अनुच्छेद-370 और 35ए की समाप्ति का मार्ग
-विमल वधावन योगाचार्य
(एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट)
जम्मू कश्मीर को लेकर संवैधानिक प्रावधानों पर चर्चा का बाजार एक बार फिर गरमा रहा है। संविधान का अनुच्छेद-370 तो अनेकों वर्षों से चर्चित विषय रहा। भाजपा ने अनुच्छेद-370 हटाने के वायदे किये, परन्तु इस बात पर कभी विचार व्यक्त नहीं किया कि धारा-370 हटाने की प्रक्रिया क्या होगी। अनुच्छेद-370 में जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है। यह प्रावधान भारतीय संविधान के साथ 26 जनवरी, 1950 को ही लागू हो गया था। हालांकि संविधान ने इस प्रावधान को अस्थाई प्रावधान घोषित किया हुआ है। इस प्रावधान के अनुसार भारतीय संविधान पूरी तरह से जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होता। इस प्रावधान ने जम्मू कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने की अनुमति दी। केन्द्रीय संसद द्वारा पारित केवल रक्षा, विदेश मामलों और संचार विभाग से सम्बन्धित कानून ही जम्मू कश्मीर पर लागू होते हैं। धारा-370 की समाप्ति या संशोधन केवल राज्य विधान सभा की सिफारिश पर ही हो सकता है।
कुछ वर्ष पूर्व से संविधान का अनुच्छेद-35ए भी चर्चा में आ गया है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस अनुच्छेद-35ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। यह प्रावधान संसद द्वारा पारित नहीं है, अपितु मई, 1954 में यह प्रावधान केवल राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा गया। इस प्रावधान के अनुसार जम्मू कश्मीर को अपने प्रान्त के स्थाई निवासियों को परिभाषित करने का अधिकार है। यह प्रावधान उन स्थाई निवासियों को रोजगार, उनकी भूमि के अधिग्रहण, राज्य में उनके निवास तथा छात्रवृत्तियों आदि के विशेष अधिकार देने की व्यवस्था उपलब्ध करवाता है। यदि सर्वोच्च न्यायालय इस प्रावधान को गुण-दोष के आधार पर असंवैधानिक ठहराता है तो समस्या का समाधान निकलना प्रारम्भ हो सकता है। इस प्रावधान के असंवैधानिक घोषित होने का अर्थ होगा कि जम्मू कश्मीर राज्य में स्थाई नागरिकता की अवधारणा समाप्त हो सकती है जिससे देश के अन्य नागरिक भी जम्मू कश्मीर में जाकर बसने, रोजगार करने तथा अन्य सभी अधिकारों के हकदार और यहाँ तक कि मतदाता भी बन सकते हैं। कश्मीरी मुसलमानों द्वारा आज जिस प्रकार वोटों की सांख्यिकी के बल पर पूरे राज्य पर हुकुमत की जा रही है, गैर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ने से यह सारी सांख्यिकी समाप्त हो सकती है और गैर मुस्लिम बहुमत वाली विधानसभा अनुच्छेद-370 समाप्त करने या संशोधित करने की सिफारिश कर सकती है। इस सिफारिश के बाद ही भारतीय संसद के दोनों सदन – लोकसभा तथा राज्यसभा ऐसे संशोधन को पूर्ण बहुमत से पारित कर सकते हैं।
इसके विपरीत यदि सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद-35ए को समाप्त करने का दायित्व राष्ट्रपति पर ही छोड़ देता है तो जिस प्रकार राष्ट्रपति आदेश के द्वारा इसे 1954 में जोड़ा गया था उसी प्रकार राष्ट्रपति के द्वारा इसे समाप्त भी किया जा सकता है। इस प्रकार यह निश्चित दिखाई दे रहा है कि अनुच्छेद-370 को हटाने के लिए पहला कदम अनुच्छेद-35ए को हटाना ही होगा। इस पहले कदम में कठिनाई बेशक अधिक नहीं है परन्तु राजनीतिक इच्छाशक्ति की नितान्त आवश्यकता है।
मूलतः जम्मू कश्मीर विधानसभा की कुल 111 सीटें हैं जिनमें से 24 सीटें उस भाग के लिए थीं जिस पर 1947 में पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया था। इसलिए वर्तमान जम्मू कश्मीर विधानसभा की 87 सीटों के लिए चुनाव करवाया जाता है। इसमें से 46 सीटें कश्मीर घाटी में हैं और 37 सीटें जम्मू से सम्बन्धित हैं, शेष 4 सीटें लद्दाख क्षेत्र की हैं। कश्मीर घाटी की सीटों और जम्मू घाटी सीटों में मतदाता संख्या के हिसाब से भी काफी असंतुलन है। यदि प्रशासनिक न्याय के सिद्धान्तों के आधार पर सीटों के निर्धारण का एक समान मापदण्ड निर्धारित किया जाये तो कश्मीर घाटी की सीटों की संख्या कम हो सकती है और जम्मू विभाग की सीटों की संख्या बढ़ सकती है। दूसरी तरफ कश्मीरी पण्डितों के पलायन को सुरक्षित तरीके से वापिस लौटाया जाये तो उससे भी कश्मीर घाटी की वोट सांख्यिकी संतुलित हो सकती है। देश के अन्य नागरिकों को यदि जम्मू कश्मीर में बसने और मतदाता बनने की छूट दे दी जाये तो अनुच्छेद-370 के अस्तित्व पर पूर्ण संवैधानिक तरीके से प्रकार किया जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद जिस प्रकार कश्मीर घाटी उग्रवाद के अंगारों में झुलसती रही है, उसका समाधान भी इन प्रयासों से सरलता पूर्वक निकाला जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद-35ए पर सुनवाई के बाद कुछ भी निर्णय दे, परन्तु जम्मू कश्मीर में शांति स्थापित करने के लिए केन्द्र सरकार के पास राष्ट्रपति आदेश के रूप में पर्याप्त अधिकार उपलब्ध हैं। यदि केन्द्र सरकार राष्ट्रपति आदेश के द्वारा ऐसा कोई कदम उठाती है तो यह जम्मू काश्मीर में राजनीतिक सर्जिकल स्ट्राइक की तरह सिद्ध होगा। एक बार अनुच्छेद-35ए हटने के बाद जम्मू कश्मीर में शेष भारत के लोगों को रहने, बसने और मतदाता बनने का अधिकार प्राप्त होगा। जम्मू कश्मीर विधानसभा के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन का मार्ग प्रशस्त होगा तभी अनुच्छेद-370 को समाप्त करने की दिशा में सोचना सम्भव हो सकेगा।