ईस्लाम धर्म में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा त्योहार बकरा ईद
ईस्लाम धर्म में मनाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा त्योहार बकरा ईद है, इस दिन बकरे, भैंस, उंट जैसे जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। यह एक जरिया है जिससे बंदा अल्लाह की रजा हासिल करता है। अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुंचता है, लेकिन वो सिर्फ कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है। अल्लाह को पसंद है कि बंदा उसकी राह में अपना हलाल तरीके से कमाया हुआ माल खर्च करे।
कुर्बानी के पीछे का वाक्या यह है कि इब्राहीम अलैयहेसलाम एक पैगंबर गुजरे हैं, जिन्हें ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माईल (जो बाद में पैगंबर हुए) को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें। यह इब्राहीम अलैयहेसलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ थी अपने बेटे से मोहब्बत और एक तरफ था अल्लाह का हुक्म। इब्राहीम अलैयहेसलाम ने सिर्फ और सिर्फ अल्लाह के हुक्म को पूरा किया और अल्लाह को राजी करने की नीयत से अपने जिगर के टुकड़े इस्माईल अलैयहेसलाम की कुर्बानी देने को तैयार हो गए। जैसे ही इब्राहीम अलैयहेसलाम छुरा लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों में आला जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माईल अलैयहेसलाम को छुरे के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया। इस तरह इब्राहीम अलैयहेसलाम के हाथों मेमने के जिबा होने के साथ पहली कुर्बानी हुई। इसके बाद जिब्रील अमीन ने इब्राहीम अलैयहेसलाम को खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ने आपकी कुर्बानी कुबूल कर ली है और अल्लाह आपकी कुर्बानी से खुश है।
अल्लाह सबकुछ जानता है और वह समझता है कि बंदा जो कुर्बानी दे रहा है, उसके पीछे उसकी क्या नीयत है? जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा तो यकीनन वह अल्लाह की रजा हासिल करेगा, लेकिन अगर कुर्बानी करने में दिखावा आ गया तो उसका सवाब नहीं मिलेगा। कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं की जाए, बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर किया जाए। अल्लाह हमें और आपको कहने से ज्यादा अमल की तौफीक दे।
शरीयत के मुताबिक कुर्बानी हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास 13 हजार रुपए या उसके बराबर सोना और चांदी या तीनों (रुपया, सोना और चांदी) मिलाकर भी 13 हजार रुपए के बराबर है।
ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है। वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है। अगर साहिबे हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार होगा। जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महँगे जानदार की की जाए। हर जगह जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, आप उसमें भी हिस्सेदार बन सकते हैं।
अगर किसी शख्स ने साहिबे हैसियत होते हुए कई सालों से कुर्बानी नहीं दी है तो वह साल के बीच में सदका करके इसे अदा कर सकता है। सदका एक बार में न करके थोड़ा-थोड़ा भी दिया जा सकता है। सदके के जरिये से ही मरहूमों की रूह को सवाब पहुंचाया जा सकता है।
कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करने की शरीयत में इजाज़त है। एक हिस्सा गरीबों में बांटा जाए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के लिए इस्तेमाल किया जाए और तीसरा हिस्सा अपने घर में इस्तेमाल किया जाए। तीन हिस्से करना जरूरी नहीं है, अगर खानदान बड़ा है तो उसमें दो हिस्से या ज्यादा भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
-शराफत खान