वर्ल्ड थियेटर डे के मौके पर कलाकारों ने थियेटर के व्यापक होते स्वरूप पर अपने विचार रखे
1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट (आईटीआई) ने वर्ल्डी थियेटर डे की शुरुआत की थी, जिसे हर साल 27 मार्च को मनाया जाता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब थियेटर के कलाकार और थियेटर ग्रुप के सभी सदस्य कला के सबसे पुराने स्वरूपों में से एक का उत्सव मनाने के लिये एकजुट होते हैं। सोनाली कुलकर्णी, मीता वशिष्ठ, जॉय सेनगुप्ता, विक्रम गोखले जैसे थियेटर की दुनिया के दिग्गज, जिन्होंने कई प्रसिद्ध नाटकों में काम किया है, ने थियेटर के सिनेमाई स्वरूप के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसे बड़े पैमाने पर दर्शकों के मनोरंजन के लिये बनाना चाहिये। आज के समय में नाटकों में सिनेमाई स्वरूप शामिल हो गया है, जिनकी शूटिंग खासतौर से कैमरे पर की जाती है और कंटेंट का प्रसार किये जाने वाले मंचों पर इसे प्रदर्शन योग्य बनाया जा रहा है।
1. ‘व्हाइट लिली’ और ‘नाइट राइडर’ नाटक की सोनाली कुलकर्णी
थियेटर हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है और यह हमारी जिम्मेदारी है कि आने वाली पीढ़ी को हम यह विरासत सौपें। आज की पीढ़ी जोकि बेचैन है, बेहतरीन सर्विस चाहती है, जो थियेटर में फंसना नहीं चाहती है, सामने की कतार में सीट नहीं मिलने पर वंचित महसूस करती है, उनके लिये नाटकों को टेलीविजन पर दिखाना हर किसी के लिये यह महसूस करने का अवसर है कि वे पहली कतार के बीच में बैठे हैं। मुझे लगता है कि जी थियेटर के साथ टाटा स्काई थियेटर काफी महत्वपूर्ण होने वाला है क्योंकि लाइव परफॉर्मेंस से ज्यादा, स्क्रीन परफॉर्मेंस ज्यादा देखी जायेगी।
‘अग्निपंख’ नाटक की मीता वशिष्ठ
लाइव थियेटर अपने दर्शकों को जो कुछ देता है सिनेमैटिक थियेटर उसको पूरी तरह से हटा नहीं सकेगा। हालांकि, जब युवाओं को थियेटर की अहमियत के बारे में जागरूक करने की बारी आती है तो उन्हें थियेटर की दुनिया के महारथियों की उम्दा परफॉर्मेंस से रूबरू कराया जाता है और उसके गौरव को उनके सामने जीवंत किया जाता है। थियेटर का सिनेमैटिक रूप आगे बढ़ने का तरीका है और टाटा स्काई पावर्ड बाय जी थियेटर ने उसे संभव कर दिखाया है। दर्शक, खासतौर से युवा तेजी से बदल रहे हैं, और वे हर चीज चलते हुए देखना चाहते हैं, जिसमें मनोरंजन भी शामिल है, तो फिर थियेटर को उनके मोबाइल एप्पह पर क्योंव ना दिखाया जाये? यह उन्हें थियेटर का अनुभव कराने का सबसे बेहतर तरीका है और इससे उन्हेंउ थियेटर जाकर लाइव परफॉर्मेंस देखने के लिये भी प्रेरित किया जा सकेगा।
‘मेरा कुछ सामान’ नाटक के जॉय सेनगुप्ता
थियेटर परफॉर्मिंग आर्ट का सबसे बेहतरीन उदाहरण है। परफॉर्मिंग आर्ट का लाइव अनुभव किया जाता है और किसी भी नियत जगह या समय पर इसे कई लोगों द्वारा अनुभव किया जाता है। लेकिन एक तरह की परफॉर्मेंस हर जगह नहीं पहुंचायी जा सकती है। सिनेमा की तुलना में जिसे कि कई सारे माध्यमों में, कई सारी जगहों पर एक ही समय में प्रसारित किया जा सकता है, थियेटर की यही बाधा है। टाटा स्काई और जी थियेटर की इस साझेदारी से समृद्ध कंटेंट के साथ उसके प्रसारण का मेल होगा, आप थियेटर के दायरे से बाहर आ सकते हैं और इससे यह होगा कि पूरी दुनिया में लोग अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग संस्कृति में इसे देख पायेंगे। टाटा स्काीई थियेटर और जी थियेटर, मनोरंजन, कंटेंट और जगहों की दूरियों को कम करने और थियेटर का जादू दिखाने के लिये एक साथ आये हैं।
’30 डेज ऑफ सितंबर’ नाटक की इरा दुबे
जी थियेटर के साथ टाटा स्काई कुछ बेहतरीन कर रहा है। इससे पहले भारत में कभी किसी ने ऐसा नहीं किया। मुझे लगता है कि थियेटर को टेलीविजन पर लाने से थियेटर पूरी दुनिया में पहुंचेगा। वे थियेटर का बहुत ही वास्तलविक अनुभव करा रहे हैं, जिन्हें सिनेमाई अंदाज में फिल्माया गया है और सिनेमाई रूप में बताया गया है, इसलिये मैं इसे अपने फोन, लैपटॉप या फिर टेलीविजन स्क्रीन पर देख सकती हूं।