अन्तर्राष्ट्रीय

पर्यावरण अनुकूल निवेश ला सकते हैं उत्सर्जन में 25 फीसद तक कमी : संयुक्त राष्ट्र

कोविड की आर्थिक मार से उबरने के लिए अगर अभी पर्यावरण अनुकूल फैसले लिए जाते हैं तो 2030 तक के अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कमी लायी जा सकती है, ये कहना है संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की ताजा रिपोर्ट का।
यही नहीं, इन फैसलों से ही यह तय हो जायेगा कि क्या हम जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के वैश्विक तापमान में 2°C बढ़ोतरी के लक्ष्यों को हासिल कर पाएंगे या नहीं। दरअसल, UNEP की ताजा एमिशन गैप रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में गिरावट के बावजूद, दुनिया अभी भी इस सदी में 3°C से अधिक के तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है।
हालाँकि, अगर सरकारें महामारी से रिकवरी के नाम पर जलवायु संरक्षण में निवेश करती हैं और नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं का दृढ़ता से पालन करती हैं तो उत्सर्जन को मोटे तौर पर 2°C लक्ष्य के अनुरूप स्तर पर ला सकती हैं। साथ ही, अगर इन नये हरित निवेशों के साथ ही नेट जीरो प्रतिज्ञाओं को पेरिस समझौते के राष्ट्रीय लक्ष्यों में समावेशित कर लेते हैं तो देशों के लिए 1.5 डिग्री का लक्ष्य भी सम्भव हो सकता है। फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिख रहा।
इस रिपोर्ट में पाया गया है कि 2020 में उत्सर्जन में 7% की गिरावट दर्ज तो की गयी, लेकिन 2050 तक इस गिरावट का मतलब ग्लोबल वार्मिंग में कुल 0.01 डिग्री की गिरावट ही है।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए UNEP की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहते हैं, ‘जंगल की आग, तूफानों, और सूखे के चलते साल 2020 निश्चित रूप से सबसे गर्म सालों में से एक है, लेकिन UNEP की एमिशन गैप रिपोर्ट से पता चलता है कि पर्यावरण अनुकूल निवेश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का एक बड़ा हिस्सा घटा सकती हैं और जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा कर सकते हैं। मेरा सरकारों से आग्रह है कि वो अपने स्तर पर कोविड से उबरने के लिए सही निवेश करें और अपनी जलवायु महत्वाकांक्षाओं को वृहद् स्वरुप दें।’
हर साल, एमिशन गैप रिपोर्ट उस गैप, या अंतर को, सबके सामने रखती है जो प्रत्याशित उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग को 2°C से नीचे रखने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए स्वीकार्य उत्सर्जन के बीच होता है। यह अंतर जितना कम हो उतना अच्छा।
ताजा रिपोर्ट में पाया गया है कि 2019 में भू-उपयोग परिवर्तन सहित कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, CO2 समतुल्य (GtCO2e) के 59.1 गीगाटन के नए उच्च स्तर पर पहुंच गया। वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 2010 के बाद से प्रति वर्ष 1.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, और जंगल की आग में बड़ी वृद्धि के कारण 2019 में 2.6 प्रतिशत अधिक तेजी से वृद्धि हुई है।
इस वर्ष महामारी की वजह से कम औद्योगिक गतिविधि, कम बिजली उत्पादन वगैरह का नतीजा यह हुआ कि 2020 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 7 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान है, लेकिन यह गिरावट ग्लोबल वार्मिंग में 2050 तक सिर्फ 0.01°C की ही कमी ला पायेगी।
जहाँ ऐसा अनुमान है कि 2030 में उत्सर्जन 59  GtCO2e  होगा, वहीं अगर ग्रीन रिकवरी को प्राथमिकता दी जाये तो यह उत्सर्जन 44 GtCO2e  पर आ जायेगा। और यह ग्रीन रिकवरी उत्सर्जन के दायरे को उस सीमा के भीतर डाल देगी जो तापमान को 2°C से नीचे रखने का 66 प्रतिशत मौका देती है, लेकिन फिर भी यह 1.5°C लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपर्याप्त होगा।
फिलहाल रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनिया भर में ग्रीन रिकवरी की दिशा में कार्रवाई सीमित ही रही है। इससे समझ ये आता है कि अब भी देशों के पास ग्रीन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।
इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि तमाम देशों ने जिस प्रकार नेट जीरो होने की प्रतिबद्धता दिखाई है, वो सराहनीय है और इस रिपोर्ट के पूरा होने तक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 51 प्रतिशत को कवर करने वाले 126 देशों ने नेट-जीरो लक्ष्यों को या तो अपनाया, या घोषित किया, या उनपर विचार कर रहे थे।
हालांकि लक्ष्यों के सापेक्ष प्रासंगिक बने रहने के लिए इन प्रतिबद्धताओं और इस दिशा में कार्यवाही को तिगुना होना चाहिए मौजूदा कोशिशों के मुकाबले। वहीं बात 1.5 डिग्री के लक्ष्य की करें तो प्रयासों में पाँच गुणा तीव्रता होनी चाहिए।
अब बात उपभोक्ता व्यवहार की। इस रिपोर्ट में पाया गया है कि मजबूत जलवायु कार्रवाई में निजी क्षेत्र और व्यक्तियों द्वारा उपभोग व्यवहार में बदलाव शामिल होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि लगभग दो-तिहाई वैश्विक उत्सर्जन निजी घरों से जुड़ा होता है।
UNEP पर्यावरण पर अग्रणी वैश्विक आवाज है। यह भविष्य की पीढ़ियों के साथ समझौता किए बिना अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए राष्ट्रों और लोगों को प्रेरित, सूचित और सक्षम करके पर्यावरण की देखभाल करने में नेतृत्व प्रदान करता है और साझेदारी को प्रोत्साहित करता है।
अब देखना है कि कैसे तमाम देश UNEP द्वारा दिखाए गए इस एमिशन गैप को पाटते हैं।

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