संपादकीय

पर्यावरण संरक्षण में अनूठी देन-बीज बम आंदोलन !

-सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार

भारत में जून और जुलाई बारिश के महीने होते हैं और बारिश के सीजन में पेड़-पौधों तथा विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के पनपने की संभावनाएं भी बढ़ जाती है और शायद यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है और देश के विभिन्न स्थानों पर जून और जुलाई के महीनों में वृक्षारोपण अभियान, कार्यक्रमों को अंजाम दिया जाता है, क्यों कि बारिश के सीजन में लगे पेड़-पौधों को प्राकृतिक रूप से पनपने का अवसर मिल जाता है। पर्यावरण की दृष्टि से जून और जुलाई बहुत ही अच्छे महीने माने जाते हैं। आज के समय में पर्यावरण की रक्षा के संदर्भ में अनेकानेक अभियान चलायें जाते हैं, हजारों लाखों पेड़ पौधे भी लगाये जाते हैं लेकिन ज्यादातर पेड़ पौधे पानी के अभाव, सार-संभाल के चलते मर जाते हैं। लेकिन प्रकृति ने मानव को पेड़ पौधों की रक्षा के लिए जून और जुलाई के महीने दिए हैं,जब देश में लगभग लगभग हरेक स्थान पर बारिश होती है। इसलिए इन महीनों में वृक्षारोपण अभियान चलाकर हम पर्यावरण की रक्षा विशेष रूप से कर सकते हैं। हमें यह चाहिए कि हम इन दो महीनों में विशेष रूप से वृक्षारोपण करें, प्रकृति का संरक्षण करें। पेड़ पौधों को हम अक्सर रोपित तो कर देते हैं लेकिन कुछ समय के अंतराल के बाद हम उनमें खाद पानी देना,उनकी सार-संभाल करना अक्सर भूल जाते हैं। पेड़ पौधों को छोटे बच्चे की तरह पालना पड़ता है,तभी वे आगे जाकर बड़े पेड़ का रूप धारण करते हैं। बारिश के सीजन में आजकल बीज बम अभियान एक अनोखा अभियान है। देश के पहाड़ी क्षेत्रों में बीज बम अभियान अक्सर चलाया जाता है जो पर्यावरण संरक्षण के संदर्भ में एक अनूठा प्रयोग भी कहा जा सकता है। पिछले वर्ष पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में वहां के मुख्यमंत्री द्वारा बीज बम सप्ताह चलाया गया। जानकारी देना चाहूंगा कि अभियान के नाम में बम शब्द होने से यह किसी युद्ध या सेना से जुड़ा अभियान नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण के संरक्षण के लिए वर्ष 2017 में शुरू हुआ एक ऐसा अनूठा अभियान है, जो कि प्रदेश में बढ़ते वन्य जीव और मानव संघर्ष को समाप्त करने के लिए शुरू किया गया अभियान है। जानकारी देना चाहूंगा कि
बीज बम का अभियान द्वारिका सेमवाल ने वर्ष 2017 में शुरू किया था। उत्तरकाशी के द्वारिका सेमवाल बीज बम अभियान में पिछले कुछ वर्षों से जुटे हुए हैं। वास्तव में यह पारिस्थितकी तंत्र की पुनर्बहाली और मानव वन्यजीव संघर्ष से कम करने के लिए शुरू किया गया अभियान है। यहां यह भी बताता चलूं कि जापान और मिस्र जैसे देशों में यह ‘तकनीकी सीड बाल’ के नाम से सदियों पहले से परंपरागत रूप से चलती आ रही है। बीज बम अभियान से वन्य जीवों को जंगलों में ही भोजन उपलब्ध हो सकता है, क्यों कि मानवीय दखल से जंगली जानवरों के समक्ष भोजन की समस्या भी कहीं न कहीं पैदा हुई ही है। अब हमें यहां यह जानने की जरूरत है कि आखिर बीज बम अभियान है क्या ? तो जानकारी देना चाहूंगा कि हम जो भी फल, सब्जी आदि खाते हैं उनके बीज हमें सुरक्षित रखने चाहिए और जैसे ही बरसात का सीजन आए तो मिटटी, गोबर व पानी को मिला कर हम बीज बम बना सकते हैं। सात आठ दिन सुखाने के बाद हम उन्हें कहीं भी जंगल या बंजर भूमि में डाल सकते हैं ,इससे जंगली जानवरों को भोजन मिल सकता है। जंगल में कहीं भी अनुकूल स्थान पर इन बीज बमों को छोड़ने से पेड़ पौधे उगते हैं, और वनों में बढ़ोतरी होती है। वास्तव में सच तो यह है कि
