राष्ट्रीय

एसएससी एक्स सर्विसमैन ने दिल्ली आकर माँगा अपना हक

दिल्ली। देश के लिए 1965 और 1971 की जंग लड़ चुके आर्मी ऑफिसर्स ने अपने पेंशन अधिकारों और मेडिकल सुविधाओं के लिए दिल्ली में धावा बोला। एसएससी एक्स सर्विसमैन के प्रतिनिधि और 1971 की जंग का हिस्सा रह चुके कैप्टन जसपाल सिंह ने कहा, ‘हमारे साथ मेडिकल सुविधा और पेंशन देने में भेदभाव किया जा रहा है। अभी भी देश की महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ चुके अफसरों को बुढ़ापे में उनका हक नहीं दिया जा रहा है। हम ये मांग करते है कि हमें सेना के दूसरे नियमित अफसरों की तरह मेडिकल सुविधाएं दी जाएँ और वन रैंक वन पेंशन की तर्ज पैर ही पेंशन दी जाये।’
कैप्टन जसपाल सिंह ने बताया कि आर्मी में 5, 10 या 14 साल तक सेवा करने और कई अभियानों में भाग लेने के बाद भी अफसर पेंशन और मेडिकल सुविधाओं के हकदार नहीं होतें, जबकि एक आम नागरिक को भी केंद्र और राज्य सरकार कई योजनाओं का लाभ देती है लेकिन हमारे लिए ऐसी कोई सुविधा नहीं है। इस सिलसिले में कई बार रक्षा मंत्री और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ से मिल चुके हैं, लेकिन अब तक हमारे प्रयास व्यर्थ ही साबित हुए हैं।
एसएससी के ऑफिसर्स मिलिट्री अस्पताल में अपना इलाज नहीं करा सकते उन्हें 65-70 साल की उम्र में अपनी रोजी रोटी चलने के लिए निम्न दर्जे का काम करने पर मजबूर होना पड़ रहा है देश के लिए लड़ने और गैलेंट्री अवार्ड जीतने वाले अफसरों को काफी परेशानी में जीवन गुजरना पड़ रहा है, उन्होंने कहा रक्षा मंत्रालय में बैठे अफसरों को यह बताया गया है कि एसएससी अफसरों की संख्या एक लाख से ज्यादा होने के कारण हम उन्हें पेंशन और दूसरी मेडिकल सुविधएं नहीं दे पा रहें है आज हम अपने रक्षा विभाग के अफसरों की ये बताना चाहते है की हमारी संख्या एक लाख से ज्यादा नहीं 7000 हैं और ये अफसर एक जगह नहीं बल्कि देश के विभिन्न भागों में रह रहे हैं ,
कैप्टन हरीश गुलाटी ने कहा, ‘देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को सरकार 25000 रुपया महीना पेंशन दे रही है, स्वन्त्रता के सेनानियों के देहांत के बाद उनके परिजनों को भी पेंशन का लाभ दिया जाता है, लेकिन एसएससी एक्स सेविस मैन के लिए ऐसी कोई सुविधा क्योँ नहीं है, इमरजेंसी में कई बार जेल में बंद होने वाले नेताओं की हालत भी इमरजेंसी कमीशंड सैनिको से अच्छी है, उन्हें उनके निवास से सम्बंधित राज्यों में प्रदेश सरकार ने अच्छी सुविधाएँ प्रदान कर रही है एसएससी और ईसी ऑफिसर्स ये मांग कर रहे है कि उन्हें ओआरओपी में भी शामिल किया जाये, जिसे सरकार ने 2015 में सेना के जवानों के लिए लागू किया था।

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