लाइफस्टाइलस्वास्थ्य

37वां आॅॅल इण्डिया आॅप्टोमेेट्री काॅन्फ्रेन्स

नई दिल्ली। दृष्टिहीनता या दृष्टि दोष (विजुअल/विजन इम्पेयरमेन्ट) ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की देखने की क्षमता कम हो जाती है। अगर व्यक्ति की देखने की क्षमता लगभग पूरी तरह से खत्म हो जाए ता इसे अंधापन (ब्लाइंडनैस) कहा जाता है। दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों में मुश्किल महसूस करता है जैसे वाहन चलाना, पढ़ना, सामाजिक गतिविधियां और चलना-फिरना।
दुनिया भर में दृष्टिदोष के तीन मुख्य कारण हैं: रिफरेक्टिव त्रुटि (43 फीसदी), मोतियाबिन्द/ कैटेरेक्ट (33 फीसदी) और ग्लुकोमा (2 फीसदी)। रिफरेक्टिव त्रुटि में शामिल हैं निकट दृष्टि दोष (जिसमें व्यक्ति पास की चीज तो साफ देख सकता है लेकिन दूर की चीज साफ दिखाई नहीं देती), दूर दृष्टि दोष (जिसमें व्यक्ति दूर की चीज तो साफ देख सकता है लेकिन पास की चीज साफ दिखाई नहीं देती), प्रेसबायपिया और एस्टिगमेटिज्म। मोतियाबिंद या कैटेरेक्ट अंधेपन का सबसे आम कारण हैं। कई अन्य कारणों से भी आंखों की नजर कमजोर हो जाती है जैसे उम्र बढ़ने के साथ मैक्युलर डीजनरेशन, डायबिटिक रेटिनोपेथी, काॅर्नियल क्लाउडिंग, बचपन का अंधापन और कई प्रकार के संक्रमण।
बच्चों में उचित स्क्रीनिंग द्वारा स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है और उन्हें पढ़ने-लिखने में सक्षम बनाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार 80 फीसदी दृष्टि दोषों को या तो रोका जा सकता है या इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता है। 2015 में 940 मिलियन लोग दृष्टि दोष से पीड़ित थे। इनमें से भारत, चीन और उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्रों में 246 मिलियन लोगों की नजर कमजोर थी और 45 मिलियन (इनका 60 फीसदी) लोग अंधेपन का शिकार थे। दृष्टि दोष से पीड़ित ज्यादातर लोग विकासशील देशों में रहते हैं और इनकी उम्र 50 साल से अधिक है। दृष्टि दोष प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से आर्थिक बोझ का कारण बन जाता है।
प्रत्यक्ष कारक की बात करें तो मरीज को इलाज का खर्च उठाना पड़ता है और अप्रत्यक्ष रूप से उसकी काम करने की क्षमता खत्म हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ‘‘मौजूद  उपायों के बावजूद हर साल दुनिया भर में अंधेपन के 1 से 2 मिलियन मामले बढ़ रहे हैं- ऐसे में अगर उचित उपाय नहीं किए जाते तो साल 2020 तक दुनिया में अंधापन 100 फीसदी तक बढ़ जाएगा।
भारत में 8 मिलियन लोग अंधेपन का शिकार हैं और 50 मिलियन लोग मध्यम से गंभीर दृष्टि दोषों से पीड़ित हैं। नजर कमजोर होने का असर व्यक्ति पर ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार पर पड़ता है। यह विशेष रूप से विकासशील देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य, सामाजिक एवं आर्थिक समस्या का बड़ा मुद्दा है जहां दुनिया के 10 में 9 अंधे लोग रहते हैं। ऐसे में अंधेपन की रोकथाम और नियन्त्रण देश की ‘स्वास्थ्य क्षेत्र’ योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अंधेपन और दृष्टिदोषों के नियन्त्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम 100 फीसदी केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना है, इसके तहत 2020 तक अंधेपन में 0.3 फीसदी कमी लाने का लक्ष्य तय किया गया है।
श्री जे.पी. नड्डा , माननीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री , भारत सरकार के अनुसार, ‘‘केन्द्र सरकार गुणवत्तापूवर्ण नेत्र देखभाल सेवाओं के माध्यम से दृष्टि दोषों की रोकथाम एवं नियन्त्रण के लिए प्रयासरत है। इसी के मद्देनजर सरकार ने ‘सभी के लिए नेत्र स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण के साथ एनपीसीबी रणनीति तैयार की है।’’
श्री अश्विनी कुमार चौबे, माननीय राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रंत्री ने कहा, ‘‘बेहतर जागरुकता और नीतिगत हस्तक्षेपों के बावजूद दुनिया भर में अंधेपन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अगर समय पर उचित उपाय नहीं किए जाते, तो 2020 तक दुनिया भर में अंधेपन के मामलों में 100 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। ये आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं और इन पर जल्द से जल्द ध्यान देने की जरूरत है।’’
ऐसे में जरूरी है कि प्राइमरी, सैकण्डरी और टर्शरी स्तर पर उपचार योग्य अंधेपन की पहचान  कर समय पर इसका इलाज किया जाए, ताकि देश में दृष्टिदोषों के बोझ को कम किया जा सके। इसी के मद्देनजर यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि प्राथमिक स्तर के आॅप्टोमेट्रिस्ट/नेत्र विशेषज्ञों के पास हर जरूरी जानकारी और विशेषज्ञता हो, क्योंकि मरीज सबसे पहले इनके पास ही इलाज के लिए आते हैं। इससे दृष्टिदोषों और अंधेपन को काफी हद तक नियन्त्रित किया जा सकता है।
श्री संतोष कुमार गंगवार, माननीय श्रम एवं रोजगार मंत्री (स्वतन्त्र प्रभार), भारत सरकार के अनुसार, ‘‘आॅप्टोमेट्री (नेत्र चिकित्सा) नेत्र स्वास्थ्य आरै प्रबन्धन के लिए पारम्परिक रूप से स्पेक्टेकल लैंस और काॅन्टेक्ट लैंस थेरेपी पर ही केन्द्रित रही है। हालांकि पिछले दशक में कई अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं को भी इस क्षेत्र में शामिल किया गया है। आज के नेत्र विशेषज्ञों और पेशेवरों को इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि वे मरीजों को सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करा सकें। इन प्रयसों के द्वारा रिफरेक्टिव त्रुटि एवं दृष्टि दोषों के कारण होने वाले अंधेपन के 80 फीसदी मामलों की रोकथाम की जा सकती है।
श्री अशोक सिद्धार्थ, माननीय संसद सदस्य तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पर संसदीय स्थायी समिति (राज्य सभा) के सदस्य श्री अशोक सिद्धार्थ के अनुसार ‘‘देश में मौजूद वर्तमान नेत्र विशेषज्ञ दो-तिहाई नेत्र देखभाल उपलब्ध करा सकते हैं और आम जनता की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं।’’
‘‘दृष्टि दोषों और रिफरेक्टिव त्रुटि के समाधान में नेत्र विशेषज्ञ की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। नेत्र रोगों का समय पर निदान कर चश्मे का इस्तेमाल न केवल बच्चों के महत्वपूर्ण वर्षों में उनकी क्षमता बढ़ाता है, बल्कि उन्हें गंभीर जटिलताओं से भी सुरक्षित रखता है।’’ डाॅ प्रोमिला गुप्ता , स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के आगामी महानिदेशक, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा। डाॅ. गुप्ता वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं के अपर महानिदेशक हैं और 2 अप्रैल 2018 से स्वास्थ्य मंत्रालय में डीजीएचएस (आॅफिसर इन्चार्ज) का कार्यभार संभालेंगे।
भारतीय नेत्र विशेषज्ञों की मेहनत और समर्पण लाखों भारतीय नागरिकों के लिए कारगर साबितहो सकता है। उनके समर्पण और पेशेवर सेवाओं के बिना देश के नागरिक उत्कृष्ट नेत्र चिकित्सा सेवाओं से लाभान्वित नहीं हो सकते। इसी संदर्भ में 12000 नेत्र चिकित्सकों, आॅप्टेमेट्री छात्रों और पैरा-आॅप्टोमेट्रिक सेवाएं उपलब्ध कराने वाले विशषज्ञों का प्रतिनिधित्व करने वाली सर्वोच्च संस्था इण्डियन आॅप्टोमेट्रिक एसोसिएशन 30 मार्च-1 अप्रैल 2018 को काॅन्स्टीट्यूशन क्लब आॅफ इण्डिया, नई दिल्ली में 37वें आॅल इण्डिया आॅप्टोमेट्री काॅन्फ्रेन्स का आयोजन किया।
इस मौके पर श्री अनिल त्यागी, प्रे्रेजीडेन्ट, इण्डियन ऑप्टोमेट्रिक एसोसिएशन ने कहा, ‘‘एआईओसी देश- विदेश से आए प्रतिभागियों को नेत्र चिकित्सा क्षेत्र में अपने अनुसंधानों, अनुभवों और प्रगतियों को साझा करने के लिए महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। इस सम्मेलन के माध्यम से हम भारत एवं विकासशील देशों में अंधेपन के 80 फीसदी (रोके जा सकने वाले) मामलों के उन्मूलन में नेत्र चिकित्सा विज्ञान की भूमिका को समझ सकते हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी है कि आम जनता को सुलभ एवं किफायती नेत्र चिकित्सा सेवाएं  उपलब्ध कराई जाएं।’’ एआईओसी 2018 के आयोजक सचिव डाॅ सुबोेध दीक्षित ने कहा, ‘‘37 वं एआईओसी 2018 सम्मेलन के दौरान 16 इन्टरैक्टिव सत्रों और कार्यशालाओं का आयोजन किया गया जिनमें 75 जाने-माने प्रवक्ता, 600 से अधिक ओद्यौगिक प्रतिनिधि और 20 से अधिक प्रदर्शकों ने हिस्सा लिया।
डाॅ राजीव प्रसाद, सम्मेलेलन के चेयरमैन, एआईअओसी 2018 ने कहा, ‘‘आॅल इण्डिया आॅप्टोमेट्री सम्मेलन (एआईओसी 2018) चिकित्सकों, विशेषज्ञों, ओद्यौगिक साझेदारों, अकादमिक और तकनीकी संगठनों को इस क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को जानने और समझने का मौका प्रदान करेगा ताकि आने वाले समय में दुनिया को अंधेपन से मुक्ति दिलाई जा सके।’’
भारत सरकार के दृष्टिकोण ‘सभी के लिए नेत्र चिकित्सा सेवाओं’ के मद्देनजर भारतीय आॅप्टोमेट्रिक संगठन का यह प्रमुख राष्ट्रीय सममेलन देश में अंधेपन की रोकथाम हेतू समर्पित है। श्री नरेन्द्र मोेदी जी, माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार ने कहा ‘‘मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन विभिन्न हितधारकों को नेत्र चिकित्सा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हेतू उत्कृष्ट मंच प्रदान करेगा। सम्मेलन के सभी कामयाब संगठनों को शुभकामनाएं।’’

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