बीज बम के जरिए हम वहां वनस्पतियों को उन स्थानों पर भी उगा सकते हैं जहां कोई मानव नहीं जा सकता है अथवा मानव की जहां पहुंच संभव नहीं होती। यह खेल-खेल में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अनूठी पहल कहीं जा सकती है। बीज बम अभियान की खासियत यह है कि इसमें खर्चा भी बहुत कम है और इसमें बच्चे भी विशेष रुचि दिखा सकते हैं। एक प्रकार से देखा जाए तो यह एक वैज्ञानिक अभियान है। कितनी अच्छी बात है कि मिट्टी व गोबर की गेंद में विभिन्न प्रजातियों के बीजों को रखकर वनों तथा भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में आसानी से पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। हम यह बात कह सकते हैं कि बीज बम अभियान का वास्तविक मकसद जंगलों में पैदा होने वाली विभिन्न सब्जियों, फलों को प्रकृति के सानिध्य में उगाया जाए और इससे जंगली जानवरों को जंगलों में ही भोजन मिल सके। इसका सबसे बड़ा फायदा यह भी है कि जब जंगली जानवरों को जंगल में ही पर्याप्त भोजन मिलने लगेगा तो वे मानव बस्तियों की ओर कूच नहीं करेंगे। यह वास्तव में बहुत ही काबिलेतारिफ है कि हिमालय पर्यापरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान (जाड़ी) की ओर से शुरू किए गए अभियान को अब उत्तराखंड सरकार ने गंभीरता से लिया है। प्रदेश सरकार ने पिछले वर्ष इस ‘बीज बम’ अभियान को साप्ताहिक तौर पर मनाने के लिए सभी जिलों को निर्देश दिए। वास्तव में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह अनूठा प्रयास सीमांत क्षेत्र उत्तरकाशी से शुरू होकर अब धीरे धीरे एक वृहद रूप लेता नजर आ रहा है। यहां तक कि सरकार की और से प्रदेश की रजत जयंती पर इस अभियान को वृहद स्तर पर मनाने की घोषणा की गई। वास्तव में आज आबादी बढ़ रही है और आबादी बढ़ने के साथ ही मानव गतिविधियों के कारण कंक्रीट के जंगलों में भी अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। आबादी बढ़ने के कारण वन क्षेत्र में कमी आई है। वनों में आज आदमी जगह बनाता चला जा रहा है और इससे जंगली जानवरों,पशु पक्षियों के समक्ष रहवास का खतरा भी पैदा हुआ है। सच तो यह है कि बढ़ती आबादी के साथ पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों तक वन क्षेत्र में कमी होने के कारण वन्य जीव और मानव का संघर्ष जन्म लेने लगा है। यहां उल्लेखनीय है कि उत्तरकाशी जनपद के थांडी-कमद से वर्ष 2017 में बीज बम अभियान सप्ताह का शुभारंभ किया गया, जिसमें विभिन्न सामाजिक संगठन से जुड़े लोगों को जोड़ा गया। आज विभिन्न सामाजिक संस्थाएं, स्कूल कालेजों के छात्र छात्राएं, एनजीओ समेत हजारों लाखों लोग बीज बम अभियान से जुड़े हैं और वर्तमान में भी इस अभियान से लोगों का जुड़ना निरंतर जारी है। आज उत्तराखंड की विभिन्न ग्राम पंचायतों में यह अभियान चलाया जाता है और इससे पर्यावरण संरक्षण को तो बल मिला ही है, और मानव बस्तियों में जंगली जानवरों का उत्पात भी कम देखने को मिला है। दूसरे शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि इससे लोगों को जंगली जानवरों के उत्पात से काफी राहत मिली है। आज बीज बम अभियान को न केवल उत्तराखंड राज्य में बल्कि देश के अनेक राज्यों में लगातार प्रशंसा मिल रही है और बीज बम अभियान अपनी उपयोगिता को लगातार सिद्ध कर रहा है। अंत में यही कहूंगा कि दुनिया को पर्यावरण संरक्षण के लिए चिपको आंदोलन और मैती आंदोलन जैसे विचार और सफल प्रयोग देने वाले उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण के साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष कम करने के लिए बीज बम आंदोलन आज लगातार संपूर्ण देश में ज़ोर पकड़ रहा है।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

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