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ड्रग्स का धंधा, जिस्मफरोशी, गुंडागर्दी के इर्द-गिर्द गुथी कहानी ‘‘पहाड़गंज’’

फिल्म का नाम : ‘पहाड़गंज’
फिल्म के कलाकार : लॉरेना फ्रैंको, बिजेश जयराजन, नीत चैधरी, राजीव गौड़ सिंह, करण चौधरी आदि।
फिल्म के निर्देशक : राकेश रंजन कुमार
फिल्म के निर्माता : प्रकाश भगत
रेटिंग : 2/5

निर्देशक राकेश रंजन कुमार के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘पहाड़गंज’’ का जाॅनर क्राइम, ड्रामा, मिस्ट्री है। फिल्म में देश की राजधानी दिल्ली के मशहूर इलाके पहाड़गंज में होने वाले काले ध्ंाधों को दिखाने की कोशिश की गई है। जानते हैं फिल्म कैसी बनी है।

फिल्म की कहानी :
फिल्म की कहानी शुरूआत पहाड़गंज इलाके से होती है। फिल्म में फुटबॉल कोच गौतम मेनन (बिजेश जयराजन) और मंत्री के बेटे जितेंद्र तोमर (करण सोनी) के बीच झड़प दिखाया जाता है, मेनन अपने छोटे भाई की हत्या करने वाले जितेंद्र तोमर को जान से मारने की धमकी देता है। अगले दिन वो काॅलेज से इस्तीफा दे देता है। इसके बाद दूसरी कहानी लाॅरा की दिखाई जाती है। लॉरा कॉस्टा (लाॅरेन फ्रेंको) अपने बॉयफ्रेंड रॉबर्ट को ढूंढते हुए दिल्ली के पहाड़गंज आती है क्योंकि लॉरा ने उसे आखिरी बार फेसबुक के एक पोस्ट में पहाड़गंज में देखा था। वह उसे हर तरफ पागलों की तरह ढंूढती है। जहां भी राॅबर्ट का नाम सुनती है उसे लगता है कि वह उसी का राॅबर्ट है और वह उससे मिलने के लिए वहां पहुँच जाती है। वह ऐसे होटलों में भी उसे ढूंढने जाती है जहां सेक्स रैकेट चल रहा होता है। राॅबर्ट को ढूंढते-ढूंढते एक दिन वह बंगाली बाबा के पास पहुँच जाती है जहां राॅबर्ट तो नहीं मिलता लेकिन बाबा उसका रेप कर देता है। अपने साथ हुए दुष्कर्म की शिकायत लेकर वह पहाड़गंज इलाके के पुलिस थाने पहुँचती है लेकिन थानेदार उसकी शिकायत लिखने के बाजाए उसकी साथ अश्लील बातें करता है। परेशान होकर लाॅरा वहां से चली जाती है और अपने गले में ‘‘आई गाॅट रेप्ड’’ लिखा तख्ता लटकाए हुए सड़क के किनारे खड़े होकर अपने उपर हुए अत्याचार की कहानी को साइलेंटली बयां करती है। इसी बीच भाई की मौत का गम गौतम मेनन को इस कदर खाए जा रहा है कि वह मानसिक तौर पर विक्षिप्त सा हो जाता है। उसके इसी अस्थिर मानसिक हाल के कारण उसकी पत्नी पूजा (नीत चौधरी) बेटी को लेकर घर से चली जाती है। हांलाकि मेनन किसी दूसरे स्कूल में फुटबाॅल कोच के रूप में नौकरी ज्वाइन कर लेता है लेकिन अंदर से उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं होती। एक दिन रेलवे ट्रैक क्राॅस करने के दौरान उसकी मुलाकात गली के गुंडे मुन्ना (सलमान खान) से होती है मेनन रेलवे ट्रैक पर मुन्ना की जान बचाता है। मेनन मुन्ना की जान दो बार बचाता है इसलिए मुन्ना उसका एहसान मानता है। मुन्ना पहाड़गंज का सबसे बड़ा भाई बनना चाहता है। एक दिन अपने ही जन्मदिन पर तोमर की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। स्पेशल पुलिस इस कत्ल की जांच-पड़ताल करती है, आगे एक-एक करके हत्या से जुड़ी परतें खुलती है और कहानी आगे बढ़ती है।

निर्देशक राकेश रंजन ने इस फिल्म के जरिए ड्रग्स स्मग्लिंग, अवैध सेक्स रैकेट, गुंडागर्दी को बड़े पर्दे पर उतारने की पुरज़ोर कोशिश की है लेकिन वह अपनी इस कोशिश में असफल साबित होते हैं। फिल्म में आपको बिखराव ज़्यादा दिखाई देता है। फिल्म का स्क्रीनप्ले एकदम कमज़ोर है। फिल्म में नायिका के साथ हुए बलात्कार के बाद भी स्पेशल पुलिस के आने के बाद भी उसके केस का क्या हुआ, और बलात्कारी बाबा के साथ अंत में क्या हुआ, ये सब दिखाया नहीं जाना ये सब अखरता है। फिल्म में अश्लील दृश्यों की भरमार है। फिल्म को देखकर लगता है कि आखिर यह बनाई क्यों गई है।

फिल्म में स्पेनिश लॉरा कॉस्टा ने ठीकठाक काम किया है। गौतम मेनन के रूप में बिजेश जयराजन का अभिनय बहुत ही अच्छा है। गुंडे के रूप में सलमान खान का काम औसत हैं। पत्नी पूजा के रूप में नीत चैधरी ने अभिनय ठीक है। फिल्म का संगीत भी औसत है।

फिल्म क्यों देखें? :
फिल्म ज़्यादा खास नहीं है, अपने रिस्क पर देखें।

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