भारत का चंद्रयान-3 मिशन रचेगा इतिहास !
–सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार (उत्तराखंड)
यह संपूर्ण भारत देश और सभी भारतवासियों/भारतीयों के लिए बहुत ही गौरवान्वित करने वाली बात है कि विश्व के पावरफुल कहलाने वाले देश अमेरिका ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सराहना की है। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में, अमेरिकी अखबार ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने भारत के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम की सराहना करते हुए यह बात कही है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से स्टार्ट-अप विकसित हो रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि वह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है।अखबार ने यहां तक कहा है कि अमेरिका और भारत दोनों ‘अंतरिक्ष को ऐसे क्षेत्र के रूप में देखते हैं जिसमें भारत उनके परस्पर प्रतिद्वंद्वी चीन को बराबर की टक्कर दे सकता है।’ बताता चलूं कि भारत ने वर्ष 1963 में अपना पहला राकेट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था। उस समय वह दुनिया की सबसे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी अपनाने वाला लेकिन विश्व का एक गरीब देश माना जाता था। जानकारी देना चाहूंगा कि इसरो वर्ष 1969 में स्थापित किया गया था। वास्तव में, इसरो देश के अंतरिक्ष अनुसंधान, विकास और उपग्रह कार्यक्रमों के लिए जिम्मेदार है। इसका मुख्यालय कर्नाटक के बेंगलुरु शहर में स्थित है। इसरो उपग्रह संचार, रिमोट सेंसिंग, मौसम पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन में भी शामिल रहा है। इसरो की प्रमुख उपलब्धियों में चंद्रयान -1 व 2 का प्रक्षेपण, मार्श आर्बिटर मिशन, भारतीय क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह प्रणाली, जीएसएलवीएमके आदि प्रमुख रहे हैं।आज भारत अंतरिक्ष की दौड़ में सोवियत रूस, अमेरिका, चीन, जर्मनी, फ्रांस, जापान जैसे देशों को एक बड़ी टक्कर दे रहा है और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आज शायद ही उसका कोई सानी है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय है कि अखबार ने ‘विश्व के अंतरिक्ष व्यवसाय में आश्चर्यजनक प्रयासकर्ता’ शीर्षक से छपे एक लेख में खुलासा करते हुए यह बात कही है कि भारत में कम से कम 140(एक सौ चालीस)पंजीकृत अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप हैं जिसमें ‘एक स्थानीय अनुसंधान क्षेत्र भी शामिल है और यह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है।’ आज भारत संपूर्ण विश्व में एक वैज्ञानिक शक्ति के केन्द्र में लगातार उभर रहा है। सच तो यह है कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों ने संपूर्ण विश्व को अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को लेकर लोहा मनवाया है, जिसके लिए इसरो शानदार बधाई का पात्र भी है। इसरो ने अपने शुरुआती दिनों में बहुत संघर्ष किया था और यह इसरो व इसके वैज्ञानिकों का ही संघर्ष है कि आज हमारा देश अंतरिक्ष कार्यक्रम के क्षेत्र में एक अग्रणी देश के रूप में गिना जाता है। पाठकों को यह जानकर शायद आश्चर्य होगा कि भारत के पहले रॉकेट की लान्चिंग से पहले, उसके कुछ हिस्सों को साइकिल पर ले जाया गया था। यह इसरो के वर्षों के लंबे सफर का ही नतीजा है कि आज इसरो चंद्रमा, और मंगल पर अपने रॉकेट लॉन्च कर रहा है।सबसे बड़ी बात तो यह है कि सबसे कम खर्च में भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर रहा है और विश्व को चौंकाया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बहुत ही कम समय में बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे तथा अन्य जगहों पर समूहों में करीब 400 निजी कंपनियां बनाईं हैं और प्रत्येक कंपनी अंतरिक्ष के लिए विशेष स्क्रू, सीलेंट और अन्य उत्पाद बनाने के लिए समर्पित है। जानकारी देना चाहूंगा कि हैदराबाद स्थित स्काई रूट और ध्रुव स्पेस मिलकर भारत के आठ प्रतिशत अंतरिक्ष व्यवसाय में योगदान करतीं हैं। आज भारत के पास बहुतायत में किफायती इंजीनियर हैं, वैज्ञानिक हैं। यहां अपने पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अब भारत बहुत जल्द ही चांद पर उतरने वाली एक और शक्ति बनने जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आने वाली 14 जुलाई 2023 को दोपहर बाद 2.35 बजे सतीश धवन केन्द्र श्रीहरिकोटा(आंध्र प्रदेश) से चंद्रयान-3 मिशन के लिए प्रक्षेपण किया जाएगा।लॉन्चिंग के लिए जिस रॉकेट का इस्तेमाल किया जा रहा है, उसका नाम जीएसएलवी-एम के 3 रखा गया है। यह मिशन 75 करोड़ रुपए का है।भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो(इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन)के प्रमुख सोमनाथ ने बताया हैं कि चंद्रयान-3 मिशन के तहत इसरो 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास करने जा रहा है। ऐसे में भारत चीन जैसे देश को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी टक्कर देगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पहले चन्द्र मिशन को 22 अक्टूबर 2008 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-11 द्वारा लॉन्च किया गया था। इसे 8 नवंबर 2008 को चंद्रमा की ऑर्बिट में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था और इसी मिशन के बाद दुनिया ने भारत का लोहा माना था।