हलचल

इतिहास के चलते-फिरते एनसाइक्लोपीडिया है फिरोज अहमद

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
हाड़ोती की शख्शियत फिरोज अहमद को हाड़ोती इतिहास का चलता फिरता एनसाइक्लोपीडिया कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हाड़ोती इतिहास की छोटी से छोटी जानकारी, घटना, प्रसंग की जानकारी जब भी किसी समाचार पत्र को या व्यक्ति को चाहिए होती है, फिरोज जी ही याद आते हैं जो फोन पर कर देते हैं समाधान।
हाड़ोती इतिहास को आपने बचपन से ही देखा – समझा। इनका जन्म 21 सितंबर 1949 को कोटा के एक ऐसे परिवार में हुआ जिसका संबंध रियासत से जुड़ा था। रियासती बातों को, राज परिवार को, रियासती संस्कृति और परम्पराओं की हर बात को बारीकी से बचपन से देखते रहे और इन सब की छवि उनके मन – मस्तिष्क पर स्थाई स्मृति के रूप में अंकित हो गई। कह सकते हैं कि इन्होंने इतिहास को देखा और समझा ही नहीं वरन जिया भी है।
ऐतिहासिक परम्पराओं के साक्षी फिरोज की इतिहास में रुचि हो गई और उन्होंने इतिहास विषय से ही स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। आजीविका के लिए नगर निगम में नौकरी कर ली परंतु इतिहास से नाता जोड़े रखा। देखी – समझी इतिहास की बातों से आमजन को अवगत कराने के लिए विगत 44 वर्षो से आदिनांक निरंतर लिखते आ रहे हैं। हाड़ोती के इतिहास,कला, संस्कृति पर जैसे – जैसे लेख लिखते रहे और प्रकाशित होते रहे इनका इतिहासविद का रूप सामने आने लगा।
आपने हाड़ोती के इतिहास, स्थापत्य कला, चित्रकला, संगीत कला, मनोरंजन, हस्तशिल्प, राजा – महाराजाओं का परिचय, राजसी परंपराएं, शासकों की रुचि – अभिरुचियां, विभिन्न महत्व पूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े प्रसंगों, राजसी प्रशासनिक व्यवस्था एवम हाड़ोती के स्मारकों आदि पर अब तक करीब 150 से अधिक लेख लिखे, जिनका देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशन हो चुका है।
इन्होंने अपने लिखे लेखों में से कोटा इतिहास से संबंधित 41, बूंदी से संबंधित 8, झालावाड़ से संबंधित 8 और बारां से संबंधित 3 कुल 60 प्रमुख आलेखों को संकलित कर हाल ही में ” हाड़ोती इतिहास :लेखमाला” नामक 331 पृष्ठों के एक ग्रंथ का प्रकाशन भी निजी रूप से इतिहास एवं कला परिषद के माध्यम से किया है।
जब भी कोटा में हेरिटेज वॉक का आयोजन होता है स्मारकों के साथ उनके इतिहास की जानकारी देने के लिए प्रमुख नाम फिरोज अहमद होता है। ये कई बार विभिन्न समूहों में अंचल के इतिहास और संस्कृति के संवाहक बने हैं। आपने इंटेक द्वारा कोटा एवम बूंदी में आयोजित 4 हस्तकला एवं शिल्प प्रदर्शनियों में सफ़ल निर्देशन भी किया है। कोटा में तीनों प्रदर्शनियों के समापन पर पूर्व महाराव बृजराज सिंह जी द्वारा प्रत्येक कलाकार के साथ फिरोज जी को भी शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
इतिहास से जितना प्रेम है उतना ही साहित्यिक विधा से भी है। इतिहास और साहित्य का अनूठा संगम आपके व्यक्तिव की पहचान है। आप हिंदी एवं उर्दू भाषाओं में शेर,गजल और मुक्त कविताएं आदि विधाओं के लिए साहित्यिक जगत में भी अपनी खास पहचान बनाते हैं। आपने कई बार स्थानीय कवि और शायरों के साथ काव्य पाठ भी किया हैं। ऐतिहासिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए आपने 1982 में इतिहास एवं कला परिषद की स्थापना की। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती शमा भी एक अच्छी साहित्यकारा हैं जो गजल लिखने और गाने में सिद्धहस्त हैं। पति -पत्नी का साहित्यिक दृष्टि से मणि कांचन योग बना है।
राजस्थान पत्रिका के स्थानीय कोटा 24 चैनल पर 2009 – 10 में आपके 28 एपिसोड ” कोटा की ऐतिहासिक विरासत” धारावाहिक के रूप में प्रसारित किए गए। आपकी ऐतिहासिक वार्ताओं का आकाशवाणी केंद्र कोटा और जयपुर से कई बार प्रसारण भी किया गया है।
आपको 2018 में हाड़ोती उत्सव समिति द्वारा इतिहासकार के रूप में विख्यात इतिहासकार के नाम पर ” डॉ.मथुरा लाल शर्मा स्मृति पुरस्कार ” से सम्मानित किया गया।
इसी प्रकार आपको इतिहास , साहित्य और पर्यटन की विविध उपलब्धियों के लिए एक दर्जन से अधिक बार विभिन्न विभागों एवम संस्थाओं द्वारा स्मृति चिन्ह एवम प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया है।
आपने जंक्शन स्थित निगम की सुभाष पुस्तकालय में स्थापित निगम के पर्यटन पूछताछ केंद्र पर 14 वर्षों तक सफल सेवाएं प्रदान की। पारिवारिक कारणों से जून 2006 में पर्यटन प्रभारी के पद से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति लेली। इन दिनों स्वास्थ्य ठीक नहीं रहने पर भी लेखन और साहित्य साधना में लगे हैं।

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