हलचल

वेदों के बिना विज्ञान की मान्यता अप्रसांगिक : प्रो. कपिल गौतम

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
ऋग्वेद में ज्ञान को विज्ञान के साथ जानने की बात कही गई है। इसकी पुष्टि न्युक्लियर सांइस के जाने-माने भौतिकविज्ञानी रोबर्ट एपेमाइन करते हैं। अणु परमाणु सिद्धांत की व्याख्या महर्षि कणाद ने बहुत पहले कर दी थी। यह विचार आज मंगल कलश सभागार महर्षि गौतम शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय में वेदों की वर्तमान प्रासंगिकता विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट अतिथि प्रो कपिल गौतम गौतम ने व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन शिशु भारती शिक्षण संस्थान और एवं भारत विकास परिषद चाणक्य शाखा कोटा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
प्रो.कपिल ने कहा कि पदार्थ और परमाणु के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा परमाणु विखंडन और उर्जा ,प्रकाश विकिरण के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा डाल्टन ने बाद में बताया है कि परमाणु अविभाजित इसके पहले महर्षि कणाद बता चुके थे। हमारी वैज्ञानिक प्रमाणिकता को विदेशी आक्रांताओं ने नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों को तहस नहस कर दिया। ऋषि भारद्वाज विमान शास्त्र के जाने-माने ज्ञाता थे। समय की सबसे बड़ी इकाई कल्प है यह वेद में कहा गया है। वेदों में यह कहा गया है जो सहज व्यक्तित्व नहीं है वो वैज्ञानिक नहीं हो सकता। हमारे सामने प्रोफेसर अबुल कलाम इसके उदाहरण हैं।
अन्य मुख्य वक्ता प्रो. के.बी.भारतीय ने वेदों में चराचर जगत, दर्शन एवं आध्यात्म विषय पर बोलते हुए कहा कि वेद समस्त विद्याओं के जनक है।वेद तकनीकी एवं दर्शन के महासागर है। नासा ने ऋग्वेद को सबसे प्राचीन ग्रंथ बताया है। वेद आध्यात्म, दर्शन, जीव ,जगत सभी को बताते हैं। विज्ञान कल्पना नहीं यथार्थ है।
उन्होंने कहा कि वेद यह भी बताते हैं कि जिसके पास बुध्दि है उसके पास बल भी है। आज़ का भारत इसका उदाहरण है।कवि ऋषि परंपरा का द्योतक है क्योंकि वह चिंतक है।बल और बुद्धि से परे तीसरी शक्ति परमात्मा है। ऋग्वेद से पहले गायत्री मंत्र आया विश्वामित्र की मानस में एक वाक्य “तत्सवितुर्वरेण्यं” आया फलत:वह एक मंत्र बना। ऋग्वेद कितने ही ऋषियों की ऋचाओं का संकलन है। सामवेद उद्दात,अनुदात,स्वरित स्वर के बाद सात सुरों से गाये जाने पर आया है। यजुर्वेद भी ऋचाओं का संकलन है। अथर्ववेद का उतना महत्व नहीं है जितना अन्य वेदों का है। वेदों के बाद उपनिषद और पुराणों की रचना हुई है।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही ने कहा कि आज का आयोजन कर्पूर चन्द कुलिश के आयोजनों की याद दिलाता है। अथर्ववेद में उत्तम राष्ट्र की कल्पना की है।वेद छोटे और बड़े सबको साथ चलना सिखाता है।अस्तु इस पर सभी वर्गों का समान अधिकार है। ब्रह्म को जानता है वो ब्राह्मण है वो रैदास भी हो सकता है और वाल्मीकि वेदों की जानकारी आम जन तक पहुंचानाबुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी है।
शिशु भारती संस्था कोटा के निदेशक योगेन्द्र शर्मा ने इस आयोजन की सार्थकता बताते हुए कहा कि मनु स्मृति को लेकर जो भ्रम है वो दूर होना चाहिए। हमारे शास्त्रों में हर बार सुधार हुआ है हमें सहज होकर सबको निभाकर चलना होगा। संचालन गोपाल नामेद्रं ने किया। विपिन शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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