं। शरावती नदी पर जोग जलप्रपात, तमिलनाडु की पालनी पहाड़ियों पर स्थित मशहूर हिल स्टेशन कोडाइकनाल, नीलगिरी की पहाड़ियों पर स्थित ऊटी और केरल का साइलेंट वैली पार्क पश्चिमी घाट की शोभा है। साथ ही थालघाट, भोर घाट, पालघाट एवं सेनकोट्टा प्रमुख दर्रे हैं जिनके खूबसूरत दृश्य अत्यंत लुभावने प्रतीत होते हैं।

पश्चिमी घाट जहाँ पर्यटन का नगीना है वहीं यह इलाके की अर्थव्यवस्था का भी महत्वपूर्ण आधार है। यहाँ बागानों की बहुतायत हैं एवं सुपारी,कालीमिर्च, इलायची की खेती के साथ-साथ चाय,कॉफी, रबड़ एवं काजू की खेती से महकता है पश्चिमी घाट। तटीयक्षेत्र में नारियल के साथ कटहल की पैदावार अनन्य विशेषता है।बेसल्ट, ढोलराइट्स, लोह अयस्क, एनथ्रोसाइट्स, खोंडाराइट्स, क्रिस्टलिय चूना पत्थर एवं बॉक्साइट आदि चट्टाने भी यहाँ पाई जाती हैं। प्राय द्वीपीय भारत की अधिकांश नदियों प्रमुखतः गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पेरियार एवं काल नदियों का उद्गम यहीँ से होता हैं।इन पर सिंचाई एवं विद्युत परियोजनाएं बनी हैं।

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