धर्म

मोहब्बत और भाईचारा का पैगाम लेकर आती है ईद

रमजान माह की इबादतों और रोजे के बाद ईद-उल फितर का त्योहार खुदा का इनाम है। मुसर्रतों का आगाज है, खुशखबरी की महक है, खुशियों का गुलदस्ता है, मुस्कुराहटों का मौसम है और रौनक का जश्न है। इसलिए ईद का चांद नजर आते ही माहौल में एक गजब सी खुशी महसूस होती है। ईद के दिन सिवइयों या शीर-खुरमे से मुंह मीठा करने के बाद छोटे-बड़े, अपने-पराए, दोस्त-दुश्मन गले मिलते हैं तो चारों तरफ मोहब्बत और भाईचारा नजर आता है। एक पवित्र खुशी से दमकते सभी चेहरे इंसानियत का पैगाम माहौल में फैला देते हैं।
अल्लाह से दुआएं मांगते व रमजान के रोजे और इबादत की हिम्मत के लिए खुदा का शुक्र अदा करते हाथ हर तरफ दिखाई पड़ते हैं और यह उत्साह बयान करता है कि लो ईद आ गई।
कुरआन के अनुसार पैगंबरे इस्लाम ने कहा है कि जब अहले ईमान रमजान के पवित्र महीने के एहतेरामों से फारिग हो जाते हैं और रोजों-नमाजों तथा उसके तमाम कामों को पूरा कर लेते हैं, तो अल्लाह एक दिन अपने उक्त इबादत करने वाले बंदों को बख्शीश व इनाम से नवाजता है। इसलिए इस दिन को ईद कहते हैं और इसी बख्शीश व इनाम के दिन को ईद-उल-फितर (ईद-उल-फित्र) का नाम देते हैं।
रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही दसवां माह शव्वाल शुरू होता है। इस माह की पहली चांद रात ईद की चांद रात होती है। इस रात का इंतजार वर्ष भर खास वजह से होता है, क्योंकि इस रात को दिखने वाले चांद से ही इस्लाम के बड़े त्योहार ईद-उल फितर का ऐलान होता है। इस तरह से यह चांद ईद का पैगाम लेकर आता है। इस चांद रात को अल्फा कहा जाता है।
रमजान माह के रोजे को एक फर्ज करार दिया गया है, ताकि इंसानों को भूख-प्यास का महत्व पता चले। भौतिक वासनाएं और लालच इंसान के वजूद से जुदा हो जाए और इंसान कुरआन के अनुसार अपने को ढाल लें। इसलिए रमजान का महीना इंसान को अशरफ और आला बनाने का मौसम है। पर अगर कोई सिर्फ अल्लाह की ही इबादत करे और उसके बंदों से मोहब्बत करने व उनकी मदद करने से हाथ खींचे तो ऐसी इबादत को इस्लाम ने खारिज किया है। क्योंकि असल में इस्लाम का पैगाम है- अगर अल्लाह की सच्ची इबादत करनी है तो उसके सभी बंदों से प्यार करो और हमेशा सबके मददगार बनो। यह इबादत ही सही इबादत है। यही नहीं, ईद की असल खुशी भी इसी में है।

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