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अडानी पर क्यों मेहरबान है भारतीय स्टेट बैंक?

नई दिल्ली। विवादित क्वीन्सलैंड कायेला खनन परियोजना को लेकर गौतम अडानी का आस्ट्रेलिया के विभिन्न बडे शहरों में जोदरदार विरोध हो रहा है। इन विरोध प्रदर्शनों में हजारों लोग शामिल हो रहे हैं अडानी और अपनी सरकार पर पर्यावरण को बर्बाद करने और लोगों की मेहनत की कमाई और आयकर दाताओं के कर को लूटने के आरोप लगा रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों ने मेलबोर्न, सिडनी, ब्रिसबेन आदि शहरों में बडे प्रदर्शन किये, जिसमें बडी संख्या में लोगों ने अपनी नाराजगी का इजहार किया। इन विरोधों के चलते पहले ही अडानी की परियोजना को 60 मिलियन टन और 16.5 बिलियन डालर से घटाकर 10-15 मिलियन टन और 2 बिलियन डालन सालाना कर दिया है।
ब्रिसबेन में सैंकडों प्रदर्शनकारी अडानी के कार्यालय के बाहर एकत्र हुए और उन्होंने अडानी की परियोजना और उसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अभिन्न मित्र गौतम अडानी की लूट के खिलाफ आवाज उठायी। इस परियोजना को आस्ट्रेलियाई नागरिक गौतम अडानी और अस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री पर मिलीभगत और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। सिडनी में हजारों प्रदर्शनकारी अडानी की परियोजना और उससे होने वाले पर्यावरण नुकसान को लेकर लिखे नारों की तख्तियां हाथों में लिये थे। ध्यान रहे इन प्रदर्शन में बडी संख्या में विश्वविद्यालय के छात्र और नौजवान भाग ल रहे हैं।
मेलबोर्न में फलिन्डर्स स्ट्रीट ट्रेन स्टेशन के बाहर 5 हजार से अधिक प्रदर्शनकारियों ने प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों पर अडानी ने कहा कि कंपनी कार्मिकेएल परियोजना के बारे में विभिन्न मतों को मान्यता देते हैं और प्रत्येक का आवाज का सम्मान करते हैं। इन प्रदर्शनों का सबसे अधिक रोचक नजारा उस समय दिखाई दिया जब एक प्रदर्शनकारी अडानी का विरोध करते हुए भारत और आस्ट्रेलिया के मैच के बीच प्लेकार्ड लेकर मैदान में पहुंच गया। यह वो समय था जब ना केवल यह मामला अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया और भारत में लोगों को पता चला कि भारतीय स्टेट बैंक इस परियोजना के लिए अडानी को कर्ज देने जा रहा है। और भारतीय स्टेट बैंक ऐसे हालात में अडानी को कर्ज देगा जबकि अडानी की कंपनी पर पहले ही 70 हजार करोड से अधिक का कर्ज है।
देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक, स्टेट बैंक आॅफ इंडिया गौतम अडानी की कंपनी को कार्मिकेएल परियोजना के लिए एक बिलियन आॅस्ट्रेलियन डाॅलर यकरीब 5450 करोड़ रुपयेद्ध की रकम लोन देने जा रहा है। बेशक भारत में यह कर्ज दिये जाने की चर्चा भारत और आॅस्ट्रेलिया के बीच चल रही वनडे सीरीज के पहले मैच में एक व्यक्ति द्वारा एक पोस्टर लेकर पिच पर पहुंच जाने के बाद पता चली परंतु आस्ट्रेलिया में यह एक बडा चर्चा का विषय है और लोग एसबीआई से कर्ज नहीं देने का आग्रह अपने प्रदर्शनों के दौरान अक्सर करते रहे हैं।
वहीं इस कर्ज को दिये जाने पर एक विदेशी निवेशक फर्म ने भारतीय स्टेट बैंक से अपना निवेश वापस निकाल लेने की भी धमकी दी है। फ्रांस के बड़े फंड हाउस आमुंडी ने कहा है कि भारतीय स्टेट बैंक यदि आॅस्ट्रेलिया में अडानी के कार्मिकेएल कोयला खदान को 5,000 करोड़ रुपये का लोन देगा, तो वह अपने पास मौजूद ग्रीन बांड को बेच देगा। आमुंडी भारतीय स्टेट बैंक के प्रमुख निवेशकों में से एक है। आमुंडी यूरोप का सबसे बड़ा फंड मैनेजर है और शीर्ष 10 वैश्विक निवेशकों में से एक है।
