सामाजिक

तकनीक से जुड़े और नैतिक मूल्य परक बाल साहित्य का सृजन हो….

-डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
बाल साहित्य हमेशा से बच्चों का मनोरंजन और ज्ञानवर्धन करता रहा है। बाल कहानियां, कविताएं, रेखाचित्र, कार्टून पत्रिकाएं सदियों से बच्चों की रुचि रही हैं। आज के सभी साहित्यकारों ने चंपक, बाल भारती, चंदामामा, लोटपोट, नंदन आदि बाल पत्रिकाओं को खूब रुचि से अपने बचपन में पढ़ा है और इनसे सृजन की प्रेरणा ग्रहण की है।
बाल साहित्य की पृष्ठभूमि बताते हुए विद्वान साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम कहते है आज परिवेश बदल गया है। संचार क्रांति, तकनीक, विज्ञान के समय में जरूरी हो गया है की बाल साहित्य का सृजन भी ऐसा हो जो मनोरंजन के साथ वर्तमान परिवेश से बच्चों को जोड़ सकें। साथ ही उनमें नैतिक चारित्रिक गुणों का भी विकास हो और उनमें अपनी संस्कृति से भी लगाव हो।
भगवती प्रसाद जी ने यह बात बाल साहित्य पर लिखने वाली साहित्यकार डॉ. कृष्णा कुमारी द्वारा उनसे लिए गए एक साक्षात्कार में कही। अवसर था कोटा में राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय में पाँच दिवसीव पुस्तक मेला और साहित्य उत्सव समारोह का। समारोह के एक सत्र में यह साक्षात्कार आयोजित किया गया।
एक प्रश्न के उत्तर में भगवती जी ने कहाबाल साहित्य के उद्देश्य बालकों का स्वस्थ मनोरंजन करना, कल्पना लोक की सैर, जिज्ञासा जाग्रत करने के साथ बच्चों श्रेष्ठ नागरिक बनाना, नैतिक मूल्यों को विकसित करना, तकनीक से जोड़ना, आज की वर्चुवल दुनिया से रूबरू करवाना आदि हैं। मापदंड वही हैं, कुछ परिवेशानुसार नए जुड़ गए।
आपके समय में और वर्तमान में लिखे जा रहे बाल साहित्य में आप क्या मूलभूत अंतर देखते हैं प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा समय परिवर्तनशील है, समय के अनुसार साहित्य में भी बदलाव स्वाभाविक है। वैसे भी साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब होता है , बहुत अंतर आ गया, परिवेश के अनुसार सृजन हो रहा है। आज संचार क्रांति का युग है तो बाल साहित्य भी इस ओर अग्रसर हुआ है।
आप राजस्थान जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के संस्थापक सदस्य रहे हैं, अकादमी किस प्रकार बाल साहित्य को प्रोत्साहन प्रदान करती है के प्रश्न पर उन्होंने बताया कि इस अकादमी के गठन से बाल साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। राजस्थान के बाल साहित्यकारों और स्वयं बालकों द्वारा रचित रचनाओं को बहुत उत्साह और प्रोत्साहन मिला। बड़े स्तर पर बाल साहित्य की प्रतियोगिता का आयोजन हमने करवाया जाता है। चयनित किशार बाल रचनाकारों को सम्मान राशि से पुरस्कृत कर प्रेरित किया जाता है। हाड़ोती में भी बाल साहित्यकारों को सम्मान व पुरस्कार मिले हैं और पाण्डुलिपि प्रकाशन सहयोग मिला है, जिसकी सबको जानकारी है। अंतिम प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा बाल साहित्य का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। बहुत अच्छा, बालोपयोगी साहित्य का व्यापक स्तर पर सृजन हो रहा है। साक्षात्कार के अंत में उन्होंने श्रोताओं को एक बाल गीत सुना कर गुदगुदाया।

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