संपादकीय

मानसून आया है !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, (उत्तराखंड)

मिट्टी से सौंधी खुशबू महक रही है,
मानसून आया है !
बदलियां छाने लगीं हैं,
मद्यम हवाओं संग बौछारें आने लगीं हैं,
मानसून आया है !
टिन के छप्परों पर बारिश की बूंदें चहक रही हैं,
मानसून आया है !
टहनियां भारी हैं, मौसम में खुमारी है,
चहुंओर हरितिमा का आलम है
मानसून आया है !
बचपन की स्मृतियां तरो-ताजा हो उठी हैं,
मानसून आया है !
दिल की आंखों में सुकून है,
धरती पुत्र की ख्वाहिशें असर दिखाने लगीं हैं,
मानसून आया है !
पक्षी चहचहाट कर रहे, झूम रहे मन-मयूर
लुप्त हो गई धूप
मानसून आया है !
बीमार पत्ते सड़कों, गलियों में झुंड में बह रहे
धुंधली चादर ओढ़े पहाड़
मानसून आया है !
झागदार झरने खिलखिला उठे हैं
मानसून आया है !
नथुनों में गर्मागर्म चाय की महक
मानसून आया है !
खिड़कियों के शीशों पर धुंध जमीं है
मानसून आया है !
कीचड़ की किचकिचाहट
मन की दीवारों पर कोई दस्तक, कोई आहट
मानसून आया है !
काले-बैंगनी आसमान
चिलचिलाती धूप बीत गई
मानसून आया है !
सुरमई बूंदों की हंसी हर लबों पर है
मानसून आया है !
आई धरा पर नई जैसे जिंदगी
मानसून आया है !

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