संपादकीय

इतने दबाव में क्यों है राजस्थान में भाजपा

-रमेश सर्राफ धमोरा
सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार (झुंझुनू, राजस्थान)

राजस्थान विधानसभा के चुनाव का परिणाम घोषित हुए दस दिन होने वाले हैं। उसके उपरांत भी अभी तक ना तो विधायक दल की बैठक बुलाई गई है ना ही नेता का नाम ही सामने आया है। जबकि 115 सीटें जीतकर भाजपा ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर लिया है। राजनीतिक हल्का में चर्चा है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा मुख्यमंत्री बनने के लिए की जा रही लाबिंग के चलते विधायक दल का नया नेता चुनने की प्रक्रिया ठंडी पड़ी हुई है। वसुंधरा राजे दिल्ली जाकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर राजस्थान की राजनीति पर लंबी चर्चा कर चुकी है।
पिछले दिनों जयपुर में घटे एक घटनाक्रम ने भाजपा के बड़े नेताओं को चौंका दिया है। बारां जिले में किशनगंज से नवनिर्वाचित भाजपा विधायक ललित मीणा के पिता हेमराज मीणा जो स्वयं पूर्व विधायक हैं। उन्होंने जयपुर में मीडिया को बताया कि उनके बेटे विधायक ललित मीणा सहित बारां, झालावाड़ जिलों के पांच विधायकों को जयपुर में सीकर रोड स्थित होटल आपनो राजस्थान में जबरन रखा गया है और उन्हें घर नहीं आने दिया जा रहा है। हेमराज मीणा ने भाजपा कार्यालय के सामने मीडिया को बताया कि जब मैं अपने विधायक बेटे ललित मीणा को लेने होटल गया तो वहां पर विधायक कंवरलाल मीणा ने जोर जबरदस्ती करते हुए कहा कि झालावाड़ के सांसद दुष्यंत सिंह के कहने पर ही हम उन्हें जाने देंगे। उसके बाद होटल आपनो राजस्थान में हेमराज मीणा ने पुलिस बुलाकर बखेड़ा खड़ा किया तब जाकर वह अपने पुत्र ललित मीणा को साथ लेकर आ सके।
होटल में विधायकों को रखने की बात हेमराज मीणा ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, संगठन महासचिव चन्द्रशेखर, पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह को भी बताई। हालांकि विधायक कंवरलाल मीणा ने पूर्व विधायक हेमराज मीणा के आरोपी को झूठा बताते हुए कहा कि हम सब अपनी मर्जी से वहां रुके थे। हमें किसी ने जबरन नहीं ठहराया था। जब कुछ अनजान लोग आकर ललित मीणा को ले जाने लगे तो हमने उन्हें नहीं ले जाने दिया और जब हेमराज जी मीणा अपने पुत्र विधायक ललित मीणा को लेने आए तो उनके साथ भेज दिया था। जयपुर में हुई इस घटना से भाजपा आलाकमान के कान खड़े हो गए और उन्हें एहसास हो गया कि प्रदेश में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। अंदर खान कोई नया खेल करने के प्रयास में लगा हुआ है।
वसुंधरा राजे के दिल्ली से जयपुर लौटने के बाद करीब एक दर्जन विधायक उनसे मिलने पहुंचे। जिसे वसुंधरा गुट द्वारा अपने शक्ति प्रदर्शन के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। वसुंधरा गुट के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल का कहना है कि किसी अनुभवी नेता को ही मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए जो राजस्थान को अच्छे से संभाल सके। राजस्थान में भाजपा के पास वसुंधरा राजे से अधिक लोकप्रिय कोई चेहरा नहीं है।
वहीं राजनीतिक हलकों से निकालकर जो बातें आ रही है उससे लगता है कि भाजपा आलाकमान किसी भी स्थिति में वसुंधरा राजे को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के मूड में नहीं है। वसुंधरा राजे के लिए सबसे नकारात्मक बात उनका दो बार मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों ही बार पार्टी का चुनाव हार जाना रही है। 2003 में वसुंधरा राजे 120 सीटों के बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनी थी। मगर 2008 में पार्टी की सीट घटकर 78 रह गई थी। इसी तरह 2013 में वसुंधरा राजे 163 सीटों के बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनी थी। मगर 2018 में भाजपा की सीट घटकर 73 ही रह गई थी।
पार्टी नेताओं का मानना है कि चुनाव के समय वसुंधरा राजे कांग्रेस सरकार की एंटी इनकमबेसी के बल पर सरकार बना लेती है। मगर खुद के मुख्यमंत्री रहते भी उनकी सरकार के प्रति आमजन में भारी नाराजगी व्याप्त हो जाती है और उन्हें सत्ता से हटाना पड़ता है। इस बार पार्टी आलाकमान चाहता है कि ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जाए जो पांच साल बाद फिर से सरकारी रिपीट कर सके। मगर वसुंधरा राजे अपनी जिद पर अड़ी हुई है कि वह स्वयं के अलावा अन्य किसी को मुख्यमंत्री पद पर बैठने नहीं देना चाहती है।
हालांकि वसुंधरा राजे के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह पर पार्टी विधायकों के बाड़ाबंदी के आरोप लगने के बाद वसुंधरा राजे बैक फुट पर आ गई है। उन्होंने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्ड, गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की तो उनके साथ उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह भी थें। चर्चा है कि उन्होंने दुष्यंत सिंह के बाड़ेबंदी के आरोपों पर भी सफाई दी है। इधर भाजपा से विधायक बने चारों सांसदों डॉक्टर किरोडी लाल मीणा, दीया कुमारी, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ व बाबा बालकनाथ ने लोकसभा व राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया है।
राजस्थान में भाजपा की सरकार गठन में अबकी बार जितना समय लग रहा है उतना पहले कभी नहीं लगा। इसलिए लोगों के मन में संशय पैदा हो रहा है। हालांकि पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राज्यसभा सांसद व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावडे को राजस्थान के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। जो राजस्थान के विधायकों से मिलकर रायशुमारी कर विधायक दल की बैठक बुलाएंगे।
राजनाथ सिंह का राजस्थान में पर्यवेक्षक बनकर आना अपने आप में बहुत कुछ कहता है। राजनाथ सिंह भाजपा में सबसे हैवीवेट नेता माने जाते हैं। उनकी छवि ट्रबल शूटर की रही है। पार्टी के दो बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके राजनाथ सिंह हर तरह की स्थिति को संभालने में सक्षम है। इसीलिए उनको राजस्थान का पर्यवेक्षक बनाकर भेजना पड़ा है। वैसे भी राजनाथ सिंह राजस्थान विधानसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी, अमित शाह के बाद सबसे अधिक रैलियों को संबोधित करने वाले नेता थे। उनकी प्रदेश के सभी नेताओं से व्यक्तिगत संपर्क है।
वसुंधरा राजे ने भी राजनाथ सिंह के साथ लंबे समय तक काम किया है। इसलिए राजनाथ सिंह के पर्यवेक्षक बनने के बाद यह अनुमान लगाए जा रहे हैं कि उनको वसुंधरा राजे को अच्छे से हैंडल करना आता है। जिसे पार्टी ने मुख्यमंत्री बनना तय किया है वही भाजपा के नवनिर्वाचित विधायक दल का नेता चुना जाएगा। हो सकता है आने वाले समय में वसुंधरा राजे को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाए। फिलहाल तो वह पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनी हुई है। ऐसे में देखना होगा कि सरकार के गठन से पहले ही भाजपा में जो गुटबाजी पनपी है। उसे पार्टी मिटा पाती है या नहीं इसका पता तो आने वाले समय में ही चल पाएगा।

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