संपादकीय

कोरोना पर पूर्णविराम कब और कैसे लगेेगा?

-विमल वधावन योगाचार्य
एडवोकेट (सुप्रीम कोर्ट)

कोरोना महामारी ने विश्व के लगभग सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया है। कोरोना का उत्पत्ति स्थान चीन है, इसलिए कुछ लोग इसे चीनी वायरस भी कहते हैं। अभी तक विश्व के वैज्ञानिकों में यह स्पष्ट धारणा नहीं बन पाई है कि कोरोना वास्तव में जैविक हथियार है या नहीं, परन्तु चीन हमेशा संदेह के कटघरे में खड़ा ही रहेगा। चीनियों ने चमगादड़ खाना वर्ष 2019 के अन्त में ही शुरू नहीं किया। वे सदियों से चमगादड़ से भी अधिक जहरीले जीव-जन्तु खाते रहे हैं, इसलिए कोरोना वायरस का चमगादड़ से पैदा होना समझ से परे है। सन्देह तो सही जाता है कि कोरोना नाम का कुछ जैविक पदार्थ तैयार किया जा रहा था जो बेशक गलती से प्रयोगशाला से बाहर फैल गया। चीन का कुछ न कुछ छिपा एजेण्डा अवश्य ही होगा इसीलिए जब तक उनके एक बड़े शहर में बड़ी महामारी की तरह यह वायरस फैल नहीं गया और जब तक उस शहर से यह वायरस चीन के मित्र देश इटली तथा उसके बाद अन्य पश्चिमी देशों में नहीं पहुँच गया तब तक चीन ने इसकी सूचना विश्व स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से या सीधे विश्व को बिलकुल नहीं दी। चीन से उत्पन्न इस महामारी के पीछे राजनीतिक षड्यन्त्र तो स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। चीन और अमेरिका के टकराव को भी किसी परिचय की आवश्यकता नहीं। इटली चीन का एक सहयोगी मित्र है। इटली ने चीन को ‘अन्तर्राष्ट्रीय वन रोड, वन बेल्ट’ के लिए भी खुला समर्थन दिया है। पश्चिमी देशों ने इटली को कोरोना वायरस के विरुद्ध लड़ने में सहयोग देने से भी इन्कार कर दिया। इन परिस्थितियों में चीन और इटली की मित्रता और घनिष्ट होने का मार्ग प्रशस्त हो गया। चीन ने इटली को महामारी से लड़ने के लिए कई प्रकार की सहायता उपलब्ध करानी शुरू कर दी। जब यह वायरस प्रारम्भिक दौर में 73 देशों तक फैल चुका था उस वक्त उपलब्ध एक जानकारी के अनुसार चीन से यह वायरस 27 देशों में पहुँचा था जबकि शेष 46 देशों में यह वायरस इटली से पहुँचा था। इस प्रकार राजनीतिक गुटबन्दी भी कोरोना वायरस के साथ-साथ मजबूत होती जा रही है। जिस प्रकार साम्प्रदायिक दंगों में स्थानीय स्तर पर सैकड़ों लोगों को मरवाने के षड्यन्त्र सफल होते देखे गये हैं उसी प्रकार इस बार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति लाखों आदमियों को मरवाती हुई दिखाई दे रही है।
कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए तत्काल प्रश्न यह उठ रहा है कि इस पर पूर्णविराम कब और कैसे लगेेगा? जिस प्रकार कोरोना की उत्पत्ति का कारण अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति है उसी प्रकार इसके प्रचार का कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार है। कोरोना का प्रसार तब तक चलेगा जब तक इसकी एक वैक्सीन बनकर बाजार में नहीं आती।इस वैक्सीन को बनाने में भी अमेरिका और चीन दोनों युद्ध स्तर पर लगे हुए हैं। दोनों को सारा विश्व एक बाजार की तरह दिखाई दे रहा है। इस महामारी के कारण बढ़ते हुए डर को वैक्सीन आने से पहले केवल मात्र एक विज्ञापन समझा जा रहा है। लगभग 8 बिलियन वैश्विक आबादी इस वैक्सीन का प्रयोग करने के लिए बिना विज्ञापन के ग्राहक बनकर खड़ी हो जायेगी। किसी व्यापार के लिए इससे अधिक सस्ता विज्ञापन कहाँ मिल सकता था। इस व्यापार के सबसे बड़े सौदागर होंगे – अमेरिका और चीन। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार साम्प्रदायिक शक्तियों की तरह साधारण जनता के जीवन से खेल रहे है।

