स्वास्थ्य

लंबी जिंदगी जी सकते हैं ब्रेन ट्यूमर के मरीज

अक्सर लोग दोनों कान अथवा किसी एक कान से कम सुनाई देने लगने पर कान में मैल या कान से जुड़ी हुयी समस्या समझ लेते हैं लेकिन यह ब्रेन ट्यूमर का भी संकेत हो सकता है। इसलिये ऐसे मामले समुचित जांच तथा इलाज में देर करना मंहगा साबित हो सकता है। अगर आपको कम सुनाई देने लगे तो यह मस्तिष्क में ट्यूमर का संकेत हो सकता है। ट्यूमर का आकार बढ़ने पर चलते समय पैर लडखाने लगने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।
मस्तिष्क के ट्यूमर कई तरह के हो सकते हैं और अलग-अलग ट्यूमर के अलग-अलग लक्षण होते हैं। दरअसल ट्यूमर मस्तिष्क के जिस क्षेत्र में बनता है, उस क्षेत्र के कार्य करने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है जिससे अलग-अलग तरह के लक्षण उभरते हैं। आम तौर पर बराबर सिर दर्द होना, उल्टी होना, किसी कान से कम सुनाई पड़ना, चलते समय लडखड़ाना, याद्दाश्त कमजोर होना, स्वभाव में बदलाव आना, दौरे पड़ना, बोलने, सुनने या दिखने में दिक्कत होना, जी मिचलाना, डर लगना, गले में अकड़न होना, चेहरे के कुछ भागों में कमजोरी महसूस होना, मरीज का वजन एकाएक बढ़ जाना आदि मस्तिष्क के ट्यूमर के लक्षण होते हैं।
शरीर में बनने वाली कोशिकाएं आम तौर पर कुछ समय बाद नष्ट हो जाते हैं और उनकी जगह नयी कोशिकाएं बन जाती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है लेकिन जब यह प्रक्रिया बाधित हो जाती है, तो ट्यूमर की कोशिकाएं बनने लगती हैं। ये कोशिकाएं इकट्ठी होकर उतक बनाती हैं। ये कोशिकाएं मरती नहीं है और समय के साथ बढ़ती रहती हैं। मस्तिष्क के ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकते हैं। ट्यूमर कई कारणों से बन सकते है – विशेष प्रकार के विषाणु के संक्रमण से, प्रदूषित पदार्थो का श्वसन के साथ शरीर में प्रवेश कर जाने से, विकिरण के प्रभाव से और जन्मजात कारणों से।
अगर यह सुनिश्चित हो जाये कि जो लक्षण नजर आ रहे हैं वे ब्रेन ट्यूमर के हैं तो इलाज किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि जैसे ही रोग के लक्षण प्रकट हों तत्काल ही चिकित्सक का परामर्श लिया जाए। एक समय मस्तिष्क के ट्यूमर को घातक माना जाता था लेकिन अब नयी तकनीकों की मदद से इसका कारगर इलाज हो सकता है।
मौजूदा समय में बे्रन ट्यूमर की सर्जरी में स्टीरियोटौक्सी एवं सी आर्म की मदद ली जाने लगी है जिससे आॅपरेशन में किसी भी तरह की गलती होने की गुंजाइश नहीं रहती है और आॅपरेशन पूरी तरह से कारगर होता है। अनेक देशों में इम्यूनोथिरेपी पर तेजी से काम चल रहा है और आने वाले कुछ वर्षों में इस थिरेपी का इस्तेमाल ब्रेन ट्यूमर के इलाज में होने लगेगा। इस थिरेपी के तहत शरीर से कोशिकाओं को निकाल कर ट्यूमर पर आघात कराया जाता है। उम्मीद है कि इस विघि के इस्तेमाल में आने के बाद बे्रन ट्यूमर के इलाज में क्रांति आ जायेगी।
अगर ट्यूमर कैंसर रहित हो तो आॅपरेशन के बाद मरीज पूरी तरह ठीक हो जाता है। कई मरीज को आॅपरेशन के बाद दौरे आते हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को तीन साल के लिये दौरे के नियंत्रण की दवाईयां दी जाती हैं। जब तीन साल तक दौरे नियंत्रण में रहते हैं तो दवाइयां बंद कर दी जाती हैं।
कैंसर रहित ट्यूमर को आॅपरेशन के जरिये हटा देने पर उस जगह पर दोबारा ट्यूमर नहीं बनता है लेकिन कैंसरयुक्त ट्यूमर को निकाल देने के बाद भी उस जगह दोबारा ट्यूमर होने की आशंका होती है। हालांकि आज कैंसर युक्त ट्यूमर को रेडियो थिरेपी की मदद से जलाया जा सकता है लेकिन इसके बावजूद छह महीने से पांच साल में दोबारा ट्यूमर हो सकता है। लेकिन रेडियो थिरेपी नहीं देने पर तीन-चार महीने में ही दोबारा ट्यूमर हो सकता है। ट्यूमर जब तीन सेंटी मीटर से छोटा होता है तो उसे गामा नाइफ रेडियोथिरेपी से जलाया जा सकता है।
अक्सर लोग सर्जरी के नाम से ही डर जाते हैं लेकिन आज कम्प्यूटर नैविगेशन की मदद से सर्जरी अत्यंत सुरक्षित एवं कारगर हो गयी है। है। ट्यूमर अगर छोटा हो तो गामा नाइफ, साइबर नाइफ, स्टीरियोटैक्टिक, रेडियोथेरेपी जैसे कुछ गैर सर्जिकल विकल्पों का भी सहारा लिया जाता है।
अनुसार कम्प्यूटर नैविगेशन आधारित सर्जरी में सर्जन मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई), इंट्रोआपरेटिव एमआरआई, कम्प्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (सीटी) और पोजिट्राॅन इमिशन टोमोग्राफी (पेट) स्कैन जैसी इमेजिंग टेक्नोलाॅजी का सहारा लेते हुये मस्तिष्क का 3 डी माॅडल तैयार करते हैं। इसके जरिये सर्जन को ब्रेन ट्यूमर को हटाने की सबसे सुरक्षित एवं कारगर योजना बनाते हैं। सर्जरी के दौरान कम्प्यूटर आधारित प्रणालियों की मदद से सर्जन बिल्कुल सुरक्षित एवं सही तरीके से मस्तिश्क के उस क्षेत्र में पहुंच सकता है जहां उपचार की जरूरत होती है।
सर्जरी के दौरान मरीज के सिर के बाले को हटाने की जरूरत नहीं होती है और मरीज सर्जरी के तीसरे दिन ही स्नान कर सकता है। सर्जरी के लिए उच्च गुणवत्ता वाली माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल किया जाता है जो मस्तिष्क के भीतर के हिस्से को 12 गुणा बढ़ा कर दिखाता है। जब ऐसा लगता है कि ट्यूमर रक्त नलिकाओं वाला (वैस्कुलर ट्यूमर) है और सर्जरी के दौरान रक्त स्राव हो सकता है तो सर्जरी के पहले रक्त नलिका को अवरूद्ध (असमाइंबोलाइजेशनन) कर दिया जाता है। इसके लिये मरीज को न्यूरोकैथ लैब में ले जाकर ट्यूमर की रक्त नलिकाओं के भीतर दवाई प्रविष्ठ कर दी जाती है। इससे सर्जरी के दौरान बहुत कम रक्तस्राव होता है। सर्जरी के तीन दिन बाद मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।
अगर यह सुनिश्चित हो जाये कि जो लक्षण नजर आ रहे हैं वे ब्रेन ट्यूमर के हैं तो इलाज किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सबसे जरूरी यह है कि जैसे ही रोग के लक्षण प्रकट हों तत्काल ही चिकित्सक का परामर्श लिया जाए। एक समय मस्तिष्क के ट्यूमर को घातक माना जाता था लेकिन अब नयी तकनीकों की मदद से इसका कारगर इलाज हो सकता है।

– डा. राहुल गुप्ता

(डाॅ. राहुल गुप्ता फोर्टिस हाॅस्पिटल, नोएडा में ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी विभाग के सहायक निदेशक तथा वरिष्ठ ब्रेन एवं स्पाइन सर्जन हैं। उन्होंने नागोया, जापान से प्रशिाक्षण हासिल किया और इंडोवैस्कुलर प्रक्रियाओं में कुशालता हासिल की है। उन्होंने पीजीआईएमएस, रोहतक, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ और नई दिल्ली स्थित गोविंद बल्लभ पंत स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान सहित कई सरकारी अस्पतालों में काम किया है।)

 

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