लीवर की नियमित जांच से हेपेटाइटिस को महामारी बनने से रोका जा सकता है
वायरल संक्रमण के कारण लीवर में सूजन (इंफ्लामेशन) हो सकती है, जिसे आम बोलचाल में हेपेटाइटिस कहा जाता है। हेपेटाइटिस के लक्षण अन्य बीमारियों से काफी मिलते-जुलते हैं, इसलिए डायग्नोस्टिक टेस्ट के बिना इसकी पहचान करना असंभव है। हेपेटाइटिस का प्रकोप भारत में व्यापक है। भारत में लगभग 5 करोड़ लोग क्रोनिक हेपेटाइटिस से पीड़ित हैं। भारत उन 11 देशों में चैथे स्थान पर है जहां दुनिया भर के क्रोनिक हेपेटाइटिस के लगभग 50 प्रतिशत मरीज हैं। इस बीमारी की पहचान नहीं होने का मुख्य कारण नियमित जांच और निदान की कमी है। दुनिया भर में अभी लगभग 40 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी वायरस से संक्रमित हैं और यह लीवर फेल्योर और कैंसर का मुख्य कारण है। सरोज सुपर स्पेशियालिटी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी विभाग के एच ओ डी डॉ. रमेश गर्ग का कहना है कि, ‘‘लीवर का कार्य प्रोटीन, एंजाइम और अन्य पदार्थों का उत्पादन करके पाचन में मदद करना है, शरीर से जहरीले पदार्थों को बाहर निकालना और भोजन से ऊर्जा उत्पन्न करना है। घटकों के उत्पादन में किसी भी प्रकार की असामान्यता इस बीमारी के होने का गंभीर संकेत है कि लीवर अच्छी तरह से काम नहीं कर रहा है। लीवर के ठीक से कार्य नहीं करने का संदेह होने पर, लीवर फक्शन टेस्ट (एलएफटी) किया जा सकता है जिसमें विश्लेषण के लिए रक्त का नमूना लिया जाता है। निम्नलिखित पदार्थों का असामान्य रूप से पाया जाना हेपेटाइटिस का संकेत है।’’
अल्ब्यूमिन लीवर के अंदुरूनी हिस्से द्वारा संश्लेशित एक प्रोटीन है जो खनिज और रक्त में आवश्यक पोषक तत्वों को स्थानांतरित करने में मदद करता है। इस प्रोटीन का निम्न स्तर लीवर रोग का गंभीर संकेत है। लीवर द्वारा कई एंजाइमों को संश्लेषित किया जाता है, जिनमें से एएलपी हड्डी के विकास के लिए आवश्यक है, एएलटी प्रोटीन प्रोसेसिंग में सहायता करता है और एएसटी भोजन को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है। हेपेटाइटिस से पीड़ित व्यक्ति के रक्त में इन एंजाइमों का स्तर अधिक होगा। हेपेटाइटिस से पीड़ित व्यक्ति में इस पिगमेंट का स्तर उंचा होगा जो कि पीलिया पैदा करने के लिए जिम्मेदार है। यह आरबीसी के टूटने के कारण उत्पन्न होता है।
3 एच केयर की संस्थापक और सी ई ओ सी ए (डॉ.) रूचि गुप्ता कहती हैं कि रोग की गंभीरता, टाइप और व्यक्ति हेपेटाइटिस के किस स्ट्रेन से पीड़ित है, इसका पता लगाने के लिए लीवर की पूरी तरह से जांच करने के लिए वायरल सेरोलॉजी के तहत कई प्रकार के रक्त परीक्षण किये जाते हैं। रक्त के नमूने की जांच आक्रमण करने वाले वायरस के विशिष्ट मार्करों और इसकी एंटीबॉडी के लिए की जाती है जो उनसे लड़ता है। इस तरह के परीक्षण हेपेटाइटिस से पीड़ित रोगी में बीमारी के लंबे समय तक प्रबंधन और उपचार की सफलता पर निगरानी रखने के लिए उपयोगी साबित होते हैं। रक्त से एंटीजन का गायब होना इस बात का संकेत है कि संक्रमण ठीक हो रहा है। रक्त का परीक्षण निम्नलिखित एंटीजन और एंटीबॉडी का पता लगाने के लिए किया जाता है – एंटीजन – हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी (सरफेस और कोर), हेपेटाइटिस सी, एंटीबॉडी के खिलाफ – हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी (सरफेस और ई-एंटीजन) और हेपेटाइटिस सी। आईजीएम एंटीबॉडी – जिसकी उपस्थिति हालिया संक्रमण को इंगित करती है। आईजीजी एंटीबॉडी – जिसका उपस्थिति वायरस के चल रहे एक्सपोजर को इंगित करती है। हेपेटाइटिस के प्रकार और गंभीरता को निर्धारित करने के लिए, सर्वश्रेष्ठ इलाज का निर्णय लेने के लिए, बीमारी में सुधार की पहचान के लिए कई परीक्षण करने की आवश्यकता होती है।