  • कोरोना बचाव के दो मार्ग – पूरब या पश्चिम

कोरोना महामारी से सभी देश लड़ते हुए नजर आ रहे हैं। इस लड़ाई में एक मार्ग भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सबसे पहले चुना जब उन्होंने सारे देश में सम्पूर्ण लाॅकडाउन की घोषणा करते हुए कहा कि एक-एक देशवासी को बचाना उनकी प्राथमिकता है। वे इस तथ्य से अनजान नहीं थे कि सम्पूर्ण लाॅकडाउन के चलते देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था घुटनों के बल गिरी रहेगी। व्यापार, फैक्ट्रियाँ, सरकारी तन्त्र पूरी तरह से ठप्प हो चुक हैं। जिस प्रकार भारत के आम नागरिक को प्रतिदिन आय से वंचित होना पड़ा उसी प्रकार सरकार की आय भी ठप्प है। इसके बावजूद सरकार ने अपनी बचत के खजाने गरीब नागरिकों के कल्याण के लिए पूरी तरह से खोल दिये है। सरकार ने ही क्या भारत के धन-सम्पन्न नागरिकों ने भी हजारों, लाखों से लेकर करोड़ों रुपये तक दान देने प्रारम्भ कर दिये। जगह-जगह निःशुल्क भोजन वितरित करने के कार्य दिखाई दे रहे हैं। भारत का यह दृश्य पूर्वी सभ्यता का दर्शन करवाता है जिसमें अर्थव्यवस्था से अधिक महत्त्वपूर्ण है मानवतावाद। इस सभ्यता में घर के अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति के रोग पर भी खुलकर पैसा बहाया जाता है ताकि वह कुछ और दिन जी कर बच्चों को आशीर्वाद देता रहे। हमारी सभ्यता में यह माना जाता है कि बड़े-बुजुर्ग कुछ काम न करें तो भी उनकी उपस्थिति और उनका आशीर्वाद ही परिवार की सुख-शांति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। प्रधानमंत्री श्री मोदी जब भी राष्ट्र को सम्बोधित करते हैं, उनके चेहरे पर कोरोना महामारी का दर्द ऐसे झलकता है जैसे वे स्वयं व्यक्तिगत रूप से रोगग्रस्त हैं। वे हाथ जोड़कर भारत की जनता से ऐसे निवेदन करते हैं जैसे किसी परिवार का सपूत अपने रोगी परिजन की रक्षा की भीख माँग रहा है। यह सब कुछ स्वाभाविक रूप से भारत की मानवतावादी, धार्मिक और आध्यात्मिक संस्कृति का चित्रण है जिसे पूर्वी सभ्यता कहा जाता है जहाँ मानव को अर्थव्यवस्था से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
पश्चिमी देश भी कोरोना वायरस के विरुद्ध पूरी तरह से संघर्षरत हैं, परन्तु वे अपने मानवों को बचाने के लिए लम्बा आर्थिक नुकसान सहन करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसलिए बहुत से देशों में सम्पूर्ण लाॅकडाउन लागू नहीं किया गया। उनका मानना है कि किसी देश की करोड़ों की आबादी में यदि कुछ लाख व्यक्ति मर भी जायें तो शायद इतना नुकसान नहीं होगा, परन्तु एक बार यदि देश की अर्थव्यवस्था ठप्प हो गई तो उसे उठाना कठिन हो सकता है। यह पश्चिमी सभ्यता है जहाँ मानव को नहीं अर्थव्यवस्था को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

  • प्राकृतिक उपचार

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और व्यापार की देन के रूप में कोरोना बेशक एक विश्व स्तरीय महामारी है और आधुनिक युग की एक सच्चाई है। यह सच्चाई बेशक उन राक्षसों की तरह भयानक क्यों न हो जो प्राचीनकाल में ऋषियों-मुनियों की तपस्या और यज्ञों में विघ्न डाला करते थे। परन्तु यह भी सत्य है कि जिस प्रकार उन राक्षसी वृत्तियों का अन्त राम और कृष्ण जैसी सात्विक वृत्तियों ने कर दिखाया था उसी प्रकार इस कोरोना रूपी राक्षस का अन्त करने के लिए भी हमारी पूर्वी सभ्यता अर्थात् भारत की प्राकृतिक जीवनशैली सक्षम है। भारतीय सरकारें मास्क का प्रयोग करनें, थोड़े-थोड़े समय बाद हाथ धोने, घर से बाहर निकलने के बाद लोगों के साथ दूरी से बात करने आदि विचार तो खूब प्रचारित कर रही हैं। परन्तु मेरा निश्चित विचार है कि कोरोना वायरस यदि हमारे शरीर में प्रवेश कर भी जाये तो भी डरने की आवश्यकता नहीं है। सरकारी सुझावों का पालन तो अत्यन्त आवश्यक है जिससे हमारे शरीर मेें प्रविष्ट कोरोना दूसरों के शरीर में प्रवेश न करे। अपने शरीर में प्रविष्ट कोरोना को निष्प्रभावी करने के लिए दिन में एक या दो बार एक-एक कप पूर्ण गरम पानी पीना चाहिए। कोरोना वायरस लगभग 3 से 4 दिन गले के क्षेत्र में रहता है। गरम पानी के प्रभाव से यह वायरस तुरन्त शरीर से निकल सकता है। खांसी, गले में खराश और बुखार आदि या सांस लेने में तकलीफ इस वायरस के प्रभाव की पहचान है। ऐसी परिस्थिति में तीन दिन पके भोजन का त्याग कर प्रथम दो दिन 5 से 7 गिलास मौसमी का जूस तथा 5 से 7 गिलास ताजा नारियल पानी का सेवन और तीसरे दिन इस तरल की मात्रा आधी कर दें अर्थात् 3 गिलास मौसमी जूस और 3 गिलास नारियल पानी के साथ खीरा, टमाटर, मूली, गाजर, शिमला मिर्च, प्याज जैसे सलाद का सेवन करें। तीन दिन में कोरोना के प्रभाव को समाप्त किया जा सकता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि भारतवासियों के सहयोग और समर्थन से हमारी सरकारें कोरोना के विरुद्ध संघर्ष में यह सिद्ध कर दिखायेंगी कि हमने भारत में मानवता को बचाने का काम किया है। अर्थव्यवस्था का नुकसान तो हमारे शूरवीर भारतीय अपने आप पूरा कर ही लेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *