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ओरछा : जहां राजा के रूप में होती है राम की पूजा
( धर्म, प्रकृति और शांति का अनूठा स्थल )

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

प्राकृतिक परिवेश के बीच सतधारा बेतवा नदी के किनारे स्थित ओरछा साहित्य, कला – संस्कृति और पुरावैभव का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। ओरछा मध्यप्रदेश के नेवाड़ी जिले में स्थित है। बेतवा नदी यहां सात धाराओं में बहने से कही जाती है।
भारत में सभी जगह मंदिरों में राम को भगवान राम के रूप में पूजा जाता है परंतु आश्चर्य होता है यह जान कर कि यह देश का एकमात्र मंदिर ऐसा है जहां राम की पूजा राजा के रूप में की जाती है। मुख्य पहलू यह है की पूजा के साथ – साथ राम को राजा मानते हुए पुलिस द्वारा सुबह-शाम सशस्त्र सलामी दी जाती है। राज्य सरकार द्वारा यहां पर 1-4 की सशस्त्र गार्ड तैनात की गई है। मंदिर परिसर में कमरबंद केवल सलामी देने वाले ही बांधते हैं। खास बात यह भी है की चारदीवारी में बने महल में यह मंदिर बनाया गया है। राम के राजपाठ को यहां आज भी जीवंत रूप में मानते हैं।
यहां आने वाले किसी भी विशिष्ट व्यक्ति को सलामी नहीं दी जाती है। एक बार स्व.इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री के रूप में 31 मार्च 1984 को सातार नदी के तट पर चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा अनावरण कार्यक्रम के लिए आई थी तब वे राम के दर्शन करने ओरछा पहुंची थी। भोग लगाने का समय शुरू हो जाने से पुजारी ने पट बंद कर दिए। अफसरों ने पट खुलवाने की बात कही, लेकिन जब नियमों की जानकारी दी तो इंदिरा गांधी को पुनः पट खुलने के लिए करीब आधा घंटा इंतजार करना पड़ा। यह है राजा राम की महिमा, यहां किसी के लिए भी नियमों में कोई छूट नहीं है और राजा राम का ही शासन चलता है। अपनी इसी खासियत के चलते मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध है और मंदिर में दूर-दूर से भक्त राजा राम का सम्मान देखने आते हैं।
राजा राम के अयोध्या से ओरछा आने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के मुताबिक एक बार यहां के राजा मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरी से वृंदावन चलने के लिए कहा था लेकिन रानी हर वक्त भगवान राम की भक्ति में लीन रहने की वजह से उन्होंने महाराज के साथ जाने से इनकार कर दिया। महारानी के इनकार पर राजा ने उन्हें गुस्से में कहा कि अगर तुम इतनी ही बड़ी रामभक्त हो तो अपने राम को ओरछा में लाकर दिखाओ। राजा की बात सुनकर रानी ने अयोध्या के सरयू तट पर साधना शुरू की। जहां उन्हें संत तुलसीदास का आशीर्वाद भी मिला। रानी की कई महीनों की तपस्या के बाद भी जब राम जी ने उन्हें दर्शन नहीं दिए तो वो हताश होकर नदी में कूद गई, जिसके बाद उन्हें रामजी के दर्शन हुए तो रानी ने भगवान राम से ओरछा चलने का निवेदन किया। रानी की बात सुनकर भगवान राम ने उनके सामने एक शर्त रखी कि वो ओरछा तभी जाएंगे जब वहां सत्ता और राजशाही होगी। इसी के बाद महाराजा मधुकरशाह ने ओरछा में रामराज की स्थापना की जो आज भी मौजूद है।
इसके साथ ही एक अन्य कथानक के अनुसार एक बार भगवान राम ने ओरछा के राजा मधुकरशाह को सपने में दर्शन दिए थे, जिसके बाद वह राजा भगवान श्रीराम के आदेश पर अयोध्या से उनकी प्रतिमा लाए थे। वहीं राजा ने मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने से पहले एक जगह पर रखा था और जब प्राण-प्रतिष्ठा के वक्त मूर्ति को वहां से हटाया तो राजा को भगवान का निर्देश याद आया कि वो जिस स्थान पर विराजमान हो जाएंगे वहां से हटाए नहीं जा सकेंगे। यही वजह है कि रामलला आज भी सरकार महल में विराजे है। हर साल मौसम परिवर्तन के साथ मंदिर में दर्शनों का समय बदल जाता है।

