धर्मसैर सपाटा

उथला मंदिर और मूर्तियों का अजायबघर – रानी की बाव नहीं देखा तो क्या देखा

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
लेखक एवं अधिस्वीकृत स्वतंत्र पत्रकार

यह है रानी की बाव। गुजराती में बाव का अर्थ पानी के सीढ़ीदार कुएं से है, जिसे आम बोली में बावड़ी कहा जाता है। ऐसा इस बावड़ी में क्या खास हैं जो इसकी चर्चा कर रहे हैं। देश भर की लाखों कलात्मक बावड़ियों में रानी की बाव अपनी आकृति की विशालता, अनूठी बनावट, अद्भुत संरचना, उत्कृष्ठ शिल्पकारी, कलश आकर में अलंकरणों से सुसज्जित स्तम्भ, बेमिसाल मूर्तिशिल्प के सम्मोहन से सजी दीवारों की विशिष्ठताओं की वजह से सिरमौर बावड़ी है। मारु-गुर्जर शिल्प शैली में निर्मित यह बावड़ी गुजरात राज्य के पाटन शहर के समीप सरस्वती नदी के किनारे अपनी शिल्पकला और गौरवमयी इतिहास की गाथा बयां कर रही हैं। अपनी असीमित विशेषताओं की वजह से इसे उस समय विश्वस्तरीय सम्मान एवं गौरव प्राप्त हुआ जब 22 जून 2014 को यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने इसे विश्व विरासत में शामिल करने की घोषणा की। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी जल संरक्षण की इस नायाब धरोहर को जुलाई 2018 में अपने एक सो रुपये के नोट पर प्रिंट किया।
बावड़ी बनाने के पीछे की कहानी है कि 11 वीं शताब्दी में यहाँ सोलंकी वंश के शासकों का राज्य था। इस वंश में राजा भीमदेव प्रथम हुए जिनकी मृत्यु के पश्चात उनकी रानी उदयमति ने 1022 से 1063 ई. के मध्य पति की प्रेम स्मृति के स्वरूप जल संरक्षण एवं नागरिकों को जल उपलब्ध हो इस उद्देश्य से इस बावड़ी का निर्माण करवाया था। बावड़ी का सौंदर्य रानी के शिल्पकला के प्रति असीम प्रेम की गाथा सुनाने को पर्याप्त है। वक्त के थपेड़ों के साथ सरस्वती नदी में आने वाली बाढ़ की
वजह से बावड़ी गाद और मिट्टी से भर गई और विलुप्त प्रायः हो गई। अस्सी का दशक था जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसको खोज निकाला। खुदाई कर जमीन में धसी बावड़ी को बाहर निकाला और साफ-सफाई की तो इसकी अद्भुत संरचना और शिल्पकारी देख कर अचंभित हो गया। शिल्पकला ऐसी थी कि मानो अभी-अभी बनाई गई हो। विभाग ने इसे अपनी सार-सम्भाल में लेकर अपनी राष्ट्रीय धरोहर सूची में शामिल कर इसके दस्त्तावेजों का डिजिटलाइजेशन किया और विश्व धरोहर का दर्जा दिलाने के प्रयास किया।
बावड़ी की संरचना पर चर्चा करते हैं तो पूरी बावड़ी लाल बलुआ पत्थर से निर्मित की गई है।बावड़ी का छोटा सा प्रवेश द्वार नीचे की और जाती सीढ़ियों के माध्यम से दर्शकों को सबसे आखिर में बने पानी के कुएं तक ले जाती हैं। प्रवेश द्वार के भीतर से गहराई तक देखने पर उथले मंदिर के भव्य स्वरूप में दिखाई देती है। नीचे तक जाने के लिये काफी समय लगता है। चप्पे-चप्पे पर की गई कारीगरी और कलात्मक मूर्तियां अपनी सम्मोहिनी शक्ति से दर्शकों को बांध लेती हैं और एक टक देखते रहने को मजबूर कर देती हैं। आपको बतादें शिल्पकला का प्रतिमान यह बावड़ी 6 एकड़ क्षेत्र में बनाई गई है जो 7 मंजिली होने के साथ-साथ 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चैड़ी और 27 मीटर गहराई लिये हुए है। हजारों अलंकृत स्तम्भों पर बनी संरचना कौतूहल उत्पन्न करती है। जल संरक्षण की उचित तकनीक, बारीकियों एवं अनुपातों का साक्षात नमूना है। एक सुरंग भी यहां बनाई गई थी जिसका उपयोग राजा और उसका परिवार युद्ध या अन्य कठिन परिस्थिति में शरण लेने के लिये करते थे को अब पत्थरों से बंद कर दिया गया है।
बावड़ी के मूर्तिशिल्प पर तो क्या कहे, लगता है जैसे खूबसूरत प्रतिमाओं का विलक्षण संसार सामने हो। मूर्तियां जहाँ धार्मिक भावनाओं और श्रंगारिता का प्रतिबिंब हैं। देवी-देवताओं की मूर्तियां दर्शक को धर्म की ओर ले जाती हैं वहीं अप्सराओं की प्रतिमाएं सौंदर्य बोध कराती हैं। भगवान विष्णु के नरसिम्हा, वामन, राम, वराह, कृष्णा समेत दशावतारों के उत्कीर्ण होने से इसे विष्णु को समर्पित बावड़ी माना जाता है। अन्य प्रमुख माता लक्ष्मी, पार्वती, ब्रह्मा, गणेश, कुबेर, भैरव एवं सूर्य सहित समस्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उकेरी गई हैं। नाग कन्याओं की अद्भुत मूर्तियां देखने को मिलती हैं। महिलाओं के सोलह श्रृंगार की प्रतिमाएं भारतीय महिला कला-संस्कृति का बेहद अद्भुत दिग्दर्शन करती हैं। दीवारों पर बने ज्यामितीय एवं रेखाचित्र का संयोजन भी देखते ही बनता हैं। पानी के गहरा कुंआ भी आकर्षक मूर्तियों से सजाया गया है। इसमें शेष शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु के अद्वितीय मूर्ति भी अविभूत करती है। बावड़ी करीब 700 बड़ी एवं एक हजार छोटी मूर्तियों से श्रंगारित है। इसे प्राचीन सुंदर मूर्तियों का अजायबघर कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
कभी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद जाना हो तो रानी की बाव को देखने का कार्यक्रम भी जरूर बनाएं। पाटन शहर अहमदाबाद से उत्तर-पश्चिम की ओर करीब 140 किमी की दूरी पर स्थित है तथा मेहसाणा से नजदीक है। अहमदाबाद देश के समस्त प्रमुख शहरों एवं पर्यटक स्थलों से हवाई,रेल एवं बस सेवाओं से भली भांति जुड़ा हुआ है।

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