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ए रामचंद्रन की नवीनतम कलाकृति में नाट्यशास्त्र की नायिकाओं का भील लुक

नई दिल्ली। भील समुदाय की आदिवासी महिलाओं को लेकर बनाई गई अपनी पेंटिंग्स के बारे में बताते हुए ए. रामचंद्रन के चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। 86 वर्षीय कलाकार याद करते हुए बताते हैं कि ‘ये महिलाएं अपने सिर पर लंबा पल्लू लटकाती हैं और कई बार ये पल्लू गर्दन तक लंबे होते हैं। ये महिलाएं अपने चेहरे को छिपा कर रखती हैं लेकिन मुझे इससे ऐतराज नहीं है।’
वह बताते है कि वह जब से भील जीवन शैली से सीधे परिचित हुए तब से आधी सदी का समय बीत चुका है। राजस्थान के आदिवासी समुदाय को 1980 के दशक के मध्य से ही रामचंद्रन की कलाकृतियों में काफी नियमित रूप से चित्रित किया जाता रहा है। इस श्रृंखला में अब प्राचीन संस्कृत ग्रंथ की आठ नायिकाओं को ग्रामीण महिलाओं के साथ अलौकिक संबंध के साथ जोडा गया है।
इन्हें ‘सबाल्टर्न अष्टनायिका’ कहा जाता है। इन चित्रों को वर्तमान में राष्ट्रीय राजधानी में प्रदर्शित किया जा रहा है। प्रसिद्ध ‘लोटस पॉन्ड’ श्रृंखला में उनकी नवीनतम तस्वीरों के साथ, कुल 13 तस्वीरों को वदेहरा आर्ट गैलरी (वीएजी) की ओर से शहर के दो स्थानों पर प्रदर्शित किया जा रहा है।
भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र पर अपने दो-सहस्राब्दी पुरानी कृतियों में अष्टनायिका को उद्धृत किया है। इनमें प्रेम में लीन महिलाओं की आठ मानसिक अवस्थाओं को चित्रित किया गया है। इन अवस्थाओं में यौन उत्तेजना से लेकर व्यथा और छल जैसी अवस्थाएं शामिल हैं। लेकिन कुल मिलाकर यह अवधारणा शास्त्रीय चित्रों, मूर्तिकला, नृत्य और साहित्य में एक उच्च स्थिति रखती है।
दिल्ली में यमुना के पूर्व में रहने वाले पद्म भूषण से सम्मानित श्री रामचंद्रन कहते हैं, ष्मेरी नायिकाएं परम्परागत संवेदना से परे हैं। आप यह भी कह सकते हैं कि यह मौलिक है।ʺ
वह कहते हैं, ‘आखिरकार, प्रेम सिर्फ सुंदरियों का विशेषाधिकार नहीं है। कोई भी स्त्री-पुरुष एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो सकते हैं।’
रामचंद्रन की अष्टनायिकाएं आज डिफेंस कॉलोनी स्थित वीएजी की मॉडर्न गैलरी में आयोजित सबाल्टर्न नायिका और लोटस पॉन्ड का हिस्सा हैं। महीने भर चलने वाला यह शो 12 दिसंबर को समाप्त होगा, जबकि तानसेन मार्ग (मंडी हाउस) पर त्रिवेणी कला संगम की श्रीधरणी गैलरी में संबंधित 17 दिवसीय प्रदर्शनी 30 नवंबर को संपन्न हुई।
सभी आठ नायिकाओं को लॉकडाउन के महीनों के दौरान चित्रित किया गया था, जिसके बाद कोविड-19 का प्रकोप हुआ। दुनिया भर में फैली इस महामारी ने दिल्ली में भी अपना भयंकर रूप दिखाया, जिसके कारण रामचंद्रन को पिछले साल फरवरी के बाद से घर के भीतर ही रहना पड़ा। यही वह समय था जब इस कलाकार ने अपनी भील आदिवासी महिलाओं को लेकर प्रयोग करने का फैसला किया, जिसका स्केच उन्होंने रेगिस्तानी राज्य के दक्षिणी बेल्ट में उदयपुर के आसपास के गांवों के पहले के दौरे के दौरान बनाया था।
केरल में जन्मे इस कलाकार ने बताया, “मेरे स्टूडियो के अटारी में ऐसे सैकड़ों चित्र हैं जो मैंने भील महिलाओं को लेकर बनाए थे। बाद में कोरोनोवायरस के व्यापक रूप से फैलने के कारण मैं एक तरह से घर में ही बंद हो गया और उसी दौरान मैंने उनमें से कुछ पर काम करने का फैसला किया।”
उन्होंने पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध शांतिनिकेतन में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की।
उन्होंने कहाॉ ‘आखिरकार अष्टनायिकाओं का विषय मुझ पर हावी हो गया। मैंने पिछले दशक में जिन भील महिलाओं से मुलाकात की थी, उनके आठ रेखाचित्रों पर काम करने का फैसला किया।” रामचंद्रन इस विचार का श्रेय अपने ‘मलयाली सेंस ऑफ ह्यूमर’ को देते हैं जो आदर्शवाद को संदेह की दृष्टि से देखता है।
कला इतिहासकार रूपिका चावला इससे सहमत हैं। वह कहती हैॉ ʺयह देखते हुए कि ब्लैक ह्यूमर और विडंबना रामचंद्रन की कलात्मकता के आंतरिक पहलू हैं यह उनकी रचनात्मक प्रोग्रामिंग की खासियत है। कलाकार आमतौर पर दृश्य अभिव्यक्ति का उपयोग सजीवता के लिए करता है।’
रामचंद्रन का कहना है कि भील महिलाएं उनकी पेंटिंग के लिए अष्टनायिका बनने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त विकल्प हैं, क्योंकि उनकी पेंटिंग भारत के सबसे पुराने समुदायों में से एक है। ‘वे उस प्राचीन संस्कृति के हिस्से हैं जो तेजी से खत्म हो रही है।’
रामचंद्रन तिरुवनंतपुरम के पास अत्तिंगल के मूल निवासी हैं। उन्होंने 1957 में पश्चिम बंगाल जाने से पहले रवींद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध संस्थान में छात्र के रूप में दाखिला लिया। इससे पहले मलयालम साहित्य में मास्टर्स किया था। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाते हुए, वह 1960 के दशक के मध्य से दिल्ली में रहे हैं। उन्हें कालिदास सम्मान और राजा रवि वर्मा पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं।

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