सामाजिक

आखिर लटक ही गया तीन तलाक बिल

तीन तलाक रोकने के लिए पेश किया गया मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 बिल को पास होने से रोक कर कांग्रेस ने एक बार पुन: अपनी वही पुरानी गलती दोहरा दी है जो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शाहबानो प्रकरण में की थी। शाहबानो प्रकरण के बाद कांग्रेस ने केन्द्र में तीन बार सरकार भले ही बना ली हो मगर अपने बूते कभी नही। कांग्रेस पार्टी को तीनो बार केन्द्र में गठबंधन सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस विरोध के चलते तीन तलाक बिल आखिरकार अधर में लटक ही गया। लोकसभा से पास होने के बाद राज्यसभा में विपक्ष ने तीन तलाक बिल को पास नहीं होने दिया। विपक्ष तीन तलाक बिल को प्रवर समिति के पास भेजने के लिए अड़ा रहा जिसकी वजह से संसद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गयी। संसद में तीन तलाक बिल को पास कराने की सरकार की ख्वाहिश अधूरी रह गई।
लोकसभा में तो सरकार ने संख्या बल के आधार पर तीन तलाक बिल पास करा लिया लेकिन राज्यसभा में विपक्ष ने तीन तलाक बिल को पास नहीं होने दिया। विपक्ष लगातार इस बिल को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग पर अड़ा रहा और सराकार की लाख कोशिशों के बावजूद राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास नहीं हो सका। एक तरफ सरकार ने इस बिल को पास कराने के लिए पूरी ताकत लगा दी वहीं कांग्रेस और विपक्ष ने भी एकजुट होकर इस बिल को रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विपक्ष लगातार ये सवाल उठाता रहा है कि अगर तीन तलाक देने के बाद पति को जेल हो जाती है तो वो अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता कैसे दे सकेगा?
राज्यसभा में विपक्ष बिल को प्रवर समिति के पास भेजने को अड़ा रहा तो सरकार ने भी इस मांग के आगे झुकने से इनकार कर दिया। राज्यसभा में नेता सदन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तत्काल तीन तलाक बिल को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग को इसे लटकाने का प्रयास करार दिया। उनका कहना था कि विपक्ष ने प्रवर समिति के लिए जिन सांसदों को आगे किया है वे वास्तव में इस बिल को खत्म करना चाहते हैं। नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह गलत प्रचार फैलाया जा रहा कि कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष तत्काल तीन तलाक बिल के खिलाफ है। हमारी आपत्ति केवल इस पर है कि एकसाथ तीन तलाक पर पति जेल जाएगा, तब उस दौरान पत्नी का गुजारा कौन चलाएगा। हमारा आग्रह है कि गुजारे की व्यवस्था सरकार से करवा दीजिए।
अब शीतकालीन सत्र समाप्त हो चुका है और सरकार को बजट सत्र का इंतजार है जो कि 29 जनवरी को राष्ट्रपति के अभिभाषण से शुरु होगा। 1 फरवरी को आम बजट पेश किया जायेगा फिर 9 फरवरी तक बजट सत्र का पहला हिस्सा चलेगा। इसके बाद 10 फरवरी से लेकर 4 मार्च तक ब्रेक रहेगा और फिर 5 मार्च से 6 अप्रैल तक बजट सत्र का दूसरा हिस्सा चलेगा। सरकार की पूरी कोशिश होगी कि बजट सत्र में तीन तलाक बिल को पास करा सके। इस दौरान सरकार बिल में कुछ बदलाव कर विपक्ष को मनाने की कोशिश कर सकती है।
तीन तलाक संबंधी विधेयक राज्यसभा में लंबित रहने के कारण अब सरकार के पास इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए बहुत सीमित विकल्प रह गए हैं। इस विधेयक के भविष्य के बारे में राज्यसभा के पूर्व महासचिव वी. के. अग्निहोत्री का मानना है कि सरकार के पास एक विकल्प है कि वह अध्यादेश जारी कर दे। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा करना उच्च सदन के प्रति असम्मान होगा। हालांकि सरकार ने उच्च सदन में इसे चर्चा के लिए रख दिया है और यह फिलहाल उच्च सदन की सम्पत्ति है। आमतौर पर अध्यादेश तब जारी किया जाता है जब सत्र न चल रहा हो और इसे सदन में पेश न किया गया हो। जब सदन में विधेयक पेश कर दिया गया हो तो इस पर अध्यादेश लाना सदन के प्रति सम्मान नहीं समझा जाता, लेकिन पूर्व में कुछ ऐसे उदाहरण रहे हैं कि सदन में विधेयक होने के बावजूद अध्यादेश जारी किया गया। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सरकार के पास यह विकल्प भी था कि विपक्ष जो कह रहा है उसके आधार पर वह स्वयं ही संशोधन ले आती। चूंकि यह विधेयक सरकार राज्यसभा में रख चुकी है और जब तक उच्च सदन इसे खारिज नहीं कर देती, सरकार इस पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाकर इसे पारित नहीं करा सकती।
