राष्ट्रीय

एफ्रो-एशियाई देशों का सबसे बड़ा ‘मेला विश्व पुस्तक मेला’

विश्व में लगने वाले पांच सबसे बड़े मेलों में से एक है नई दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाला िवश्व पुस्तक मेला। लंदन बुक फेयर, फ्रैंकफर्ट बुक फेयर, शारजाह बुक फेयर, बीजिंग बुक फेयर की तरह ही यह विश्व प्रसिद्ध पुस्तक मेला है। यह मेला पिछले 45 सालों से लगातार लग रहा है। 2018 में छह जनवरी से 14 जनवरी तक लगने वाला यह 26 वां मेला है। पहली बार यह मेला 1972 में विंडसर प्लेस, नई दिल्ली में लगा था। इसके बाद यह मेला 1978 से प्रगति मैदान में लगने लगा। इस मेले का आयोजन भारत पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट) करता है। भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन ( इंडियन ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन), वाणिज्य मंत्रालय भी इसमें सह संयोजक की भूमिका में रहता है। पहले यह मेला हर दो साल पर लगता था लेकिन 2012 से यह हर साल लग रहा है।
1972 में पहली बार जब यह मेला आयोजित किया गया तो इसमें 200 संस्थानों ने हिस्सेदारी की। लेकिन 1978 में लगे तीसरे मेले में ही भागीदारों की संख्या बढ़कर पांच सौ के पार पहुंच गई। उस साल 554 संस्थानों ने हिस्सेदारी की। पुस्तक प्रेमियों के बीच मेले की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी। मेले में लेखकों और पाठकों की भागीदारी भी तेजी से बढ़ रही थी। देश के दूर-दराज के इलाके से लोग दिल्ली सिर्फ पुस्तक मेले में भाग लेने के लिए आने लगे। उन्हें यहां विभिन्न विषयों पर देशी-विदेशी पुस्तकें देखने को मिलने लगीं। कहने की जरूरत नहीं कि पुस्तकों की बिक्री भी मेले में बढ़ी और इस वजह से प्रकाशन संस्थानों की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी। 1998 में 13वें मेले में भागीदारों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा हो गई। उस साल कुल 1036 प्रकाशन संस्थानों ने मेले में भागीदारी की। अगली बार 2000 में भागीदारों की संख्या बढ़कर 1281 हो गई। 2006 के सत्रहवें मेले में भागीदारों की संख्या 1300 के करीब पहुंच गई और उसके अगली बार 2008 के 18वें मेले में यह संख्या 1343 तक पहुंच गई। अब तक के मेले में भागीदारों की यह सबसे बड़ी तादाद है। 2016 के मेले में 886 भागीदारों ने मेले में हिस्सेदारी की थी। 2012 के बाद मेला हर दो साल पर लगने की बजाय हर साल लग रहा है। शायद इस वजह से संख्या में थोड़ी गिरावट आई है। या हो सकता है वैश्विक मंदी का भी इस पर असर रहा हो। लेकिन एक बात है कि इस दौरान भागीदारों की संख्या जरूर कम हुई है पर स्टालों की संख्या में उतनी कमी नहीं आई है। 2012 में 1297 संस्थानों ने भागीदारी की थी और 2671 स्टाल लगे थे। जबकि 2016 में 886 संस्थानों ने हिस्सेदारी की और 1917 स्टाल लगे। इसका मतलब ये है कि भागीदारों की तादाद में जिस अनुपात में कमी आई, उस अनुपात में स्टालों की तादाद में कमी नहीं आई। जहां तक पाठकों, लेखकों और पुस्तक प्रेमियों की बात है, उनके लिए मेले का आकर्षण बना हुआ है। दिल्ली में रहने वाले पुस्तक प्रेमी जहां करीब-करीब हर रोज ही वहां पहुंचते हैं, वहीं बाहर से आने वाले भी पूरी योजना बनाकर आते हैं। विश्व पुस्तक मेला अब एक ऐसा साहित्यिक आयोजन बन गया है, जिसका लोग पूरे साल भर इंतजार करते हैं।
पहले की तुलना में आज के दौर में भारतीय प्रकाशन अब प्रगतिशील हो चुका है| विश्व पुस्तक मेले में शामिल होने वालें प्रतिभागियों या नवोदित लेखकों के लिए लेखन या प्रकाशन के क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से यहां आना एक अच्छा अवसर साबित होता है | साथ ही कुछ लेखक या कवि और कवित्रियों के लिए ‘टाइटल्स’ या खिताब देने के लिए भी यह उचित स्थान होता है| प्रकाशक एवं सहप्रकाशक के रूप में स्थापित करने के लिए पुस्तक मेला अच्छा मंच बनता है | विश्व पुस्तक मेला आयोजित होने से दुनिया के तमाम पब्लिशिंग हाउस और बुद्धिजीवी वर्ग के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्र का द्वार खुल जाता है। जिसकी वजह से यह मेला वैश्विक स्तर का हो जाता है | 2016 में संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले में विशेष अतिथि के रूप में चीन को आमंत्रित किया गया था | जिसकी थीम” विविधता” थी | वहीं वर्ष 2017 में आयोजित होने वाले विश्व पुस्तक मेले में थीम “औरतों पर औरतों द्वारा लेखन” था। 2018 में थीम “वातावरण और जलवायु परिवर्तन” है | नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन श्री बल्देव भाई शर्मा ने बताया कि इस बार के पुस्तक मेले में यूरोपियन यूनियन को गेस्ट ऑफ ऑनर कंट्री बनाया गया है। इस मेले में करीब 30 देशों के प्रतिनिधि प्रकाशक हिस्सा लेंगे। इसमें करीब 800 भारतीय प्रकाशक होंगे। इसमें विभिन्न प्रकाशनों की करीब दो दर्जन भाषाओं की पुस्तकें प्रदर्शित होंगीं। मेले में सेमिनार, सांस्कृतिक कार्यक्रम और कई भाषाओं में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। चंूकि मेले का थीम पर्यावरण है, इसलिए गुरु ग्रंथ साहब में पर्यावरण को लेकर वर्णित शबदों का गायन लगातार चलता रहेगा। पंजाबी गीतों पर पंजाबी में समूह नृत्य भी होगा। इसी तरह सिंधी में नृत्य नाटिका प्रदर्शित की जाएगी। संस्कृत में भारतीय वांगमय में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण की जो प्रथा है, जैसे-जल को देवता माना गया है।

 

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