सैर सपाटा

मूर्तिकला में लोक-जीवन कोटा संग्रहालय की विशिष्ठ दीर्घा

-डॉ. प्रभात कुमार सिंघल, कोटा
भारतीय कला बहुपक्षीय है, जिसमें लोककला भी एक है। हड़प्पा संस्कृति में पशु-पक्षी एवं मूर्तियों की खोज से मूर्तिकला परम्परा तीसरी शताब्दी ई. पू तक चली जाती है। हड़प्पा सभ्यता के पतन और मौर्य साम्राज्य के अभ्युदय के मध्य की अवधि में मूर्तियों का अभाव देखने को मिलता है, जिसे स्पष्ट नहीं किया जा सकता। हड़प्पा संस्कृति की मातृदेवी और स्त्री रूप भारतीय कला में नारी सौन्दर्य के सर्वप्रथम अंकन है। विभिन्न रूपों में मातृदेवी प्रतिमाएं प्रकृति का रोचक निदर्शन है। भारत में नारी उपासना ने शनै-शनै शाक्त सम्प्रदाय का रूप ले लिया, जो शैव व वैष्णव दोनों ही मतों में प्रचलित था। इसकी परिणति अन्तत सप्तमातृकाओं एवं योगिनी की संकल्पना में हुई।
परवर्ती काल में विभिन्न अभिप्रायों, रूपों और माध्यमों में नारी सौन्दर्य से युक्त एवं लौकिक प्रतिमाओं का अविर्भाव हुआ। दीर्घा में प्रदर्शित नारी प्रतिमाएं इसकी प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। ये प्रतिमाएं तत्कालीन वस्त्राभूषणों और लोकाचार का भी ज्ञान कराती है। शिल्पकारों ने नर्तक-नर्तकियों की विभिन्न मुद्राओं एवं अभिनय का सूक्ष्म अंकन किया है। नृत्य-संगीत फलको में तत्कालीन वाद्य-यंत्रों का चित्रण देखने को मिलता है। यह लोक-जीवन के मनोरंजन पक्ष को उजागर करता है। मिथुन आकृतियां मूर्तिकला का प्रमुख अंग है। ये प्रतिमाएं भाव एवं रस से परिपूर्ण हैं। ये मानव के लोक-जीवन के कियाकलापों को बताती हैं। मंदिर स्थापत्य में कल्पित पशु आकृतियों का अंकन विषय को रोचकता प्रदान करता है।
मूर्तिशिल्प में ऋषि-मुनि, कुमारियां, नाग, यक्ष, गंधर्व, विद्याधर, द्वारपाल, पूर्णघट, लोकपाल, कल्पवृक्ष, लता अंलकरण, पात्र, रत्न, दर्पण, आयुध आदि आकृतियां तत्कालीन लोक-जीवन के विविध रूपों को दर्शाती हैं। इस दीर्घा में पूर्व-मध्यकालीन (9वीं से 12वीं शताब्दी ई. तक) लोक-जीवन को मूर्तिशिल्प के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। प्रेमातुर रमणी, रति कीड़ारत युग्म, चंवर व पायलधारिणी, नृत्यरत आकृतियां, माता व शिशु पद्महरता नारी, सद्यः रनाता तथा देव प्रतिमाओं में जन-जीवन की सुन्दर अभिव्यक्ति है। देव प्रतिमाएं मानव की लोक-आस्था और धार्मिक जीवन की परिचायक है। प्रदर्शित शिल्प तत्कालीन लोक-जीवन के अध्ययन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

प्रदर्शित मूर्तियां

(1) बारां जिले के विलास से प्राप्त 9 वीं सदी की देवालय का नरथर भाग जिस पर मिथुनरत महिला पुरूष आकृतियां उत्कीर्ण हैं। (2) कोटा जिले के मंदरगढ़ से प्राप्त 11वीं सदी की युगल प्रतिमा में पुरूष के हाथ में कोई वस्तु है जबकि महिला के हाथ में दर्पण है तथा अन्य नग्न युगल प्र्र्र्र्र्रेमालिंगन मुद्रा में दिखाई पड़ते हैं। (3) विलास से अवाप्त 9वीं सदी की हंस युग्म प्रतिमा में मंदिर की जगती की हंस सज्जा पट्टिका का भाग है। इसमें ऊपर अर्ध पद्मदल मणिमाला के साथ उत्कीर्ण किये गये हैं। (4 )विलास से अवाप्त 10वीं सदी की प्राप्त युवती, प्रेमी युगल एवं पुरूषाकृति में क्रमशः पायजेब पहनती युवती, मिथुन युग्ल और पुरूषाकृति का अंकन किया गया है। (5) विलास से अवाप्त 10वीं सदी के एवाली से प्राप्त मूर्ति के वेदीबंध भाग लता-पुष्प से अंलकृत है तथा दो उपासक उत्कीर्ण हैं।
(6 )बारां जिले के अटरू नामक स्थान से अवाप्त10वीं सदी की मिथुन युगल प्रतिमा में एक युगल काम क्रीड़ा में रत है तथा महिला का वक्षस्थल और पुरूष का मुखभाग क्षति ग्रस्त है। ( 7 ) विलास से ही 10वीं सदी की प्राप्त श्रृंगार द्वय प्रतिमा में दो सुंदरियां श्रृंगार करते हुए दिखाई देती हैं एवं दोनों के मध्य पत्रालंकरण उत्कीर्ण किए गये हैं। ( 8 ) विलास से अवाप्त 10वीं सदी की सुंदरी द्वय प्रतिमा में एक सुंदरी अधोवस्त्र पहने हुए नग्न अवस्था में अंकन है। पार्श्व भाग में अन्य सुंदरियां उत्कीर्ण हैं। (9) कोटा जिले के गांगोबी स्थल से अवाप्त 9वीं सदी की स्थानक सुन्दरी प्रतिमा में एक सुंदरी हाथ में दर्पण लिए है जबकि दूसरी सुंदरी सामान्य स्थिति में उत्कीर्ण है। (10 )कोटा से प्राप्त 10वीं सदी की सुर-सुंदर प्रतिमा में अप्सरा वस्त्राभूषणों से अलंकृत है तथा निम्न भाग में स्त्री एवं पुरूष आकृतियों का अंकन है।
(11)बारां जिले के अटरू से प्राप्त 9वीं सदी की अप्सरा प्रतिमा के केश पुष्प व मणिमालाओं से सज्जित है। नीचे दोनों तरफ महिला, परिचारिकाएं और एक बालक उत्कीर्ण हैं।(12)बारां जिला के काकोनी से प्राप्त 10वीं सदी की सुन्दरी द्वय प्रतिमा में एक सुंदरी अपने हाथों में कुछ वस्तु लिए है एवं दूसरी सुंदरी उसके केश- प्रसाधन कर रही है। (13) बारां से प्राप्त 10 वीं सदी की अलसकन्या प्रतिमा में युवती बाये हाथ से अधोवस्त्र थामे हुए है तथा वाम पाद पर बच्चा चढ़ते हुए उत्कीर्ण है।
(14 )बारां से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा प्रेमी युगल आलिंगन मुद्रा में है एवं इनके साथ अन्य नारी आकृतियां उत्कीर्ण हैं। (15) बारां जिले के विलास से अवाप्त 10वीं सदी की सुर-सुंदरी प्रतिमा में सुंदरी के शीष पर आभूषण जड़ित धम्मिला के साथ नीचे परिचारिका उत्कीर्ण है।
(16) बारां जिले के अटरू से प्राप्त 9वीं सदी की चंवरधारिणी प्रतिमा में एक महिला कानों में कुण्डल, गले में हार एवं मालाएं तथा हाथों में चूड़ी सेट धारण किए उत्कीर्ण है। (17) बारां जिले के विलास से प्राप्त 9वीं सदी की घटधारिणी प्रतिमा में महिला के दाएं हाथ में घट एवं बायें हाथ उरू पर रखे उत्कीर्ण है। (18) बारां जिले के अटरू से प्राप्त 9वीं सदी की प्रतिमा प्रेमातुर स्त्री आकृति और चवंरधारिणी में प्रथम महिला अधोवस्त्र उतारते हुए एवं दूसरी ओर स्त्री चंवर लिए उत्कीर्ण की गई है। (19)बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की चंवरधारिणी एवं पायलधारिनी बाएं हाथ में चंवर लिए है तथा दक्षिण पार्श्व में पायल पहने हुए उत्कीर्ण है। (20) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा के सम्मुख भाग पर स्त्री आकृति में नर्तकी, घुंघरू पहनते हुए तथा इसके दक्षिण पार्श्व में हाथ में पुष्प लिए सुंदरी उत्कीर्ण है।