वरिष्ठ वकीलो का मानना हैं कि इस बारे में अध्यादेश लाने के लिए कानूनी तौर पर सरकार के लिए कोई मनाही नहीं है। हालांकि परम्परा यही रही है कि संसद में लंबित विधेयक पर अध्यादेश नहीं लाया जाता। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा था कि सरकार इस विधेयक को इसलिए पारित कराना चाहती है, क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस बारे में 6 महीने के भीतर संसद में कानून बनाया जाए। कांग्रेस का मानना है कि इस मामले में जल्दबाजी दिखाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने एक बार में तीन तलाक पर जो रोक लगाई है, वह स्वयं अपने में एक कानून बन चुका है। न्यायाधीश का फैसला अपने आप में एक कानून है। कांग्रेस सांसद विवेक तनखा ने कहा कि झगड़ा फैसले को लेकर नहीं बल्कि सरकार द्वारा इस विधेयक में जो अतिरिक्त बातें जोड़ी गई हैं उसको लेकर है। उन्होंने भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि अपने राजनीतिक लाभ के लिए इसका अपराधीकरण कर रहे हैं। विवाह के मामले फौजदारी अपराध नहीं हो सकते।
उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी घोषित करते हुए सरकार से इसे रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है। राज्य सभा में कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां इसे प्रवर समिति में भेजने की मांग पर कायम रहीं। पति को 3 साल की सजा समेत कुछ अन्य प्रोविजन का विरोध कर रही कांग्रेस समेत 18 पार्टियां इसे प्रवर समिति को भेजने की मांग पर अड़ी हैं। इनमें एनडीए की सहयोगी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी भी शामिल है। हालांकि सरकार ने विपक्ष की मांग मानने से इनकार कर दिया।
इस मुद्दे पर तेलगू देशम पार्टी के 6 सदस्यों के अलग हो जाने से एनडीए के सांसदो की संख्या 76 रह जाती हैं जबकि यूपीए के 66 सांसद है। निर्दलीय 6 व 8 नामांकित सदस्यो के अलावा अन्य दलों के 82 सांसद हैं। ऐसे में यदि यूपीए साथ नहीं देता है तो तीन तलाक बिल पास करवाने के लिए सरकार को छोटे दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा। सरकार इस बिल को पास करवाने के लिये अन्नादु्रमक,तेलगूदेशम, बीजू जनतादल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी के सुझाव अनुसार बिल में थोड़ा बहुत बदलाव कर पास करवाने का प्रयास कर सकती है। इन दलो के राज्यसभा में 50 सांसद सरकार के साथ जाने पर कांग्रेस चाहकर भी बिल को नहीं रोक पायेगी। इनमें तेलगूदेशम, अन्नाद्रुमक, बीजू जनतादल तो वैसे भी भाजपा के नजदीकी व कांग्रेस विरोधी है। ऐसे में इनकी दिक्कत को दूर कर सरकार राज्यसभा में इनको आसानी से अपने साथ कर सकती है। राज्यसभा में बिल पास नहीं होने पर संसदीय कार्यमंत्री अंनत कुमार का कहना है कि सरकार मुस्लिम समाज और बहनों के साथ है। समाज के अन्य कानून की तरह यह कानून भी बनना चाहिए लेकिन कांग्रेस इस बिल को लेकर दोहरा रवैया अख्तियार कर रही है।
केंद्र के इस बिल के अनुसार अब तीन तलाक और तलाक-ए-बिद्दत को गैरकानूनी माना जाएगा। इसके साथ ही यह गैर-जमानती अपराध होगा। तीन तलाक देने वाले को तीन साल की जेल का भी प्रवाधान है और बिल में तलाकशुदा महिलाओं को उनके रखरखाव के लिए प्रवाधान किया गया है। तीन तलाक के पूरे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट कि अहम बेंच ने अगस्त महीने में तीन तलाक को गैरकानूनी बताया था। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर छ:माह में कानून बनाने की राय दी थी। बीते एक साल से ऐसे कई मामले सामने आ रहे थे जिसमें मुस्लिम महिलाओं को कभी व्हाट्सएप से तो कभी फोन पर तलाक दिया जा रहा था। हाल ही में उत्तर प्रदेश के रामपुर में एक औरत को उसके आदमी ने इसलिए तलाक दे दिया क्योंकि वो देर तक सो रही थी। गौरतलब है कि इस कानून के बनने के बाद मुस्लिम महिलाओं को तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा से छुटकारा पाने में काफी मदद मिलेगी।

-रमेश सर्राफ धमोरा

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