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रुमेटाइड ऑर्थराइटिस : कहीं पैर और टखने में दर्द तो नहीं

रूमेटाइड आर्थराइटिस एक जटिल बीमारी है, जिसमें जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है। यह सूजन और जलन और इतनी ज्यादा हो सकती है कि यह हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्यआकृति भी प्रभावित हो सकती है। रूमेटाइड ऑर्थराइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकता है और यह पंजों के जोडों को विकृत कर सकता है। वास्तव में रूमेटाइड ऑर्थराइटिस से पीडित 90 प्रतिशत लोगों के पैरों और टखनों में रोग के लक्षण सबसे पहले दिखाई देने लगते है। इस स्थिति का आसानी से उपचार किया जा सकता है, क्योंकि मेडिकल साइंस ने अब काफी प्रगति कर ली है और विकलांगता से आसानी से बचा जा सकता है। रूमेटाइड ऑर्थराइटिस से ज्यादातर हाथ, कलाई, पैर, टखना, घुटने, कंधे और कोहनियों के जोड प्रभावित होते है। इस रोग में शरीर के दोनों तरफ एक जैसे हिस्से में सूजन व जलन हो सकती है, रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के लक्षण समय के साथ अचानक या धीरे-धीरे नजर आ सकते है। पैरों और हाथों में विकृति आना रूमेटाइड ऑर्थराइटिस का सबसे सामान्य लक्षण है।
मुबंई स्थित ब्रिज कैंडी हास्पिटल के आर्थाेपेडिक सर्जन एंड पोडियाट्रिस्ट डा. प्रदीप मुनोट का कहना है कि करीब 20 प्रतिशत मरीजों में इसके सबसे पहले लक्षण पैरों और टखने में नजर आते है। हालांकि हर व्यक्ति में लक्षण कुछ अलग हो सकते है जैसे- अकड़न, विशेषकर सुबह के समय, जोडों पर सूजन, गतिशीलता कम होना, ऐसा दर्द जो जोडों के मूवमेंट के साथ बढ़ जाता हो, छोटे जोड़ों पर गूमड़े या उभार, जूते बांधने, जार का ढक्कन खोलने या शर्ट के बटन बंद करने जैसे रोजमर्रा के काम करने में परेशानी होना, थकान आदि।

  1. टखना –
    रैम्प या सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी होना टखने की समस्या का पहला लक्षण है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, सामान्य रूप से चलना और खडे रहना भी मुश्किल हो सकता है।
  2. हिंडफुट (पैर में एडी का हिस्सा) –
    डा. प्रदीप मुनोट का कहना है कि इस हिस्से का मुख्य काम पैर की साइड टू साइड गतिशीलता को बनाए रखना है। असमतल जमीन, घास या ग्रेवल पर चलने में परेशानी होना या दर्द होना इसके सामान्य लक्षण है। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पैर का अलाइनमेंट बिगड सकता है, क्योंकि हड्डियां अपनी सामान्य पोजिशन से बाहर आ जाती है, इससे फ्लैटफूट जैसी विकृति सामने आ सकती है।
  3. मिडफुट( पैर के उपर का हिस्सा)-
    रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के कारण पैर के उपरी हिस्से को सहायता करने वाले लिगामेंट कमजोर हो जाते हैं और इसका आर्च खत्म हो जाता है। आर्च खत्म होने से पैर भी खत्म हो जाता है। रूमेटाइड ऑर्थराइटिस से उपस्थि (कार्टिलेज) को भी नुकसान पहुंचता है और इससे दर्द होता है, यह दर्द जूते पहनने या नहीं पहनने दोनों स्थिति में हो सकता है। समय के साथ पैर की आकृति भी बदल सकती है।
  4. फोरफुट (पैर के पंजे और बॉल)-
    रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के मरीजों के पैरों के अग्रिम हिस्से में जो बदलाव आता है, वह अनूठा होता है। इससे पैरों में गोखरू, पंजे का फैलना और पैरों की बॉल्स में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती है।
  5. ज्वॉइंट फ्यूजन सर्जरी
    रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के गम्भीर मामलों में शल्य क्रिया आखिरी विकल्प बच जाता है। विशेषकर तब जब दवाइयां, फिजियोथैरेपी आदि उपचार विफल साबित हो जाए। शल्य क्रिया से रूमेटाइड ऑर्थराइटिस का उपचार नहीं होता, लेकिन इस रोग से पैदा होने वाली विकृतियों को दूर किया जा सकता है। शल्यक्रिया के दौरान सभी जोड़ नहीं छेड़े जाते, बल्कि सिर्फ उन्हीं जोड़ों को मिलाया जाता है, जो परेशान कर रहे हों। कुछ गंम्भीर मामलों में शल्य क्रिया के बाद भी रूमेटाइड ऑर्थराइटिस परेशान कर सकता है, इसलिए इसके लगातार उपचार की जरूरत पड़ सकती है।
    डा. प्रदीप मुनोट के अनुसार प्रभावित जोड़ों को मिलाया जाना रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के उपचार के लिए सबसे सामान्य शल्य क्रिया है। इस शल्यक्रिया में एक जोड को हटा दिया जाता है और हड्डियों के दो किनारों को आपस में मिला दिया जाता है, इससे बिना जोड वाली एक बडी हड्डी तैयार हो जाती है। यह क्रिया सामान्यतः रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के गंम्भीर रोगियों में की जाती है। हड्डियों को जोडने के बाद हटाए गए जोड़ में कोई मूवमेंट नहीं रह जाता और मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
    उपचार के दौरान शरीर इन जोड़ों की हड्डियों के बीच में नई हड्डियां पैदा कर लेता है। टखने के रूमेटाइड ऑर्थराइटिस के उपचार के लिए एंकल फ्यूजन और टखने को बदलने के दो प्राथमिक सर्जिकल विकल्प उपलब्ध है। उपचार के दोनों ही विकल्पों से टखने के दर्द और परेशानी को कम किया जा सकता है, इनमें से किस तरह की शल्यक्रिया उपयुक्त रहेगी यह हर मरीज की स्थिति तथा कई अन्य फैक्टर्स पर निर्भर करता है।

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