ओरछा का किला

ओरछा के दर्शनीय स्थानों में यहां का किला दर्शनीय है। ओरछा की 16 वीं शताब्दी में स्थापना के बाद ही बुंदेला राजपूत रूद्र प्रताप सिंह द्वारा 1501 ई. किले का निर्माण कवाया और इसके बाद इस परिसर में कई महल और मंदिर बनाए गए। चार कोनों में खड़े विशालकाय बुर्ज और विशाल लकड़ी का द्वार किले की आभा में चार चांद लगाते हैं। वास्तुकला की दृष्टि से ओरछा का किला बुंदेलखंडी और मुगल स्थापत्य का मिश्रण है। किला न केवल आकर्षक है वरन वास्तु इंजीनियरिंग का अनूठा नमूना भी है। राजसी निवासों में बालकनियाँ, जालीदार खिड़कियां, देवी – देवताओं के साथ विविध भित्ति चित्र देखते ही बनते हैं। महल मंडप से लगा फूलबाग किले का खूबसूरत भाग है। किले का महत्वपूर्ण भाग 1554 से 1591 के मध्य राजा मधुकर शाह द्वारा बनवाया गया राज महल है। राजा वीर सिंह देव ने 1605-1627 के मध्य सावन भादों महल और जहाँगीर महल का निर्माण करवाया था। मुस्लिम और राजपूत कला शैलियों के मिश्रण से निर्मित दुमंजिला वर्गाकार जहांगीर महल की भव्य इमारत लाल और पीले बलुआ पत्थर से निर्मित है। गुंबद, प्रवेश द्वार, कमरे, छत और गलियारे देखते ही बनते हैं। केंद्रीय प्रांगण के चारों ओर 236 कक्ष हैं जिनमें से 136 कक्ष भूमिगत हैं। यह महल अब पुरातत्व विभाग के अधीन है और यहां एक छोटा पुरातत्व संग्रहालय बना दिया गया है। पर्यटकों के लिए यहां ध्वनि और प्रकाश का रोचक शो अंग्रेजी में 7:30 बजे से 8:30 बजे तक और हिंदी में 8:45 बजे से 9:45 बजे तक आयोजित किया जाता है। महल परिसर के अन्दर स्थित शीश महल में नक्काशीदार छत वाला महाकक्ष को वर्तमान में हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है।

चतुर्भुज मंदिर

राजाराम मंदिर के पीछे सबसे ऊंचे शिखर वाला भगवान विष्णु को समर्पित चतुर्भुज मंदिर आकर्षण का केंद्र हैं। राजाराम मंदिर के पास ही सावन भादो नाम से अविश्वसनीय एयर कूलर स्तंभ स्थित हैं। यहां स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर देवी लक्ष्मी को समर्पित है लेकिन इसमें भीतर देवी की कोई भी मूर्ती स्थापित नहीं है। यह मंदिर राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बनाया गया था। बेतवा नदी के कंचना घाट के किनारे समूह में ओरछा के शासकों की 17वी और 18वी शताब्दी की 14 छतरी या स्मारक हैं। हनुमान मंदिर, कल्याण सुंदर मंदिर, पंचमुखी मंदिर एवं राधा – बिहारी मंदिर भी दर्शनीय हैं। स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद यहां के एक गांव में आकर छिपे थे जहां उनके ठहरने की जगह पर एक स्मृति चिन्ह बना है।

अभयारण्य

वर्ष 1994 ई. में स्थापित ओरछा वन्यजीव अभयारण्य मध्य प्रदेश के श्रेष्ठ अभयारण्यों में से एक है। यह वन्यजीव अभयारण्य उस क्षेत्र में स्थित है जहां बेतवा नदी बहती है। हिरण, नीला बैल, सियार, सुस्त भालू, जंगली सूअर और ऐसी अन्य कई प्रजाती के वन्यजीव यहां पाए जाते हैं। कभी – कभी प्रवासी पक्षी भी इसमें देखने को मिलते हैं।
मानसून को छोड़ कर वर्ष भर में कभी भी यहां ठहरने के लिए अच्छे होटल और धर्मशाला हैं। ओरछा पर्यटन का कार्यक्रम वर्ष में कभी भी बनाया जा सकता है। अप्रैल में जाने से बचना चाहिए क्योंकि इस समय यहां का तापमान 45 डिग्री तक चला जाता है। ओरछा टीकमगढ़ से 80 ,ग्वालियर से 119 और उत्तरप्रदेश के झांसी से 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। निकटतम रेलवे स्टेशन झांसी में है। ओरछा बस सेवाओं द्वारा कई बड़े शहरों से जुड़ा है।

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