स्वास्थ्य

मरीजों को बेहतर दृष्टि और चश्मे पर से निर्भरता खत्म हो : डा. महिपाल सिंह सचदेव

दिल्ली। एआईओएस की ओर से आयोजित 78 वां वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आज सम्पन्न हो गया। इस चार दिवसीय सम्मेलन में 7000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय नेत्र विषेशज्ञों ने भाग लिया और अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। इस सम्मेलन में भारत में जमीनी स्तर पर प्रौद्योगिकी को उपलब्ध कराने और नेत्र विज्ञान के भविष्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गयी। भारत में आंखों से संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए उपलब्ध नवीनतम और उन्नत तकनीकों को बढ़ावा देने और उन्हें लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। हालांकि लैसिक के आगमन और फेमटो सेकंड लेजर सर्जरी (जो आम तौर पर ब्लेड रहित मोतियाबिंद सर्जरी के नाम से भी जाना जाता है) जैसे मोतियाबिंद सर्जरी के उपचार में प्रगति से उत्कृष्ट परिणाम हासिल हो रहे हैं। लेकिन मोतियाबिंद अभी भी दुनिया में अंधेपन का प्रमुख कारण है।
एआईओएस के अध्यक्ष डा. महिपाल सचदेव ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान, मोतियाबिंद सर्जरी ‘‘रेस्टोरेटिव’’ सर्जरी से ‘‘रिफ्र ैक्टिव’’ सर्जरी के रूप में विकसित हुई है और इसकी बदौलत मरीजों को बेहतर दृष्टि मिलती है और मरीजों की चश्मे पर से निर्भरता खत्म हो जाती है। पारंपरिक फेकोइमल्सीफिकेशन टांका रहित मोतियाबिंद सर्जरी एक तरह की मैनुअल तकनीक है, जिसमें हाथ से ब्लेड को पकडकर कॉर्निया पर चीरे लगाये जाते हैं। जबकि फेमटोसेकंड लेजर का उद्देश्य कई उपकरणों की मदद से की जाने वाली प्रक्रिया लेजर आधारित प्रक्रिया के रूप में तब्दील हो गई है जो कम्प्यूटर संचालित है और बिल्कुल सटीक होती है। इसमें आंखों की उच्च रिजॉल्यूशन वाली महत्वपूर्ण छवि प्राप्त होती है जिसकी माप की मदद से बिल्कुल सटीक तरीके से सर्जरी की जा सकती है जो परम्परागत सर्जरी की मदद से संभव नहीं हो पाती है। फेमटोसेकंड में, मोतियाबिंद सर्जरी के कुछ पहलुओं को कंप्यूटर द्वारा स्वचालित रूप से प्रोग्राम और मॉनिटर किया जाता है।
कम दृष्टि और अंधेपन से भारत की कुल आबादी में से लगभग 9 प्रतिशत लोग ग्रस्त हैं। भारत में लगभग 19 मिलियन दृष्टिहीन लोग हैं और हर दिन यह संख्या बढ़ रही है। विकसित और विकासशील दोनों देशों में मोतियाबिंद कम दृष्टि का एक महत्वपूर्ण कारण है। दुनिया भर में अंधेपन के शिकार लोगों में से 50 प्रतिशत लोग मोतियाबिंद से ग्रस्त हैं। भारत में सन 2020 तक मोतियाबिंद के कारण होने वाले अंधेपन से ग्रस्त लोगों की संख्या बढकर लगभग 8.25 मिलियन हो सकती है। इसका कारण 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी है। अफसोस की बात यह है कि ऐसे अंधेपन के ज्यादातर मामलों को रोका जा सकता था, अर्थात् ऐसे रोगियों को या तो अंधेपन का शिकार होने से बचाया जा सकता था या इनका इलाज हो सकता था। जो अन्य बीमारियां अपरिवर्तनीय दोश पैदा करती हैं उनमें आयु से संबंधित मैक्युलर डिजेनेरेषन (एआरएमडी) और डायबिटिक रेटिनोपैथी शामिल हैं।
एआईओएस के कोशाध्यक्ष डॉ. राजेश सिंन्हा ने कहा, ‘‘लोगों की जीवन प्रत्याशा बढने के कारण उम्र से संबधित मैक्युलर रिजेनरेशन और डायबेटिक रेटिनोपैथी जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों में शहरी लोगों का प्रतिशत बढ़ रहा है। एआईओएस की मानद महासचिव नम्रता शर्मा ने कहा, ‘‘आज के समय में आईकेयर सुविधाओं के समक्ष जो मुख्य चुनौतियां हैं उनमें सरकारी सहायता प्राप्त योजनाओं के माध्यम से अत्याधुनिक सर्जरी की कीमत की कैपिंग भी प्रमुख है।

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