(21)बारां जिले के अटरू से अवाप्त 9वीं सदी की पद्महस्ता नारी खड़ी अवस्था में हाथों में वस्त्र एवं पद्म लिए उत्कीर्ण है। (22) बारां जिले के अटरू से अवाप्त 9वीं सदी की प्रतिमा के सम्मुख भाग पर श्रंगार रता श्रंगार स्त्री आकृति तथा दक्षिण पार्श्व में एक महिला दाएं हाथ में चंवर लिए उत्कीर्ण है। (23)बारां जिले के काकोनी से अवाप्त 9वीं सदी की स्थानक पुरूष कंठाहार और वनमाला पहने हुए है और बांये हाथ में दर्यण लिए है। (24 )बारां जिले के विलास से अवाप्त 9वीं सदी की प्रतिमा में एक सुंदरी के दाएं हाथ में दर्पण, बाएं हाथ में कोई श्रृंगार वस्तु लिए हुए उत्कीर्ण की गई है। (25) बारां जिले के विलास से अवाप्त10वीं सदी सद्यःस्नाता के खुले केश दायीं ओर लटके हैं तथा दोनों ओर परिचारिकाएं उत्कीर्ण है।
(26 ) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा प्रेमातुर स्त्री आकृति अर्द्ध नग्न अवस्था में खड़ी हुई है तथा दायें उरू पर बिच्छु का अंकन किया गया है। (27) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा प्रेमातुर स्त्री आकृति अर्द्ध नग्न अवस्था में खड़ी हुई है तथा दायें उरू पर बिच्छु का अंकन किया गया है। (27) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की सुंदर द्वय में वीणाधारिणी त्रिभंग मुद्रा में अन्य सुंदरी कांटा निकालते उत्कीर्ण है। ( 28 )बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की योगिनी पर्यक मुद्रा में बै ठी हुई कृशकाय, रोद्र रूप में दिखाई देती है। (29 ) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा में ऊॅचे आसन पर बैठे नग्न पुरूप को गले में बड़ा कंठाहार पहने दिखाया गया है। (30) बारां जिले के रामगढ़ से प्राप्त 9वीं सदी की नृत्यरत पुरूषाकृति एक नृत्य मुद्रा में एवीएमआई दूसरे के हाथ में मंजीरा उत्कीर्ण है।
(31) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी की प्रतिमा के सम्मुख भाग पर पुष्पधारिणी हाथ में अर्ध खिला पद्म लिए है तथा दक्षिण पार्श्व में शिशु क्रीडा का अंकन किया गया है। (32) सीकर के विख्यात हर्षनाथ पर्वत से अवाप्त 10वीं सदी का नृत्य – वादक फलक हाथों में वाद्ययंत्र तथा नृत्य-गायनरत पुरूषाकृतियां उत्कीर्ण हैं। (33) बारां जिले के रामगढ़ से अवाप्त 12वीं सदी के नृत्य स्तम्भ में स्तम्भ के चारों ओर नृत्य-गायनरत स्त्री आकृतियों का अंकन किया गया है। ( 34 ) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी के फलक पर कल्पित हुमा पक्षी का अंकन किया गया है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसकी छाया व्यक्ति को राजा बना देती है। ( 35 ) बारां जिले के रामगढ़ से अवाप्त 10वीं सदी के कल्पिक मेष शार्दूूल जन्तु का अंकन है, जिसका ऊपरी भाग मेढ़ा है जबकि नीचे का भाग शार्दूल के समान है। (36) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी योगिनी और शिशु सहित जननी प्रतिमा फलक पर एक स्त्री दायें हाथ से बालक के कूल्हे पर पानी डालते हुए तथा हाथ दक्षिण पार्श्व में योगिनी हाथ में सर्प लिए उत्कीर्ण है। (37) बारां जिले के विलास से प्राप्त 10वीं सदी स्त्री आकृति दायें हाथ में श्रीफल लिए खड़ी मुद्रा में है तथा पार्श्व में साधु योगसूत्र पहने उत्कीर्ण है।

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