शिक्षा

प्रसन्नता और सफलता

-ए.के. मिश्रा (सक्सेस गुरु)
निदेशक, चाणक्य आईएएस एकेडमी, दिल्ली
प्रसन्नता जीवन में भले ही धूप-छांव की तरह आती-जाती है मगर इसकी बातें, इसकी चर्चा सर्वत्र व्याप्त है। आजकल सभी प्रसंन्नता बांटने का दावा करते हैं- सुबह टीवी चलाइये तो प्रवचनों का जोर दिखता है। बॉलीवुड की फिल्में, दवाइयां, फास्ट फूड और विलासिता की वस्तुएं बेचने वाले भी आपको प्रसन्न बनाने का दावा करते हैं।
मगर सच्चाई यह है कि प्रसन्नता की तलाश को अनावश्यक रूप से एक बड़ी बात बना दिया गया है और विडंबनापूर्ण बात यह है कि यही ‘तलाश’ हमें प्रसन्नता से दूर भी ले जाती है। प्रसन्नता के बारे में सबके अपने-अपने विचार हैं, मगर यह वास्तव में एक चिकने, तैलीय व झागदार साबुन की तरह आसानी से फिसल जाने वाली चीज है। आज की युवा पीढ़ी और विशेषकर छात्र-छात्राएं, जिनकी चर्चा मैं करता हूं, अपने कैरियर व महत्तवाकांक्षाओं की प्राप्ति के प्रयास में अक्सर बेचैन और तनावग्रस्त हो जाते हैं। हालांकि यह बात सभी स्वीकार करेंगे कि एक प्रसन्न व हल्का मन बड़ी बाधा को भी पार करने की राह को आसान बना देता है। मगर हम प्रसन्नता की स्थिति को कैसे बनाये रखें?
आजकल कई मूर्धन्य मनोवैज्ञानिक प्रसन्नता के बारे में रहस्य पर से पर्दा उठाने में सफल हो रहे हैं और इसका वैज्ञानिक विवेचन भी कर रहे हैं। मार्टिन सैलिगमैन के नेतृत्व में पिछले तीन-चार वर्षों में एक अत्यंत प्रतिभाशाली मनोवैज्ञानिकों के दल ने सकारात्मक मनोविज्ञान, ‘पॉजीटिव साइकोलॉजी’ का प्रतिपादन किया है।
यह नया विचार मानवता की सकारात्मकता एवं शक्तियों पर ज्यादा जोर देता है, बजाय कि इसकी कमजोरियों व नकारात्मकता पर और यह लोगों को प्रसन्नता व संतोष की ऊंचाइयां चढ़ने के प्रयास के रास्तों को आसान बनाता है। दरअसल कभी-कभी हम जीवन के संघर्षों में इस प्रकार उलझे रहते हैं कि इसकी वास्तविकताओं से दूर चले जाते हैं और बिल्कुल नहीं समझ पाते कि प्रसन्नता के लिए हम क्या करें. प्रसन्नता महज आनुवंशिक, भाग्य से उपजी या मरीचिका ही नहीं है, अपितु इसे योजनाबद्ध व वैज्ञानिक रूप से भी बढ़ाया जा सकता है।
हाल ही में अखबारों में छपे एक बड़े सर्वेक्षण के बारे में आपने पढ़ा होगा, जिसके अनुसार भारतीय लोग प्रसन्नता के मामले में अनेक देशों से आगे हैं। अब वैज्ञानिक भी इसके कारगर तरीके जानते हैं। मजबूत पारिवारिक संबंध और मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ-साथ आस्था व आत्म-सम्मान के भाव सच्ची प्रसन्नता लाते हैं। साथ ही, आशावाद और जीवन के अर्थपूर्ण होने का एहसास भी अत्यंत सहायक होता है। यह सच है कि कुछ लोगों केे लिए प्रसन्नता एक सहज व आसान सी चीज होती है और कुछ के लिए नहीं। जुड़वां लोगों पर किये गये अनुसंधानों से पता चलता है कि प्रसन्नता का गुण कुछ हद तक अनुवांशिक कारणों से आता है। शर्मीलापन व आशावादी रवैये की तरह प्रसन्नता का स्वभाव भी हमारे व्यक्तित्व में मौलिक रूप से कम या अधिक होता है। मगर यह ध्यान देने योग्य बात है कि इन गुणों को व्यावहारिक व वैज्ञानिक तरीकों से बढ़ाया या परिमार्जित किया जा सकता हैै।
अपनी समझ का प्रयोग कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आप प्रसन्नता के किस पायदान पर हैं। इस पायदान पर ऊपर चढ़ने का मतलब है, अपने व्यक्तित्व के मूल स्वरूप में बदलाव लाना या मन में स्वतः उठने वाले विचारों के रूप में बदलाव लाना या अपने माहौल में बदलाव लाना या इन तीनों में एक साथ बदलाव लाना. मगर बाद की दो चीजों में बदलाव लाना ज्यादा आसान है। अगर आप प्रसन्नता को ऊंची पायदान पर ले जाना चाहते हैं, तो आपको हर दिन कुछ विशेष प्रयास करने होंगे।
हमारे मन की दशा काफी हद तक हमारे सोचने के ढंग पर निर्भर करती है। क्या आप जानते हैं कि मन में उठने वाली हर सोच आपके मस्तिष्क में विद्युत तरंगें छोड़ती है? आप चाहें तो महसूस भी कर सकते हैं कि नकारात्मक विचार किस प्रकार आपको प्रभावित करते हैं। उदाहरण के तौर पर जब आप अत्यधिक नाराज होते हैं तब आपकी मांसपेशियां भिंच जाती हैं, दिल तेजी से धड़कने लगता है, हाथों में पसीना आने लगता है और आपको चक्कर तक आ सकता है। ठीक इसी प्रकार महसूस करने का प्रयास करें :-
– सकारात्मक व यथार्थपूर्ण विचार आपके ऊपर कैसा प्रभाव डालते हैं,
– नकारात्मक विचारों को प्रदूषण (मन का) की तरह समझें,
– समझें कि जो विचार स्वतः उठते हैं, आवश्यक नहीं कि वे सत्य या यथार्थपूर्ण ही हों, तथा मन ही मन ऐसे विचारों की यथार्थता को परखें।
प्रसन्नता के भाव में वृद्धि के लिए यह भी आवश्यक है कि आप सही लक्ष्यों का चुनाव करें व उनको पाने का सतत् प्रयत्न करें. आप अपनी रुचि व जीवन मूल्यों के अनुरूप अपने लक्ष्य निर्धारित कर न केवल वांछित प्रसन्नता प्राप्त कर पायेंगे, बल्कि उसे कायम भी रख पायेंगे। ऐसे लक्ष्यों की श्रृंखला बनाने व पाने से सच्ची प्रसन्नता बढ़ेगी व कायम भी रहेगी। अगर इस प्रयास में कभी असफलता भी मिले, तब भी इस राह पर चलने का प्रयास करें।
मगर कभी ऐसा भी होता है कि हम न चाहते हुए भी ऐसे लक्ष्यों को चुन लेते हैं, जिनकी राह में हमें संतोष नहीं मिलता। वे लक्ष्य जो भय, दोष-भाव दबाव की वजह से अपनाये जाते हैं, सफलता मिलने पर भी हमें संतोष व प्रसन्नता नहीं देते। अतः लक्ष्य चुनते समय खुद से पूछें कि क्या यह मेरे लिए अनुकूल व रोचक है? अगर ऐसा नहीं भी है, तो क्या कम से कम इसके महत्त् में मेरा पूर्ण विश्वास है? रचनात्मक सोच और पॉजीटिव विजुअलाइजेशन तकनीक का प्रयोग कर न केवल इस लक्ष्य के प्रति अपने विचारों, अपितु संबंधित माहौल में काफी हद तक बदलाव ला सकते हैं। चतुराईपूर्वक विचारों व परिस्थिति का अध्ययन कर इन तरीकों का प्रयोग करें- इससे आप अपनी प्रसन्नता के भाव को न केवल बढ़ा पायेंगे, बल्कि स्थायी भी बना पायेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *