स्वास्थ्य

आर्थराइटिस के इलाज के लिए नई-नई तकनीकें उपलब्ध

-उमेश कुमार सिंह
आर्थराइटिस जैसी भयानक बीमारी के उपचार में टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट बेहद आधुनिक तकनीक है। प्रत्येक वर्ष केवल अमेरिका में पांच लाख से भी अधिक मरीज टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट करा लेते हैं। ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी न केवल दर्द भरे आर्थराइटिस के दर्द से राहत पहुंचाती है, बल्कि जोड़ों को भी एक नया जीवन प्रदान करती है जिससे मरीज के जीवन की गुणवत्ता बढ़ जाती है। मुबंई स्थित पी.डी. हिंदुजा नेशनल अस्पताल के हेड, आर्थोपेडिक्स डा. संजय अग्रवाल का कहना है कि हाल ही के कुछ वर्षों में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी के क्षेत्र में कुछ क्रांतिकारी उपलब्धियां हुई हैं। अब तक केवल नी ज्वांइट और हिप ज्वांइट को ही बदला जाता था, मगर अब शरीर के कई अन्य भाग जैसे कंधे, कोहनी, कलाई, उंगली आदि तक को बदलना संभव हो गया है। वैसे भी यह पाया गया है कि यूरोपियन व अमेरिकन हड्डियों के मुकाबले एशियन हड्डियां न तो सिर्फ छोटी होती हैं, बल्कि मुलायम भी होती हैं और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की खोज से अब ऐसे बेहतर ज्वांइट बनाए जा सकते हैं, जो कि मूल जोड़ का बेहतर विकल्प हैं और उनकी मदद से जोड़ों का कार्यकाल भी 20-25 वर्ष तक बढ़ जाता है।
कुछ नए मॉडल व डिजाइन जैसे मेटल ऑन मेटल, सेरेमिक ऑन सेरेमिक व पोलिएलिथीन के प्रयोग से जोड़ों का आपसी घर्षण कम होता है। इस लिए अब आर्थराइटिस पीडित युवा मरीजों के लिए भी ये सर्जरी बेहद आसान हो गई है। टोटल नी रिप्लेसमेंट जो कि आर्थोपेडिक सर्जिकल प्रक्रियाओं में सबसे अधिक तौर पर की जाने वाली प्रक्रिया है, इसका विकास पिछले तीस वर्षों में हुआ है। वैसे ये सर्जरी अब सबसे अधिक रूप में प्रयोग की जा रही है, किंतु ये बेहद जटिल भी है क्योंकि सर्जनों औरं इंजीनियरों के लिए मानव घुटनों के जैसा कार्य करने वाले घुटने का डिजाइन बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। ये सब न सिर्फ सर्जन के गुणों पर निर्भर करता है, बल्कि उसकी टीम पर भी निर्भर करता है। साथ ही इंप्लांट का डिजाइन भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। वैज्ञानिक तौर से ऐसा डिजाइन होना चाहिए जिसमें हल्के औजारों का उपयोग किया गया हो।
हालांकि आर्थोपेडिक सर्जरी में यह प्रक्रिया बेहद सफल रही है, किंतु आज भी इस बात पर बहस जारी है कि टोटल नी रिप्लेसमेंट का सबसे बेहतर विकल्प क्या है? फिक्सड बियरिंग या मोबाइल बियरिंग प्रोस्थेसिस। कई फिक्सड बियरिंग प्रोस्थेसिस को 10-20 सालों तक सुचारू पाया गया है किंतु पोलिएथिलीन बियरिंग में कई प्रकार की शिकायतें पाई गई हैं। लेकिन मोबाइल बियरिंग नीज को इन सभी समस्याओं के समाधान के रूप में देखा जा रहा है। ये ज्वाइंट की मोबिलिटी को बढ़ाने में सहायता करता है व पोलिएथिलीन की निर्भरता को भी कम करता है, जिससे कि मरीज अपने घुटनों को मोडने में काफी हद तक सफल हो जाता है। डा.संजय अग्रवाला का कहना है कि अब नए हाई फ्लेक्स नीज की मदद से मरीज अपने घुटनों को पूरा मोड़ सकते हैं और अपने रोजमर्रा के कार्य भी आसानी से कर सकते हैं जैसे-पैरों को मोड़ना, भारतीय टॉयलेट का इस्तेमाल आदि। लेकिन इस प्रक्रिया का प्रयोग सभी मरीजों के लिए नहीं किया जा सकता। आर्थोपेडिक सर्जरी में एक और आधुनिकता है-यूनी कंपार्टमेंटल नी रिप्लेसमेंट। अब बेहतर सीमेंटिंग की वजह से मरीजों का स्वस्थ होना काफी आसान और दर्दरहित हो गया हैं। ये सर्जरी युवा वर्ग के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
हिप हिप्लेसमेंट सर्जरी में हाइब्रिड हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी आम हो चुकी है और इसे काफी सफल भी माना जा रहा है. युवा वर्ग के लिए यह अधिक कारगर है। इसमें हिप ज्वाइंट कप स्क्रू की मदद से फिक्स कर दिया जाता है व सीमेंटिंग करने की जरूरत नहीं पड़ती है। हड्डी के फीमोरल भाग को ही केवल सीमेंटिग की जरूरत पड़ती है। इस सर्जरी से ज्वाइंट का कार्यकाल बढ़ता है और सर्जरी के बाद मरीज को ठीक होने में भी कम समय लगता है। वैसे रयूूमैटोइट आर्थराइटिस, एंकिलूजिंग स्पोंडिलाइटिस, एवीएन आदि से ग्रस्त युवा मरीजों का इलाज चिकित्सकों के लिए थोड़ा कठिन हो जाता है, क्योंकि आर्टिफिश्यल ज्वाइंट का कार्यकाल छोटा होता है और आगे ऐसे मरीजों को दुबारा सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है।
नई तकनीक जैसे सेरेमिक ऑन सेरेमिक और मेटल ऑन मेटल सर्फेस रीसर्फेसिंग आदि ऐसे मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं, क्योंकि उनकी हिप संबंधी समस्या से उन्हें लंबे समय के लिए छुटकारा मिल जाता है। बिरमिंघम हिप रीसर्फेसिंग हिप आर्थराइटिस से ग्रस्त मरीजों को हिप्स को पूरी तरह मोड़ने में सहायक बना देता है। ये आर्टिफिश्यल ज्वाइंट मेटल आन मेटल बियरिंग की मदद से बनते हैं जिनमें घर्षण बेहद कम होता है।
अब तो ज्वाइंट को जोड़ने वाले सीमेंटिंग मेथड में भी बेहद विकास हुआ है। सीमेंटिंग के लिए पोलिमेथाइल मेथाक्राइलेट नाम का सीमेंटिंग मेथड इस्तेमाल होता है। वैसे भी यह देखा गया है कि यदि सही ढंग से सीमेंटिंग की गई हो तो ज्वाइंट का कार्यकाल तो बढ़ता ही है साथ ही उनकी गुणवत्ता और भी बेहतर हो जाती है।
डा.संजय अग्रवाला के अनुसार ज्वांइट रिप्लेसमेंट सर्जरी में प्रयोग किए जाने वाले डिजाइन में बेहतरी के साथ-साथ ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की कई नई तकनीकें जैसे-मिनिमली इंवेसिव सर्जरी, कंप्यूटर असिस्टिड नेविगेशन सर्जरी और रोबोट असिस्टिड सर्जरी आदि भी बेहद लोकप्रिय हो रही हैं। इनसे आर्टिफिश्यल ज्वांइटस का रिप्लेसमेंट अचूक होता है और इससे मरीज को भी कम तकलीफ होती है। पूरे विश्व में भारत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट का भविष्य बेहद सुनहरा दिख रहा है।
हाल ही के कुछ समय में भारत में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट कराने वालों की तादात बढ़ी है। पिछले तीन दशकों में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट ने पूरे विश्व में अपने बेहतर प्रदर्शन से यह प्रमाणित कर दिया है कि ये सर्जरी बेहद उपयोगी व कारगर है। इन नए ज्वाइंट की मदद से आर्टिफिश्यल ज्वाइंट के सीमित कार्यकाल व अन्य समस्याओं से जूझने वाले समाधान पेश किए गए हैं। इनको और अधिक उपयोगी, कारगर व सफल बनाने के लिए विश्वस्तर पर शोध किए जा रहे हैं ताकि इन्हें प्राकृतिक घुटनों के जैसे कार्य करने लायक बनाया जा सके। ज्यादा से ज्यादा प्रशिक्षित डाक्टरों व निम्न दर की प्रोस्थेसिस से आने वाले समय में टोटल ज्वाइंट रिप्लेसमेंट की लोकप्रियता और बढ़ जाएगी।

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