सामाजिक

मशहूर लेखक अमीष त्रिपाठी ने कहा- हिंदी दिल की तो अंग्रेजी पेट की भाषा

शिवा ट्रिलॉजी और राम पर उपन्यासों की शृंखला लिखने के बाद पहली बार नॉन फिक्शन किताब लेकर आ रहे जाने माने लेखक अमीष त्रिपाठी कहते हैं कि उन्होंने भले ही अपनी किताबें अंग्रेजी में लिखी हों लेकिन उनके दिल की भाषा हिंदी ही है।
उनका कहना है कि शिक्षा का माध्यम हमेशा मातृभाषा होनी चाहिए। हां, ये जरूर है कि पेट के लिए अंग्रेजी आना भी जरूरी है। मेरे लिए दिल के करीब हिंदी है और पेट की भाषा अंग्रेजी।

28 अगस्त को उनकी पहली नॉन फिक्शन ‘इमोर्टल इंडिया’ रिलीज होने जा रही है। इसे लेकर वो थोड़ा नर्वस भी हैं। गुरुवार को सनबीम सनसिटी में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि पहली बार उन्होंने कथानकों से हटकर सामाजिक मुद्दों पर ये किताब लिखी है।

महिलाओं के साथ अत्याचार, जातिवाद, भ्रूण हत्या, अभिव्यक्ति की आजादी, शिक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दों पर लिखा है। उनका कहना है कि देश में जो चीजें अच्छी हैं, हमें उसका दिल से अभिवादन करना चाहिए लेकिन जो खामियां हैं, उस पर भी खुलकर चर्चा होनी चाहिए।

पहली बार नॉन फिक्शन किताब लिखने का विचार कैसे आया इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि काल्पनिक कहानियां गढ़ते वक्त हम कई सच्चाई और फलसफों से गुजरते हैं। बस उन्हीं फलसफों को मैंने एक रूप देने की कोशिश है।

इस किताब को लिखने में मुझे तीन से चार साल लगे। इस अवसर पर सनबीम सनसिटी में ‘ओपन माइंड’ टॉक शो के दौरान अमीष त्रिपाठी जानी मानी पत्रकार बरखा दत्त के सवालों से रूबरू हुए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *