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अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संघर्ष समिति ने अयोग्य स्वतंत्रता सेनानियों की पेंशन बंद करने की मांग की

नई दिल्ली। राष्ट्रीय कार्यकारिणी व राज्यों के पदाधिकारियों की प्रैस क्लब आफ इंडिया, नई दिल्ली के कान्फ्रेंस हाल में 25 अगस्त को कांफे्रस हुई। राष्ट्रीय अध्यक्ष गोवर्धन प्रसाद अटल ने सभा की अध्यक्षता की। देश के 20 राज्यों-असम, मणिपुर, अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों, बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र सहित, नई दिल्ली की इकाईयों के पदाधिकारियों-सी. अशोक कुमार यादव (उपाध्यक्ष), ओम शक्ति जी बाबू (सचिव), इबोतोम्बी सिंह (अध्यक्ष, मणिपुर), रवि राय भौमिक (सचिव, असम), शिवाजी शिर धोनकर (महाराष्ट्र), मंजुनाथ स्वामी, के. एन. छायापति व गणेशयाजी (क्रमशः अध्यक्ष, सचिव, केन्द्रीय सदस्य कर्नाटक), विष्णु पद मोहन्ति (सचिव, उड़ीसा), नरेश गुप्ता, विष्णु अग्रवाल, विजय उपमन्यु, विजय कौशिक, हृदेश गुप्ता, (दिल्ली के क्रमशः केन्द्रीय सदस्य व प्रभारी, अध्यक्ष, महासचिव, कोषाध्यक्ष, सचिव), के. पी. मणीलाल (केरल) समेत केन्द्रीय समिति के सदस्यों व देश के चयनित नेताओं ने भाग लिया।
1975-77 के दौरान आतंरिक आपातकाल के समय मीसा व डीआईआर में बन्दी संघर्षकर्ता योद्वाओं तथा बाहर भूमिगत रहकर संघर्ष करने वाले वीरों की वर्तमान अवस्था पर विचार किया गया। आपातकाल के दौरान हुए पुलिसीया बर्बर अत्याचारों व उनके परिवारों के कष्टों-पीडाओं पर चर्चा हुई। गुप्तांगों को चोट पहुंचाना, गुदा में लð घुसाना, नंपुसक बनाना, पेशाब पिलाना, बर्फ पर सुलाकर व ऊपर लटकाकर मारपीट नाखून निकलना, हाथ-पैर तोड़ना जैसी यातना व दमन से पीड़ित योद्वाओं की व जिनके व्यवयाय बंद हो गए, शिक्षा रूक गई, नौकरी छूट गई इत्यादि नाना कष्टों को भोग रहे सेनानियों की सहायता व कल्याणर्थ विचार-विमर्श किया।
सभा में यह संतोष व्यक्त किया गया कि आपातकाल पीडितों के कल्याण, सम्मान व देखरेख का ध्यान करते हुए मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, छतीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, बिहार, उत्तराखण्ड तथा महाराष्ट्र सरकार ने 15 हजार से 25 हजार तक सम्मान राशि, स्वास्थय व यात्रा सुविधाओं इत्यादि की घोषणा की है। पर वहीं उधर अब भी देशभर के शेष 20 (बीस) राज्यों में अब तक ऐसे आपातकाल पीड़ित लोकतंत्र सेनानियों के लिए कुछ नही हुआ या नही किया गया है। अब भी देशभर के प्रायः 50000 मीसा -डीआईआर बन्दीयों की पीड़ा की ओर किसी का ध्यान नहीं गया है। आपातकाल के संघर्षकर्ता सेनानियों को लोकतंत्र सेनानी कहा जाता है। महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया है। मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान सरकारें भी उन्हें स्वतंत्रता सेनानी जैसा दर्जा देने की तैयारी कर रही है।
अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त संधर्ष समिति की यह मांग है कि बाकी शेष बचे राज्यों के आपातकाल पीड़ितों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जाए व उन्हें उचित सम्मान जनक सुविधा पूर्व जीवन जीने की व्यवस्था केन्द्र सरकार करें। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, हाईकोर्टों ने भी अपने निर्णय में यह कहा है कि यह समाज व सरकारों का दायित्व है कि राष्ट्र व समाज के लिए, लोकतांत्रिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों व मीडिया की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते वक्त पीड़ित दमनित सेनानियों की देखभाल कर उचित सम्मान दे। मद्रास हाईकोर्ट ने तो यह तक कहा है कि ऐसे सेनानियों की देखरेख करना कोई चैरिटी (खैरात) नहीं है।
यहाँ यह उल्लेख भी सभा में किया गया व आश्चर्य व्यक्त किया गया कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें 1921-22 के मोपला विद्रोहियों, खिलाफत (1919-22) आन्दोलन कारियों, स्वतंत्रता विरोधी त्रावनकोर आंदोलन, चीन सर्मथक कम्युनिस्ट आंदोलनो के संधर्षकारियों इत्यादियों को सम्मान निधि पेंशन दे रही है। एक अनुमान के अनुसार अकेले केन्द्र सरकार ने 2017-20 के दौरान 2525 करोड़ की व्यवस्था इस हेतु कर रखी है तथा तदनुसार 1980 से भी अब तक जोड़ें तो मात्र गत 38 वर्षो में 7000 से 8000 हजार करोड़ रूपये उक्त स्वतंत्रता सेनानियों की सम्मान पेंशन पर खर्च किये है, जिनमें राष्ट्र का अधिकतर पैसा आयोग्यों को जा रहा है। जबकि राष्ट्रीय आंदोलनकारियों व लोकतंत्र, मौलिक आधिकारों, प्रैस स्वातंत्र्य के लिए तथा आपातकाल के विरूद्व लड़ने वालों को अस्वीकृत, उदासीन, उपेक्षित अभावग्रस्त और पीड़ित छोड़ दिया गया है। अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त संधर्ष समिति उपरोक्त अयोग्यों की पेंशन की जांच की मांग करती है।
संधर्ष समिति यह भी मांग करती है कि पुलिस व्यवस्था व मानसिकता में बदलाव के लिए सरकार सक्रिय सकरात्मक उचित कदम उठावे व यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में स्वतंत्र भारत की पुलिस अपने ही नागरिकों के प्रति वैसा दमन, अत्याचार व अमानवीयता न कर सके।

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