धर्म

पूर्ण नहीं हो सकी रावण की इच्छा

भगवान शिव अक्षर, अव्यक्त, असीम, अनन्त एवं परात्पर ब्रह्मा हैं, उनका देव स्वरूप सभी के लिए वन्दनीय है। शिव पुराण के अनुसार सभी प्राणियों के कल्याण के लिए भगवान शंकर लिंग रूप में विविध तीर्थों में निवास करते हैं।
पृथ्वी पर वर्तमान शिवलिंगों की संख्या बहुत अधिक है, तथापि इन सभी में द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रधानता है। शिव पुराण में इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के स्थान निर्देश के साथ-साथ कहा गया है कि जो इन बारह नामों का प्रात:काल उठकर पाठ करता है, उसके सात जन्मों के किए हुए पापों का विनाश हो जाता है।
श्री वैद्यनाथ धाम इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक है। यहां श्री वैद्यनाथेश्वर विराजते हैं। इस लिंग की स्थापना के विषय में एक बड़ी सुन्दर प्रतीकात्मक कथा आती है।
एक बार राक्षस राज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिए घोर तपस्या की ओर अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद वह अपना दसवां सिर भी काटने को तैयार ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर स्वयं प्रकट हो गये।
उन्होंने रावण के दसों सिर पूर्ववत कर दिये और उससे वरदान मांगने को कहा। रावण ने उस दिव्य लिंग को लंका ले जाकर स्थापित करने की आज्ञा मांगी।
शिवजी ने अनुमति तो दे दी, लेकिन इस चेतावनी के साथ कि यदि वह मार्ग में कहीं उसे रख देगा तो लिंग वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ, रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में ‘चिंताभूमिÓ में आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। वह उस लिंग को एक गोप कुमार के हाथ में देकर लघुशंका निवृत्ति के लिए चला गया।
इधर, गोप कुमार ने उसे बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। बस फिर क्या था। लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे उठा न सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अंगूठा गढ़ाकर लंका चला गया।
ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। तभी से भगवान शिव वैद्यनाथ में रावणेश्वर रूप में अवस्थित हैं। धर्मग्रंथों के अनुसार यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग महान फलों को देने वाला है। भगवान आशुतोष की यह लिंगमूर्ति 11 अंगुल ऊंची है। अब भी उस पर रावण के अंगूठे का चिन्ह विद्यमान है। यहां दूर-दूर से जल लाकर चढ़ाने का अत्यधिक माहात्म्य है।
पं. छोटेलाल मिश्र

 

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