आज पूरी दुनिया की नजरें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम(चंद्रयान -3) पर टिकी हुई हैं। यदि भारत का यह प्रयास सफल रहता है तो भारत चांद पर उतरने में कामयाब होने वाली विश्व की चौथी बड़ी शक्ति हो जाएगा। यहां बताता चलूं कि रूस और चीन ने भी कम लागत में रॉकेट लॉन्च करने का ऑफर पेश किया था, लेकिन यूक्रेन युद्ध के कारण रूस का अंतरिक्ष कार्यक्रम ठप पड़ गया और इससे ब्रिटेन के वनवेब को भी 230 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। इसके बाद वनवेब इसरो(इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन) के पास भेजा गया था। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए सभी प्रकार के निजी उद्यमों को खोलने की घोषणा की थी और भारत ने पिछले साल अंतरिक्ष स्टार्टअप के नए निवेश में 120 मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए थे। अब भारत अपने चंद्रयान मिशन को अंजाम तक पहुंचाने जा रहा है। पाठकों बताता चलूं कि इससे पहले चंद्रयान-2 मिशन में आखिरी वक्त पर गड़बड़ी आ गई थी।वास्तव में,जब लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह तक पहुंचने से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था, उसका संपर्क ग्राउंड स्टेशन या यूं कहें कि कंट्रोल रूम से उसका संपर्क टूट गया था, लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने इस पर भी हिम्मत नहीं हारी और ‘बार-बार कोशिश करो, एक दिन सफलता जरूर मिल जाएगी’ का पालन करते हुए इस पर अथक काम किया। इसरो अब श्रीहरिकोटा से चंद्रयान- 3 का मिशन को लांच करने जा रहा है। वास्तव में, यह चंद्रयान -2 का ही फालोअप मिशन है।चंद्रयान-3 मिशन में लैंडर तथा रोवर को चंद्रकक्षा के सौ किलोमीटर दायरे तक ले जाया जाएगा। इसके साथ एक वैज्ञानिक उपकरण भी है जिसे लेंडर मॉड्यूल के अलग होने के बाद संचालित किया जाएगा।चंद्रयान-3 के लैंडर में चार पेलोड हैं, जबकि छह चक्कों वाले रोवर में दो पेलोड हैं।आपको बताता चलूं कि चंद्रयान के लैंडर का नाम विक्रम ही होगा, जो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इस रोवर का नाम प्रज्ञान होगा।चंद्रयान-3 मिशन सबसे अलग और अपने आप में सबसे खास और महत्वपूर्ण इसलिए है, क्यों कि अब तक दुनिया के जितने भी देशों ने अभी चंद्रमा पर अपने यान भेजे हैं, उन सभी की लैंडिंग चांद के उत्तरी ध्रुव पर हुई है, लेकिन चंद्रयान-3 चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन होगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव को टारगेट करने के कारणों की अगर यहां बात करें तो इसके पीछे कारण यह है कि यहां उत्तरी ध्रुव के मुकाबले एक बड़ा छायादार क्षेत्र मौजूद है। वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रमा की सतह के इस क्षेत्र में पानी के स्थायी स्रोत पाए जाने की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों की दक्षिणी ध्रुव में मौजूद गड्ढों में गहरी दिलचस्पी है।उनका मानना है कि इनमें प्रारंभिक ग्रह प्रणाली के रहस्यमयी जीवाश्म रिकॉर्ड मिल सकते हैं। बहरहाल,इस मिशन में एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है।यह चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और घूमने में एंड-टू-एंड क्षमता प्रदर्शित करने के लिए चंद्रयान -2 का अनुवर्ती मिशन है। चंद्रयान -3 मिशन में एक स्वदेशी लैंडर मॉड्यूल, प्रोपल्शन मॉड्यूल और एक रोवर शामिल है, जिसका उद्देश्य अंतर-ग्रहीय मिशनों के लिए जरूरी नई तकनीकों को विकसित और प्रदर्शित करना है। यहां पाठकों को यह जानकारी देना चाहूंगा कि चंद्र लैंडर से संबंधित उपकरण तापीय चालकता, तापमान को मापने के लिए सरफेस एक्सपेरिमेंट और लैंडर के उतरने के स्थल के आसपास भूकंपीयता को मापेंगे। इस सॉफ्ट लैंडिंग से रोवर तैनात करने की क्षमता है, जो अपनी गतिशीलता से चंद्र सतह का रसायनिक विश्लेषण करेगा। मीडिया के हवाले से पता चला है कि लैंडर और रोवर पर फिट वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा के विज्ञान का अध्ययन करेंगे और दूसरा प्रायोजित उपकरण चंद्रकक्षा से पृथ्वी के सिग्नेचर प्रभाव का अध्ययन करेगा।कहना ग़लत नहीं होगा कि इसरो का निरंतर प्रयासों से आगे बढ़ना हम भारतीयों को गौरवान्वित करने की बात है। चंद्रयान 3 के उद्देश्यों में क्रमशः चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग को प्रदर्शित करना,चांद पर घूमते हुए रोवर को प्रदर्शित करना तथा चांद पर वैज्ञानिक प्रयोग करना शामिल हैं। चंद्रयान -3 मिशन से लैंडिंग साइट के आसपास की जगह में चंद्रमा की चट्टानी सतह की परत, चंद्रमा के भूकंप और चंद्र सतह प्लाज्मा और मौलिक संरचना की थर्मल-फिजिकल प्रॉपर्टीज की जानकारी मिलने में मदद मिल सकेगी। निश्चित ही भारत का चंद्रयान -3 मिशन अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक इतिहास रचने जा रहा है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)