हलचल

“ट्रांसजेंडरों से भेदभाव रोकने के लिए सख्त कानून नहीं, पहचान साबित करने में लगते हैं 10 साल”

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के धारा 377 को हटाने और समलैंगिकता को अपराध मानने से इन्कार करने के बाद अब भी समाज में ट्रांसजेंडरों और एलजीबीटीक्यू को कानून, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, मीडिया रिपोर्टिंग में भेदभाव आदि विभिन्न मोर्चों पर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। “कॉन्क्वीर 2019” कार्यक्रम के तहत शनिवार आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश के विभिन्न भागों से आए ट्रांसजेंडरों ने विभिन्न क्षेत्रों में सामने आने वाली परेशानियों और समस्याओं को साझा किया। लव, सेक्स और रिलेशनशिप फोकस करने वाले एनजीओ लव मैटर्स ने केशव सूरी फाउंडेशन के साथ साझेदारी में “कॉनक्वीर 2019” सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें ट्रांसजेंडरों ने एकजुट होकर कहा कि समुदाय के साथ समाज के हर स्तर पर होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए सख्त कानून बनाना वक्त की जरूरत है। कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि ट्रांसजेंडरों को कब तक ज़लील होना पड़ेगा? अभी ट्रांसजेंडरों को अपनी पहचान साबित करने में 10 साल लग जाते हैं। एलजीबीटी समुदाय से भेदभाव रोकने के लिए टीजी बिल बनाया गया था, लेकिन इसमें कमियां है और समलैंगिकों से भेदभाव पर लगाम लगाने के लिए सख्त प्रावधान नहीं है।
“कॉनक्वीर 2019” में ट्रांसजेंडरों का कहना था कि एलजीबीटी और ट्रांसजेंडरों के साथ सरकारी अस्पतालों में भेदभाव किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में सेक्स चेंज की सुविधा नही है। प्राइवेट अस्पतालों में काफी पैसा लगता है। सामाजिक, मानसिक, शारीरिक और सेक्स चेंज में आने वाली परेशानियों से समुदाय में आत्महत्या की दर बढ़ती जा रही है। आंकड़े उपलब्ध न होने से आत्महत्या की वजहों का अभी ठीक ढंग से पता नहीं चल पाया है।
इसी ग्रुप में शामिल एक अन्य ट्रांसजेंडर ने बताया कि ट्रांसजेंडर को समाज में ही नहीं, सरकारी अस्पतालों में भी अपमानित होना पड़ता है। डॉक्टर भी उन्हें मर्द और औरत के रूप में देखते हैं, जिससे उन्हें ज्यादा परेशानी होती है। सरकारी अस्पतालों में सेक्स चेंज की सुविधा न होने से समुदाय के लोग इन अस्पतालों में इलाज नहीं करा पाते। वह अपना इलाज अपने आप करने की कोशिश करते हैं, जिससे कुछ लोग कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज के कुछ लोगों में यह गलत धारणा फैली है कि ट्रांसजेंडर एचआईवी फैलाते हैं। एमबीबीएस कोर्स में रिजिवन कर इस भ्रांति को दूर किया जाना आज के वक्त की जरूरत है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी ट्रांसजेंडरों से भेदभाव होने के खिलाफ आवाज उठाई गई। उन्होंने कहा कि स्कूलों-कॉलेजों में भी ऐसे लोगों को न तो अन्य साथियों से और न ही दोस्तों से किसी तरह का सहयोग मिलता है। लगातार परेशान किए जाने के कारण छोटी उम्र में ही इस तरह के लोग अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं। हालांकि पंजाब यूनिवर्सिटी में 5 ट्रांसजेंडर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ह्यूमन राइट्स विषय में पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे धनंजय चौहान ने बताया कि 2016 में यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने के समय उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि मीडिया में समस्याएं उठाए जाने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी में ट्रांसजेंडरों के लिए अलग से शौचालय बनाया गया और ऐसे लोगों की फीस भी माफ की गई। उन्होंने 1993 और 1994 में पंजाब यूनिवर्सिटी में रेप की कोशिश होने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी। 2016 में उन्होंने ह्यूमन राइट्स में पीएचडी करने के लिए यूनिवर्सिटी में फिर एडमिशन लिया। इस अवसर पर मीडिया और फिल्मों में ट्रांसजेंडरों की गलत इमेज पेश करने और इससे समाज में गलत और नकारात्मक धारणा फैलाने का मुद्दा भी उठाया गया।
इस अवसर पर लव मैटर्स की कंट्री हेड विथिका यादव ने कहा, “हम ट्रांसजेंडरों की समस्याओं के समाधान के लिए अपने इस प्लेटफॉर्म को फाउंडेशन की तरह इस्तेमाल करने की उम्मीद कर रहे हैं। हमारा मानना है कि “कॉनक्वीर” में उठाई गई समस्याएं घर-घर तक पहुंचेंगी और समाज के लोग हर स्तर पर उपेक्षा के शिकार इस समुदाय की समस्याओं और परेशानियों पर सहानुभूतिपूर्वक फिर से विचार करेंगे।“ वहां एलजीबीटीक्यू और अन्य सदस्यों की समस्याओं के लिए भी खुल के बातचीत हुई, लव मैटर्स जल्द ही इन समस्याओं की लिस्ट को पब्लिश करेगा।

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