भारतीय स्टेट बैंक अडानी को तब कर्ज देने की राह पर है जबकि दुनिया के सभी बड़े बैंक जैसे सिटी बैंक, डायशे बैंक, रायल बैंक आॅफ स्काॅटलैंड, एचएसबीसी, बार्कलेज और दो चीनी बैंक ने इस परियोजना के लिए अडाणी समूह को कर्ज देने से इंकार कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 2014 में आॅस्ट्रेलिया यात्रा के समय भी एसबीआई के द्वारा दिया जाने वाला यह कर्ज खासा चर्चा में रहा था। उस समय अडानी समूह को आॅस्ट्रेलिया में कोयला खदानें संचालित करने के लिए एक अरब डाॅलर कर्ज देने का समझौता किया था, लेकिन तब सिर्फ सहमति पत्र पर दस्तख्त हुए थे। बाद में आरटीआई के द्वारा इस कर्ज के बारे में पूछे जाने पर भारतीय स्टेट बैंक ने सूचना मुहैया कराने से इंकार कर दिया था और कहा था कि दिए गए कर्ज से जुड़े रिकाॅर्ड का खुलासा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारतीय स्टेट बैंक ने संबंधित सूचनाओं को अमानत के तौर पर रखा है और इसमें वाणिज्यिक भरोसा जुड़ा है।
2016 में अडानी को दिए गए लोन का मामला जनता दल यूनाइटेड के सांसद पवन वर्मा ने सरकारी बैंकों के औद्योगिक घरानों पर बकाया कर्ज के मुद्दे के दौरान उठाया था। उन्होंने देश के बड़े बकायेदारों के नाम लेते हुए व्यापारिक समूहों पर सीधे तौर पर हमला बोला था। उन्होंने अडाणी समूह का विशेष रूप से जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि इस व्यापारिक समूह और उसकी कंपनी पर 72 हजार करोड़ रुपये बकाया है।
क्रेडिट सुइस ने 2015 के हाउस आॅफ डेट रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि अडानी समूह बैंकिंग क्षेत्र के 12 प्रतिशत कर्ज लेने वाली 10 कंपनियों में सबसे ज्यादा ‘गंभीर संकट’ में है, लेकिन जैसे ही मोदी जी सत्ता में आए गौतम अडानी भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक बन गए। अडानी को नरेंद्र मोदी बार-बार बचाते आए हैं। गुजरात के चीफ मिनिस्टर रहते हुए मोदी ने अडानी को बेहद सस्ती दर पर मुंद्रा पोर्ट की सैकड़ों किलोमीटर की जमीन आवंटित कर दी थी। 2012 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इसी मुंद्रा प्रोजेक्ट से पर्यावरण को हुए नुकसान के आरोपों की जांच के लिए सुनीता नारायण की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट में स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को हुए व्यापक नुकसान और अवैध तरीके से जमीन लेने जैसी बातों का खुलासा किया और इसकी सिफारिश के आधार पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के कारण यूपीए सरकार ने अडानी समूह पर 200 करोड़ का जुर्माना लगाया, लेकिन जैसे ही मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, उन्होंने वो जुर्माना निरस्त कर दिया। साफ है कि पर्यावरण के मामले में अडानी का रिकाॅर्ड पहले से ही खराब रहा है। कोरोना काल में अभी सरकारी बैंकों का एनपीए तेजी से बढ़ता जा रहा है और अभी सबसे ज्यादा एनपीए भारतीय स्टेट बैंक के हिस्से ही आ रहा है। ऐसे में अडानी को ऐसी विवादित परियोजना के लिए लोन दिया जाना कितना सही है।

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